कलियुग के राम
कलियुग के राम
प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, कोई स्वरूप नहीं होता। जब हम एक दूसरे की चिंता करते हैं, अपने रिश्तों को निभाते हैं तभी प्यार की सच्ची अभिव्यक्ति होती है। त्याग और अपनापन ही प्रेम की निशानी है। त्रेतायुग में भगवान राम ने उस प्यार को निभाया। अपनी माँ कौशल्या से, कैकेई से, अपने पिता दशरथ से, पत्नी सीता से और भाई लक्ष्मण और भरत से। उन्होने प्यार को त्याग से सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाया। अब कलियुग में एक बार फिर राम के प्यार की परीक्षा थी। अंतिम बेला तक कलियुग के राम का इंतजार था। आखिरी वक्त में लक्ष्मण उनके सामने पड़ा तड़प रहा था। पर लक्ष्मण की रक्षा करने वाले ये राम मौजूद नहीं थे। कौशल्या जी ने पूरे ब्रमाण्ड की ताकत इकट्ठा कर व्हील चेयर के पहिये को घुमाया, सारे स्वरनाद बेटे की रक्षा के लिए पुकारने में लगा दिये। उस बच्चे की, जिसने अपने बच्चे की तरह माँ की बीमारी के बाद उनका पालन किया था। ये लक्ष्मण के संस्कार थे जो उसको अपने बड़े भाई राम से मिले थे, ये प्यार ही था जिसने भगवान राम की तरह आज के लक्ष्मण को त्याग करना सिखाया था।
माँ की सेवा के लिए उसने अपना विवाह करने से इंकार कर दिया था। बालपन में ही पिता का साया उठने के बाद माँ ने राम और लक्ष्मण को अपने संस्कारों और शिक्षा से सींचा था। जिसके कारण बड़ा बेटा राम नासा में वैज्ञानिक हो गया था। लेकिन लक्ष्मण ने बड़े भाई की तरह घर और माँ को छोडने से इंकार कर दिया था। इसलिए शिक्षक बनकर शहर में ही बच्चों को पढ़ाता था। राम ने यू०एस में अपने साथ काम करने वाली लड़की से विवाह कर लिया था। अब अमेंरिका ही उसका देश था और वहीं उसका परिवार था। वो माँ से मिलने भी आता तो कुछ ही दिनों के लिए। कई बार वो माँ और भाई को अमेंरिका ले जाने की जिद कर चुका था लेकिन कौशल्या जी थीं जो अपने घर रामायण को छोडना नहीं चाहती थीं। उसमें उनके पति की यादें बसी थीं। वो अपने प्यार को अमर करना चाहती थीं। आखिरकार हार कर राम ने उनको ले जाने का विचार त्याग दिया था।
लेकिन वक्त का पहिया हर किसी के प्यार की परीक्षा लेता है फिर उसका रूप कोई भी हो। इस बार कौशल्या जी की पुकार के बाद आस- पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए थे। डाक्टर प्रशांत ने चेकअप करने करने के बाद कहा
“लक्ष्मण को तुरंत अस्पताल ले जाना होगा। हार्ट अटैक पड़ा है”
लेकिन लक्ष्मण को संजीवनी देने वाला कोई नहीं था। राम तक उसके भाई की मौत का समाचार पहुँच चुका था। अंतिम संस्कार के लिए राम का विदेश से आने का इंतजार हो रहा था। पति का सहारा छिनने के बाद अब बुढ़ापे की लाठी भी भगवान ने छीन ली थी। कौशल्या बिलकुल अकेली और रामायण वीरान सा राम का इंतजार कर रहा था। राम का इंतजार करते- करते नाते रिश्तेदरों ने मिलकर लक्ष्मण का अंतिम संस्कार भी कर दिया।
राम अपने परिवार के साथ वर्षों बाद रामायण में लौटा लेकिन अब लक्ष्मण उसके साथ नहीं था। बची थीं तो बचपन से लेकर जवानी तक की यादें। जिसमें लक्ष्मण उसके साथ साये की तरह था। प्यार की वो सारी निशानी मौजूद थी लेकिन राम, कौशल्या और रामायण सब अकेले हो चुके थे। तेरहवीं के ब्रह्म भोज के बाद चला- चली की बेला आ चुकी थी। राम को लौटना था। उसे अब एक ही चिंता थी लक्ष्मण के बाद माँ का क्या होगा? राम ने फिर माँ से जिद की, ‘माँ अब तुझे मै बिलकुल भी अकेला नहीं छोड़ सकता हूँ। तू हर हाल में मेंरे साथ चलेगी”
राम अपनी बात पर अड़ गया, तब माँ ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा “बेटा अब तो तेरे पिता के साथ ही तेरे भाई की भी यादें इस रामायण में बस गईं हैं। इनको छोड़ कर मै कैसे जा सकती हूँ? तू जा और खुश रह। मैं अपनी ज़िंदगी किसी तरह से काट ही लूँगी”
यह सुनते ही राम की आँखों से आँसू झलक आए और माँ से चिपक कर फफक- फफक कर चीख उठा। राम ने अपनी धर्मपत्नी को विदा करते हुए कहा मैं अपनी ज़िंदगी अब माँ की देखरेख में ही काटूँगा। जब भी तुम्हें मेंरे साथ की जरूरत महसूस हो, तुम भी ‘वालेंटरी’ रिटायरमेंट लेकर मेंरे पास चली आना। मैं मरते दम तक तुम्हारा इंतजार करूंगा।
