manish shukla

Romance Inspirational

5.0  

manish shukla

Romance Inspirational

अनंत समीक्षा

अनंत समीक्षा

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"यार, अपना तो मानना है जब तक जियो बिंदास जियो... वरना मर गए तो फिर कैसा सवेरा। राम थे, कृष्ण थे और थे भीष्म पितामह, इन्होंने अपने हिसाब से लाइफ जी, राम मर्यादा का संदेश देते रहे लेकिन उनको वनवास मिला। कृष्ण ने धर्म की रक्षा का संदेश दिया और महाभारत रच दी। भीष्म को तो इच्छा मृत्यु का वरदान था... लेकिन हुआ क्या, वो मृत्यु शैया पर झूलते रहे। आखिरकार उन सब को ये शरीर छोड़ना ही पड़ा न... वो मर कर कहाँ गए, कोई नहीं जानता, दोबारा पैदा हुए या फिर स्वर्ग चले गए... कोई नहीं बता सकता है... इसलिए मौत से डरना कैसा... मैं खुद को खतरों का खिलाड़ी मानता हूँ। जियो तो शान से... हम लोग बचपन से गाँव में रहे, वहीं खेत- खलिहान में परवरिश हुई। मेट्रो लाइफ के बारे में केवल टीवी पर देखते और लोगों से सुनते रहे, आज इस काबिल हैं कि ये लाइफ हमें भी मिली तो फिर जीने में संकोच कैसा... सिगरेट, शराब और लड़की आपके जीवन में आने वाले तनाव को कम करते हैं... मैं भी इस लग्जरी लाइफ का लुत्फ ले रहा हूँ... हर पल अपने हिसाब से जी रहा हूँ तो फिर अफसोस किस बात का।" लग्जरी लाइफ! वाकई में चंद ही सालों में वो अपनी लग्जरी लाइफ को बेतहाशा खर्च कर चुका था। उसको सहारे की जरूरत थी पर वह अपने छोटे शहर के सिविल अस्पताल में औंधा पड़ा उस सहारे का इंतजार कर रहा था।

बिलकुल समीक्षा की तरह... समीक्षा उसका प्यार, उसकी लिव इन पार्टनर थी, जिससे वो बंगलौर में पहली बार मिला था। कहने को वो उसकी सब कुछ थी। वो उसमें अपना सहारा भी ढूँढता था लेकिन अपनी लाइफ में कोई भी हस्तक्षेप नहीं पसंद था। रात तीन बजे भी नहीं जब अचानक कई किलोमीटर तक एक सिगरेट की तलाश में चला जाता। समीक्षा पूछती कहाँ जा रहे हो तो बस इतना ही जवाब मिलता अभी लौट कर आ जाऊंगा। उस समय भी उसके बिंदास चेहरे में शून्य भाव होता और आज भी अनंत भाव शून्य और अकेला,था। अनंत को अपनी बीमारी की गंभीरता का अहसास था पर जीवन पर यकीन भी। उसे पता था कि उसने दिल खोलकर ज़िंदगी खर्च की है लेकिन कहीं न कहीं वो तिजोरी आज भी मौजूद है जो उसके जीवन को फिर प्राणवायु से भर सकती है। बस उन सासों के लौटने का इंतजार था, जो उसका जीवन वापस लौटा सके।




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