भागवत ही भगवान है
भागवत ही भगवान है
मैंने अभी अभी माँ की गोदी से उतरना सीखा था। और मन और मस्तिष्क एक अजीब से चुलबुली फिराक में चहकता फिर रहा था। कुछ भी दिखता था आसपास तो एक अबोध बालक सा उसकी स्क्रीन शोट लेता और सेर्चमोड पे डाल देता भले ही पल्ले पड़े न पड़े। खैर, एक दिन की बात है काफी चैतन्यता से हम इधर उधर खोज रहे थे की कानों में एक मधुर वाणी माँ की वाणी से मिलती जुलती पड़ी । दिखा कुछ नहीं। हम समग्र चेतना से सुन ने लगे समझ तो आना नहीं था मगर बिना ज्ञान के कोई भी प्रतिक्रिया उचित नहीं थी सो सुनते सुनते सो गये १ घन्टे बाद आँख खुली तो समझ आया बिस्तर गीला। अर्थात निकल गई थी सोते सोते। ये तो रोज की बात थी खैर बोलना तो आता कहाँ था सो रोने लगे। माँ आई फिर से साफ सूफ़ करके हमें सूखे पर लिटाया और थोड़ा दूध पिलाया हम फिर से मस्त और काम ही क्या था हमारा, अब साफ सफाई तो हम कर नहीं सकते थे। फिर एकान्त हुआ तो ध्यान आया वही वाणी सुनाई पड़ी। हम फिर से उसकी मोहिनी में खो गए | मतलब तब से लेकर आज हम इत्ते बड़े हो गए हैं आज जब समझ आया कि ये भागवत थी तो भागवत हमें ऐसे ही मोह लेती है। अब सुनिए उसका निचोड़ भागवत से हमें क्या मिला - संस्कार, संस्कृति, कर्म, और कर्म की महत्ता जीवन की दार्शनिकता को अगर समझना है और अध्यात्म को समझना है तो फिर और क्या हो सकता है, अगर कुछ होता भी या होगा भी तो मात्र अनर्थक। मेरा तात्पर्य कहने का ये है बन्धु की दुधमुंहे की मेरी वो उमर और परिपक्व ये उमर भागवत ही अब टक मेरे लिए भगवान है। बोलो श्री श्री राधे कृष्ण।
