DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics Inspirational Children

4.5  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Classics Inspirational Children

हम

हम

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हम का भावार्थ हम सब हम सब लिखने भावार्थ ऐसे पारिवारिक सदस्य जो खून के रिश्तों से आपस में जुड़े हों। ये कहानी ऐसे ही नेपथ्य से जुडी एक सत्य कथा है जिसके पात्र सभी एक ही परिवार के सदस्य अर्थात् ऐसे पारिवारिक सदस्य जो खून के रिश्तों से आपस में जुड़े हुए हैं। १९०० का दशक था मेरे पिता एक कोलेज मे प्रिन्सिपल के पद पर कार्यरत थे साथ् ही होस्टेल के व्य्स्थापक भी। हम सब उनके परिवार के बच्चे माता पिता मिलाकर 8 लोग जिनमें 3 बहने 3 भाई और,माता व पिता। ये घटना जुलाई के महिने की है जब सब तरफ तेज बरिशों का मौसम होता है। उन दिनो शेहरों में भी सीवर व्यवस्था लचर होती थी जैसे आजकल है। तो सारे शहर मे सड्क पर पानी भरा रह्ता था जो कि कई बार तो हफ्ते 2 भी नहीं निकलता था।

ऐसे में क्या हाल होता होगा आप सोच सकते हैं, घर मे 5 मेहमान लोग आए हुए थे। माँ सुबह 2 उनके लिए अन्गीठी पर एक बढे पतीले में चाय बना रही थी। इतने में सबसे छोटा भाई ऊम्र कोई 4 साल जिसको भूख लगी थी माँ के आसपास जिद्द व उछलकूद कर रहा था खाने के लिए। माँ उसको समझा रही थी चाय के बाद भोजन देने के लिए।

के पास पडी पटली [ लकडी का आसन नीचे बेठने के लिए ] पर वो खडा हो गया और उस का सन्तुलन बिगड़ा और वो सीधा चाय के पतीले पर गिरा और चाय का उबलता पतीला पलट कर उसके ऊपर गिरा। ये सब वाक्या एक पल में घटित हो गया, उसकी कोमल देह पर उबली हुइ चाय का पानी उसको अन्द्रर तक देह्कते अन्गारों के समान जला गया। घर में हाहाकार मच गया। पिता जी उसको उठा कर बिस्तर पर ले गए जो औषधि साधन घर में उपलब्ध थे उसके शरीर पर लेप किया, लेकिन जब उसकी तक्लीफ कम न हुइ तो कमर तक भरे पानी मे उसे साइकल पर बैठा के माँ के साथ्, घर से 2 किलोमीटर दूर मेडिकल अस्पताल ले गए, 3 घन्टे की चिकित्सा कोशिश के बाबजूद उसको बचाया न जा सका। 

   हमारे पूरे परिवार पर दुख का पहाड टूट पडा। 

यहाँ से हमारे परिवार के संघर्ष व परिवार के हर सदस्य के आपसी सहयोग का प्रादुर्भाव होता है जो की sm *परिवार* विषय का ध्योतक भी है। हुआ युं के जैसे वो हमारा छोटा भाई हमारी सुख स्म्रिधि का लक्की टोकन था और उतने समय [ अपने जीवन काल - 4 वर्ष ] के लिए हमारे परिवार के साथ रहने भेजा गया था। उसके जाने के 5 दिन बाद पिता जी की प्राइवेट जोब छूट गई - जो की हमारे परिवार के लालन पालन के लिए एक मात्र आय का साधन थी - मुझसे बड़ी बहने स्नातक व स्नातकोत्तर कोलेज से फीस न दे पाने के कारण निकाली गई मैं व मेरे 2 और छोटे भाई बहन को स्कूल शिक्षा से निष्कासन लेना पड़ा। 

दोनों बड़ी बहनों ने मिडिल व् हाइ स्कूल के बच्चों के स्कूल में पढ़ाना शुरू किया व् मैंने एक टाइप की दूकान में टाइप सीखना व् कार्य, पिता रोजी रोटी की तलाश में हमारे स्थान से ४० मील दूर एक अन्य संस्था में कार्य करने लगे। घर के खर्च जैसे तैसे पूरे हो पा रहे थे बड़ी बहनों ने प्राइवेट अपनी शिक्षा पूरी की फिर दोनों ने कॉलेज में नौकरी चालु की मैंने एक चिकित्सक के साथ उनका असिस्टेंट पद संभाला और फिर उन पैसों से अपनी शिक्षा पूरी की। 

जिंदगी संघर्ष से भरी हुई रही पूरे ६ साल फिर आया सकूंन का पल एक एक दिन कैसे निकला ये बहुत लम्बी कथा है लेकिन परिवार के सभी लोगों ने मिल कर एक दुसरे की मदद से उस मुश्किल समय को प्रभु कृपा से आस्था धैर्य से पार किया।   

हमारे जीवन की प्रकृति हर समय परीक्षा लेती रहती है - मूल आधार जिसका रचनाकार ही जानता है मेरी जानकारी के अनुसार ये पृथ्वीलोक मृत्युलोक है व् हम सब यहाँ अपने पूर्व कर्मो की सज़ा काटने भुगतने को भेजे जाते हैं संतान परिवार के पुराने ऋण चुकाने के कार्य हेतु माता पिता के यहां जन्म देकर भेजे जाते हैं। मान्यता ये भी है की पूर्व जन्म के सभी कर्म सुख व् दुःख यही होते हैं प्रभु की नगरी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं बशर्ते हम अपने संस्कार अनुसार जीवन यापन करें अन्यथा आवागमन के दलदल में धरती का अंश बन के कर्म अनुसार सुख व् दुःख का वहन करें। परिवार के माध्यम से हम एक सुरक्षा घेरे में पलते बढ़ते हैं फिर एक दुसरे के सहायक भी होते हैं 

मेरे परिवार का वो समय कष्ट भरा था सबने यथा योग्य उसमे सहायता की फिर प्रकृति ने हमारी महनत देख हमें फल देने शुरू किये और आज उन संघर्ष की बदौलत हम सभी भाई बहन एक स्तम्भ के जैसे इस समाज में स्थापित हुए है। 


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