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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Romance

3  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Romance

सृजनकरिता

सृजनकरिता

2 mins
180


मेरी और उसकी पटती नहीं थी वो ठहरी सुन्दर स्मार्ट अमीर बातूनी और मैं उसके एक दम विपरीत। चुपचाप नोन स्मार्ट मिडिल क्लास। लेकिन फिर भी किसी न किसी बहाने से वो मुझे कोंचती रेहती थी, ये बहुत अचम्भे की बात थी, एक दिन मैंने पूछ ही लिया, जब हम सायरा लेक पर यूं ही टहलते टहलते पहुँच गए उस रोज भीड़ कम थी इस से पहले मैं उस से कुछ पूछता वो ही बोल बैठी - हेल्लो अरुण - मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ - मैं सकपका गया उसके चेहरे हाव भाव को देख उसका मस्तक उसकी चमक देख, उपर वाले ने उसको फुर्सत से बनाया था सच में वो किसी राजकुमारी से कम नहीं थी। अपनी किस्मत को मैं सराहता था कि वो मेरी गर्ल फ्रेन्ड है लेकिन फिर अपने को देख मन सिकुड़ जाता है रह रह के। उसने मुझे चुप देख फिर टोका हेल्लो क्या हुआ क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती - मैं एक दम से सम्हला फिर बोला सच सुनोगी - बोली अरे तो क्या मैं झूठ सुन ने को यहाँ हूँ एक दम साफ बोलना - बोलो - तो सुनो मैं बोला - तुम इतनी अच्छी हो के कुछ कहना मुश्किल है मैं हमेशा अपनी किस्मत को देख देख उपर वाले को धन्य धन्य कहता रहता हूँ - लेकिन - लेकिन क्या वो बोली बोलो बोलो यही ना कि तुम - मेरे लायक नहीं यही ना मैं बोला हाँ यही सच है - इतना सुन कर वो एकदम से मेरे गले लग गई और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए - मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो उसे देखता रहा, बोली अब तो मैं झूठी हो गई तेरे नाम से तेरे जैसी - अब हम दोनों एक हो गए ठीक - मैं प्रभु की सृजन्कारिता को सराहता रहा और दूर कहीं सूरज अपनी दैनिक यात्रा पूरी कर - पश्चिम की और प्रस्थान हेतु चलायमान हो रहा था मुस्कुराता हुआ -- अपनी रश्मियाँ हम दोनों के मस्तक पर सुशोभित करते हुए अनन्त में लीन हो गया। 



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