manish shukla

Inspirational

4.3  

manish shukla

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खुली आँखों के सपने

खुली आँखों के सपने

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“ किस्मत जो न कराए वो थोड़ा, क्या कभी सपने में भी सोचा था कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को परचूनी मैनेजर’ भी बनना पड़ेगा। कहाँ कारपोरेट जगत की सुपर फास्ट लाइफ और कहाँ एक- एक रुपए के हिसाब का गणित, लेकिन सारे सपने ‘एमआरपी’ के टैग में चिपक कर रह गए। सोचा था नौकरी के साथ ही अपना एक उपन्यास लिखूंगा और उस पर फिल्म बनाऊँगा लेकिन हाय ही किस्मत! यहाँ वाई एम शॉप पर लाकर पटक दिया। न शादी करता और न ही घर वाले इस दुकान पर बैठने को मजबूर करते। खानदानी दुकान है, कौन संभालेगा? दूसरे की गुलामी से अच्छा है अपना कारोबार करो। पिता और बीबी की इन्हीं बातों के चक्कर में फंसकर अपनी ज़िंदगी को दांव पर लगा बैठा।“ लक्ष्मी जी की मूर्ति के आगे धूपबत्ती दिखाते हुए 40 वर्षीय सिद्धार्थ वासवानी अपनी किस्मत को कोस ही रहा था कि सेल्सगर्ल ने आकर उसको टोका।

“भैया जी, घर से कई बार फोन आ चुका है। भाभी बात करना चाहती हैं।“ वो तुरंत अपनी जेब में पड़े मोबाइल को हाथ डालकर निकलता है तो देखता है 21 मिस काल आ चुकी थीं। तुरंत धर्मपत्नी को फोन मिलाता है। "हैलो!" इतना कहते ही दूसरी तरफ से सवालों की बौछार शुरू हो गई।

“तुम्हें इतनी बार काल की लेकिन तुम तो कभी फोन उठाने की जरूरत भी नहीं समझते हो?” “रास्ते में था फिर दुकान आकर पूजा करने लगा। सिद्धार्थ ने अपनी पत्नी को संतुष्ट करने की नाकाम कोशिश की लेकिन सब बेकार था। “अच्छा! पूजा करने लगे या फिर फेसबुक पर चेटिंग करने लगे। दिन भर लैपटॉप पर मूवी देखना और फेसबुक पर लगे रहने के अलावा काम ही क्या करते हो। यहाँ मेरी सहेलियाँ वर्ल्ड टूर पर जा रही हैं और मुझको एयरपोर्ट देखना भी नसीब नहीं है। जो मन में आए करो तुम।“ यह कहते हुए उसकी पत्नी ने फोन ‘डिसकनेक्ट’ कर दिया। बेचारा सिद्धार्थ हाथ में फोन लिए हेलो- हेलो ही करता रह गया। सिद्धार्थ के जीवन का सपना था कि वो कहानी लिखे और उस पर फिल्म बनाए लेकिन घर और दुकान के चक्रव्यूह में फँसकर उसके हौसलों की उड़ान खत्म हो चुकी थी। ग्राहकों के बीच फंसा सिद्धार्थ अभिमन्यु की तरह इस मकड़ जाल से बाहर आने के लिए छटपटा रहा था। थोड़ी देर बाद सेल्सगर्ल उसके पास आई और ‘हाफ डे’ लेकर चंपत हो गई। अब वो अकेला ही इस रणभूमि में था। शाम को दुकान में ग्राहकों की भीड़ और अकेली जान सिद्धार्थ, करे तो करे क्या, अब उसको खुद ही सेल्सगर्ल से लेकर मैनेजर का काम देखना था। उधर सुबह- सुबह फोन पर लड़ने के बाद सिद्धार्थ की पत्नी को लगता है कि “उनको कुछ ज्यादा ही सुना दिया। चलो फिर से फोन करके उनको मना लेती हूँ।“ वो शाम को बाहर डिनर करने का प्लान बनाकर एकबार फिर पति को फोन करती है लेकिन ग्राहकों के बीच फंसा सिद्धार्थ अपनी पत्नी को बाद में फोन करने की बात कहकर काम में जुट जाता है। अब तो पत्नी का पारा गुस्से से सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। सिद्धार्थ की शामत अब तय थी!

सिर्फ सिद्धार्थ ही अपने सपनों को छोड़ कर जीवन के जंजाल में फंसा है, ऐसा नहीं है ये कहानी हर उस व्यक्ति की है जो सपने देखता है और उनको पूरा करने लिए छटपटा रहा है। ऐसी ही कहानी की दूसरी पात्र रिद्धिमा...


“अब इतनी रात में अकेले अपने लिए क्या खाना बनाऊँ, फ्रिज में ब्रेड और दूध होगा वही खाकर सो जाती हूँ। मम्मी का तो जब मन हुआ, बैग उठाया और भैया के पास दिल्ली चली गईं। मैं यहाँ पर अकेले अपनी उम्मीदों और सपनों का बोझ लिए रह जाती हूँ। न मेरी समय पर शादी ही की और न ही मेरे सपने को पूरा करने की छूट दी। जीवन भर, बस पढ़ो- पढ़ो का नारा बुलंद करती रहीं। पढ़- लिखकर एक नौकरी लग गई लेकिन उन सबकी बात मानकर मुझको क्या मिला ज़िंदगी से, अपने सपने पूरा करने का हौसला तक नहीं हासिल कर सकी। बस घर से ऑफ़िस, ऑफ़िस से घर। रात आठ बजे तक काम निपटाने के बाद बैंक से आकर 36 वर्षीय रिद्धिमा मिश्रा को अपने लिए खाना बनाना सबसे कष्टदायी काम दिख रहा था। वो चाहती थी कि जब वो घर आए तो कोई उसका भी इंतजार कर रहा हो। उसका सपना भी एक कलाकार यानि एक्टर बनने का था लेकिन अब देहारादून में बैंक की नौकरी कर अपना जीवन गुजार रही है। परिवार की महत्वाकांक्षा और उम्मीदों का बोझ ढो रही रिद्धिमा न तो शादी ही कर सकी और न ही कलाकार बनने का सपना पूरा हो पाया। ग्राहक और बैंक का टार्गेट पूरा करना ही लक्ष्य रह गया। फिर भी दिल के किसी कोने में एक उम्मीद जिंदा है कि एक दिन पूरी दुनिया उसके अभिनय को देखकर ताली बजाएगी।

मायानगरी मुंबई में कई सालों से स्ट्रगल कर रहे असीम मेहरा भी सिद्धार्थ और रिद्धिमा की तरह खुली आँखों से फिल्म निर्देशक बनने का सपना देखते हैं लेकिन इस सपने के चक्कर में अपने ही परिवार पत्नी, बेटी असीमा और बेटे अप्रतिम से दूर हो चुके हैं। उनके दिल में इस दूरी की कसक साफ नज़र आती है...


“तुम्हें हम लोगों को छोड़े हुए पूरे सात साल हो चुके हैं। असीमा अब ग्रेजुएशन में पहुँच गई है। वो बेटी होकर तुम्हारे लिए चिंतित रहती है। अप्रतिम भी अगले साल 12वी क्लास में पहुँच जाएगा। दोनों बच्चे अपने पिता के लिए तड़पते हैं लेकिन तुम हो जो धक्के खाकर भी अपने परिवार के पास आना नहीं चाहते हो। अगर मुंबई में अब भी तुम कोई किला फतह नहीं कर पाए तो मैं तुमसे तलाक ले लूँगी। क्योंकि अब न मैं और न ही मेरे बच्चे तुम्हारे सपने के पूरा होने का और इंतजार कर सकते हैं।“ कहानी का तीसरा पात्र 46 वर्षीय असीम मेहरा लेट नाइट अपनी पत्नी से चेटिंग कर रहा था लेकिन पत्नी के डेडलाइन देते ही दोनों की ऑनलाइन बातें खत्म हो जाती हैं। असीम का दर्द भी सिद्धार्थ और रिद्धिमा की तरह है। वो खुद को समझता तो यश चोपड़ा जैसा महान फिल्म निर्देशक है लेकिन अब भी एक अदद फिल्म मिलने की चाहत में मुंबई में संघर्ष कर रहा है। उसके सपने ने ही असीम की ज़िंदगी में तूफान ला दिया है। असीम एक यादगार फिल्म बनाना चाहता है लेकिन उसकी धर्मपत्नी असीम के निठल्लेपन से आजिज़ आकर वर्षों पहले उसको छोड़कर अपने मायके यानि ‘यूएस’ चली गई है। वो वहीं पर अपने परिवार यानि असीम और अपने दोनों बच्चों का बेहतर भविष्य देखती है। वो चाहती है कि असीम भी उनके साथ अमेरिका में बस जाए। असीम कुछ समय के लिए वहाँ गया भी लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए फिर से मायानगरी लौट आया। छोटी- मोटी शॉर्ट फिल्में बनाकर फिलहाल असीम अपने सपने को पूरा करने की कसरत कर रहा है।

सिद्धार्थ, असीम और रिद्धिमा तीनों के हाथों से वक्त रेत की तरह फिसलता जा रहा है। उनके अपने सपने हैं, उम्मीदें हैं और सबसे बढ़कर इन सपनों और उम्मीदों का सच करने का हौसला है लेकिन हालात के चक्रव्यूह में फंसकर हर नई सुबह के साथ अपने सपनों से दूर होते जा रहे हैं। अपने जीवन के आधे बसंत देख चुके इन हुनरमंद कलाकारों की अपनी- अपनी कहानी और दर्द है। दुनियाँ की नजरों में ये अब अधेड़ हैं, 40 वर्ष बीतने के बाद नई शुरुआत लगभग नामुमकिन सी हो जाती है। इनके लिए भी अब यही चुनौती है लेकिन हौसला है कि लाइफ में वो एक दिन ज़रूर आएगा जब ये हालात को पलटकर अपने सपनों की उड़ान भर सकेंगे।

अपनी पत्नी से ऑनलाइन नोकझोंक होने के बाद असीम नेट सर्फिंग करने लगता है तभी उसकी नज़र एक विज्ञापन पर पड़ती है। वो पढ़ता है कि दिल्ली में एक इंटरनेशनल फिल्म मेकिंग प्रतियोगिता होने जा रही है जिसमें दुनिया भर के नवोदित और दिग्गज कलाकारों को आमंत्रित किया जा रहा है। मानो उसकी लाटरी लग गई हो, यह देखकर वो खुशी से उछल पड़ता है। वो तुरंत ही प्रतियोगिता के लिए अपना आवेदन कर देता है। इस प्रतियोगिता के पहले राउंड के लिए दुनियाभर से 30 लाख आवेदन आते हैं जिसमें यूएस से असीम की बेटी असीमा और उसकी दोस्त एलिशा भी आवेदन करती है लेकिन यह बात वह अभी असीम को नहीं बताना चाहती है। असीमा को विश्वास होता है कि इस प्रतियोगिता के लिए ‘डैड’ भी ज़रूर हिस्सा लेने आएंगे। तब वो साथ मिलकर अपने पिता के सपने को पूरा करेगी। उधर सिद्धार्थ और रिद्धिमा को भी प्रतियोगिता के बारे में पता चलता है और वो भी इसमे शामिल हो जाते हैं। कई राउंड की स्क्रीनिंग के बाद फ़ाइनल राउंड के लिए दिल्ली में चुनिन्दा प्रतिभागी जुटते हैं। यहाँ पर प्रतियोगिता से पहले एक कार्यशाला का आयोजन कर प्रतिभागियों को एक दूसरे से रूबरू कराया जाता है।


कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में असीम अपनी बेटी को देख कर चौक जाता है। “डैड फिल्म बनाने के लिए आप तो हम सब को अकेले छोड़कर यहाँ लौट आए थे लेकिन मुझे आपके सपने पर भरोसा था इसीलिए यहाँ मैं आपका ही सपना पूरा करने के लिए आई हूँ।“ यह सुनकर असीम की आँखें खुशी से छलक जाती हैं। प्रतियोगिता में कश्मीर का 25 साल का एक लड़का आमिर भी सेलेक्ट होता है। वो भी फिल्मों का दीवाना है।


कार्यशाला के आयोजक सबका परिचय कराते हैं। जिसमें रिद्धिमा मिश्रा भी शामिल है। वो ऑफ़िस से छुट्टी लेकर आई है। परिचय पूरा होने ही वाला होता है कि क्लासरूम में एक नई दस्तक होती है। “हैलो! मेरा नाम सिद्धार्थ वासवानी है। फ्लाइट लेट थी इसलिए बैग लेकर सीधा क्लासरूम ही आ गया हूँ।“ पहली ही क्लास में लेट होने पर सिद्धार्थ को समय से आने की हिदायत मिलती है। सिद्धार्थ आमिर की बगल वाली सीट पर बैठने की कोशिश करता है तो आमिर उसको टोकता है। “अंकल यहाँ मेरा बैग रखा है। आप इधर आ जाओ। “ सिद्धार्थ आमिर को घूर कर देखता है। क्लास में सिद्धार्थ, रिद्धिमा और असीम के अलावा सभी प्रतिभागी 30 वर्ष से कम उम्र के हैं। ऐसे में उन तीनों के लिए नवयुवाओं के साथ प्रतियोगिता में बने रहने की गंभीर चुनौती हो जाती है। जो युवा जोश और हुनर से भरपूर हैं। कार्यशाला के साथ ही प्रतियोगिता का पहला टास्क शुरू हो जाता है। टास्क में प्रतिभागियों को अपने बारे में दो मिनट की शॉर्ट फिल्म बनानी है। आयोजक इस टास्क से यह समझना चाहते थे कि प्रतिभागी अपनी उम्मीदों और सपनों की उड़ान वो किस ऊंचाई तक ले जा सकते हैं।

पहले टास्क में असीमा, आमिर, एलिशा, निश्चय और रमन जैसे युवा अपनी नई सोच से निर्णायकों को प्रभावित करते हैं। मुश्किल चुनौती के बावजूद सिद्धार्थ, असीम और रिद्धिमा भी इस राउंड को जीतने में सफल रहते हैं।

अगले राउंड में युवाओं और असीम जैसे अधेड़ों का मुक़ाबला होना तय था। इस राउंड में सभी प्रतिभागियों को अपने- अपने पात्र गढ़ने हैं जिसको सामूहिक रूप से दूसरे प्रतिभागियों के किरदारों से जोड़ कर कहानी में पिरो सकें। इन्हीं पात्रों के आधार पर पाँच- पाँच प्रतिभागियों की तीन टीमें बना दी जाती हैं। सभी को अपनी टीम के लिए इच्छानुसार सदस्य चुनने की आज़ादी दी जाती है। ऐसे में अलग- अलग उम्र और सोच रखने वालों को एक साथ काम करना है और अपना सर्वश्रेष्ठ देना है। जिससे वो एक दूसरे का सपना पूरा करते हुए सबसे अच्छी फिल्म बना सकें। 


असीमा की दोस्त चाहती है कि वो उसकी टीम का ही हिस्सा रहे। इसलिए वो अपने पिता की जगह अपनी दोस्त एलिशा के साथ जाती है। अन्य तीन प्रातिभागियों में रमन, वेद और आर्यन को मिलाकर असीमा की टीम तैयार हो जाती है। दूसरी टीम में स्क्रिप्ट राइटर उत्कर्ष, मॉडल/ एक्टर स्वीटी, निर्देशक प्रफुल्ल, राहुल और ईशिता आते हैं। युवाओं के बीच अब तक सिद्धार्थ, असीम और रिद्धिमा तालमेल बैठाने में नाकाम रहते हैं जिससे नई उम्र के लड़के- लड़कियाँ उन तीनों को अपने लिए अनफ़िट मानने लगते हैं। असीमा चाहकर भी पिता कि टीम का हिस्सा नहीं बन पाती है। बाकी लोग अपनी- अपनी टीम चुन चुके हैं। सिद्धार्थ, असीम और रिद्धिमा के पास एक- दूसरे के ही साथ काम करने का विकल्प बचा है। ऐसे में बचे हुए सदस्य युवा आमिर और निश्चय के लिए इन अधेड़ों के साथ काम करना मजबूरी बन जाता हैं। आमिर आत्मविश्वास से भरा है लेकिन निश्चय को अपनी टीम पसंद नहीं आती है। फिर भी वो इन तीनों के साथ आ जाते हैं।

कार्यशाला में अपनी- अपनी स्टोरी पर तीनों टीमें स्क्रीन प्ले लिखकर ‘एक्ट’ तैयार करते हैं। असीमा और टीम उत्कर्ष पूरी तैयारी के साथ सम्पूर्ण कथानक रखते हैं। दोनों ही टीमें कहानी के अनुसार अपने पात्रों को तैयार करते हैं और बड़े ही प्रोफेशनल तरीके से नाटक को अंजाम देते हैं।

दूसरी ओर पिछले 15 सालों तक अपने ही दायरे में बंध चुके सिद्धार्थ, असीम और रिद्धिमा के लिए आमिर और निश्चय के साथ नाटक रचना सुकून देता है। सिद्धार्थ पहली बार दूसरों के पात्रों को महसूस कर टीम के लिए कहानी लिखता है। सालों बाद अभिनय करना रिद्धिमा के लिए ठंडी हवा का झोंका बन जाता है। असीम के लिए इस कहानी का निर्देशन करना नई ज़िंदगी मिलने जैसा होता है। फिल्म के हर पहलू को जीने वाले आमिर और निश्चय अपनी नई सोच से तीनों को रु-ब- रु कराते हैं। धीरे- धीरे सबको टीम की ताकत का अहसास होता है। चौथे राउंड में सभी टीम अपना नाटक दिखाते हैं। इस राउंड में असीमा की टीम पहले नंबर पर आती है। निर्णायक मानते हैं कि सभी टीमों का प्रदर्शन शानदार था लेकिन प्रतियोगिता में हार- जीत तो चलती ही रहेगी। टीम उत्कर्ष निर्णय से निराश हो जाती है। सिद्धार्थ, असीम और रिद्धिमा के लिए ये हार उनकी उम्मीदों के रास्ते को बंद करने वाली होती है। हार से निराश निश्चय कहता है कि “जब थके और हारे हुए खिलाड़ी मिलेंगे तो हिस्से में जीत कैसे आएगी।“ ये सुनकर आमिर भड़क जाता है। वो कहता है, ये पूरी टीम कि कोशिश थी। तीनों आमिर को शांत कराते हैं। उनको लगता है कि वो तीनों खुद से हार चुके हैं। शायद उनमें जीतने का हुनर ही नहीं है इसीलिए हिस्से में हार मिली। तीनों आमिर और निश्चय को बेस्ट ऑफ लक बोलकर अपने रूम में चले जाते हैं।

पांचवें राउंड में आयोजक बताते हैं कि “भले ही आपने नाटक कर लिया हो और जीत हार का भी पता चल गया हो लेकिन प्रतियोगिता अभी भी जारी है। यानि असली खेल तो अब शुरू होने वाला है। अब आपके सामने सबसे कठिन टास्क होगा। अगले सात दिनों में आपको 120 मिनट कि पूरी एक फिल्म बनानी होगी। सारे उपकरण, तकनीकी सपोर्ट और एक्टर जरूरत के मुताबिक आपको उपलब्ध करा दिये जाएंगे लेकिन ये टास्क किसी भी कीमत पर निर्धारित समय और नियमों के अनुसार ही पूरा करना होगा। “हाँ, अगर कोई भी प्रतिभागी आपसी सहमति से अपनी टीम को बदलना चाहता है तो उसको यह मौका ज़रूर दिया जाएगा।“ यह सुनकर निश्चय का चेहरा खिल जाता है। निश्चय कहता है कि वो अपनी टीम से संतुष्ट नहीं है इसलिए टीम को बदलना चाहता है। यह सुनकर आमिर, सिद्धार्थ, रिद्धिमा और असीम को काफी खराब लगता है लेकिन वो चुपचाप उसका फैसला मान लेते हैं। उधर असीमा भी एलिशा को समझाती है कि “यही वक्त है जब मुझको डैड की टीम ज्वाइन कर लेनी चाहिए और उनका सपना मिलकर पूरा करना चाहिए।“ यह सुनकर एलिशा को असीमा पर गर्व होता है और वह उसको टीम बदलने की अनुमति दे देती है। सभी खुश होकर उसको नई टीम में भेजते हैं। आपसी सहमति से दो प्रतिभागियों की अदला- बदली हो जाती है। बेटी के इस फैसले से पिता की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगती हैं और जीत के प्रति विश्वास भी बढ़ जाता है। 

अब फ़ाइनल टास्क के लिए तीनों टीमें तैयार हो जाती हैं। पहली दो टीमों के सदस्य अपने- अपने काम में जुट जाते हैं। तीसरी टीम में स्क्रिप्ट का जिम्मा सिद्धार्थ को मिलता है, असीम निर्देशन की कमान संभालता है। रिद्धिमा कास्टिंग हेड बनाई जाती है जो फिल्म के लिए कलाकारों का चयन करती है। आमिर और आसीमा क्रिएटिव हेड बनते हैं जिन पर पूरी फिल्म को बेहतर बनाने का दायित्व दिया जाता है। इस तरह सभी टीमें अब फिल्म के निर्माण में जुट जाती हैं। समय बहुत कम है जबकि काम बहुत ज्यादा। अब चुनौती होती है कि दबाव में अपना सर्वश्रेष्ठ कैसे दें। रिकार्ड कम समय में सर्वश्रेष्ठ फिल्म बनाने का लक्ष्य लेकर तीनों टीमें जुट जाती हैं। लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ ही सभी अपनी- अपनी मंज़िल की ओर तेजी से आगे बढ़ने लगते हैं। एक अदद अच्छी मूवी और सिद्धार्थ, रिद्धिमा, असीम, असीमा और आमिर के बीच पर चंद दिनों का ही फासला होता है। हर नया दिन उनके लिए सुनहरा अवसर लेकर आता है। ये पांचों एक टीम बनकर स्टोरी आइडिया, लोकेशन से लेकर हर सीन पर मिल कर काम करते हैं और साबित कर देते हैं कि सपने अभी मरते नहीं हैं। वो उम्र के किसी भी पड़ाव पर पूरे किए जा सकते हैं। बस अपने सपनों को पूरा करने का माद्दा और रिश्तों को निभाने का हौसला होना चाहिए।




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