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Priyanka Gupta

Romance Tragedy

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Priyanka Gupta

Romance Tragedy

हम में मैं कहाँ हूँ ?

हम में मैं कहाँ हूँ ?

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मेरे प्रियतम,

शायद मुझे ये कहने का हक़ तुमने दिया ही नहीं या मैंने कभी माँगा ही नहीं।

मेरे सबसे अच्छे दोस्त,

वह तुम अब क्या ;कभी भी नहीं थे 

इसलिए सिर्फ तुम,

जाने से पहले सोचा कि मैं भी कुछ लिख ही दूँ .लेकिन तुम पढ़ना जरूर वह भी अंत तक ;बीच में ही न छोड़ देना, जैसी तुम्हारी आदत है;हर काम को अधूरा ही छोड़ देते हो .

तुम हमेशा से एक लेखक बनना चाहते थे। लेकिन एक मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण लेखन को एक कैरियर विकल्प के रूप में चुनना तुम सोच भी नहीं सकते थे। मम्मी पापा के दबाव में या खुद ही पहले आर्थिक रूप से स्थिरता प्राप्त करने के लिए तुमने engineering कॉलेज में एडमिशन ले लिया।

वहीँ तो हम पहली बार मिले थे। मैं क्लास की सबसे शर्मीली लड़की और तुम क्लास के सबसे बेबाक लड़के। सही कहते हैं, "विपरीत ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। " लेकिन तुम कहाँ, मैं हुई थी तुम्हारी तरफ आकर्षित। तुमने तो शायद कभी मुझे ठीक से देखा भी नहीं था। वैसे भी क्लास की सभी लडकियां तो तुम्हे पसंद करती थी। अक्सर जब भी तुम्हे मैंने चोर नज़रों से देखा, तितलियों से ही घिरे हुए पाया। इसलिए ही तुम्हारे दोस्त भी तुम्हे कृष्ण कन्हैया कहकर चिढ़ाते थे। तुम चाहे मुझे देखते या न देखते, मेरी नज़रें कभी तुमसे हटती ही नहीं थी।

लेकिन एक दिन अचानक वह हुआ, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। तुमने मुझसे खुद से बात की।तुमने मुझसे मैथ्स के नोट्स मांगे।मैं मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी कि ये तो लड़कों का लड़कियों से बात शुरू करने का बरसों पुराना फार्मूला है, जो आज भी काम आता है। मैंने तुम्हे यह बताते हुए नोट्स दे दिए कि आज तो मेरे पास लास्ट के ४ चैप्टर्स के ही नोट्स हैं, बाकी कल ले लेना। मैं भी तो तुमसे बातचीत चलती रहे, उसका बहाना ढून्ढ रही थी।

लेकिन मेरे ख़ुशी तुरंत ही काफूर हो गयी जैसे ही तुमने पुछा, " नव्या तुम्हारी ही रूममेट है न ?"मैंने अनमना होते हुए जवाब दिया, "हाँ, क्यों ?"

"नव्या आज आएगी नहीं क्या ?" तुमने नोट्स बैग में रखते हुए नव्या की सीट की तरफ देखते हुए पूछा।

मन तो हुआ कि तुमसे तुरंत अपने नोट्स छीन लूँ और बोल दूँ कि नव्या से ही ले लेना। लेकिन तुम्हारे कहने के अंदाज ने या सिर्फ तुमसे बात करने की हसरत के कारण ; बात बस, जुबान पर आकर रुक गयी।

"नव्या के घर से कोई मिलने आया है, इसलिए वह २ घंटे देर से आएगी। उसने प्रोफेसर से भी परमिशन ले ली है। " मैंने तुम्हे बता दिया था।

धीरे-धीरे हमारी बीच बातचीत होने लग गयी।तुम्हे लिखने का शौक था और मुझे पढ़ने का। तब तुम कभी -कभी अपनी कुछ छोटी -मोटी कवितायेँ ; कवितायेँ नहीं तुकबंदी कहना सही होगा, मुझे दिखाते थे। मैं तुम्हारा दिल रखने के लिए तुम्हारी उन तुकबंदियों की प्रशंसा कर देती थी। धीरे -धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए, ऐसा तुम्हीं ने कहा था। मुझे तो तुम दोस्त से कुछ ज्यादा ही लगते थे।

तुमसे होने वाली बातचीत से जिस दिन मुझे पहली बार पता चला कि तुम नव्या को पसंद करते हो, कसम से उस दिन पूरी रात तकिये में अपना सर घुसाये मैं रोती रही और कनखियों से नव्या को ताकती रही कि उसमें ऐसा क्या है ? जो मुझमें नहीं।

मैंने सोच लिया था, तुमसे सेफ डिस्टेंस बनाकर रखूँगी। ज्यादा नजदीकियाँ मुझे ही तकलीफ देगी। लेकिन तुम तो हमेशा से ही अपने बारे में सोचते रहे हो। तुम्हारी फीलिंग्स, तुम्हारी बातें, तुम्हारी वो तुकबंदियाँ सुनने वाला तो कोई न कोई तो चाहिए ही था, तुम्हे अपने अलावा न तो आज ही कोई दिखता है और न ही तब कोई दिखता था।

आज सोचती हूँ तो लगता है कि तुम जैसे स्वार्थी इंसान से मुझे प्यार ही क्यों हुआ था ?

तुम मुझसे ज्यादातर नव्या की ही बातें करते थे। तुमने मेरे जरिये कई बार नव्या से बात भी करने की कोशिश की। नव्या शायद तुम्हे उतना महत्व नहीं दे रही थी। तुम कभी कभी बहुत उदास भी हो जाते थे, तब ही तुम्हे इस कंधे की याद आती थी। मैं भी बेवकूफ हर वक़्त तुम्हारे लिए उपलब्ध रहती थी। मैं तुमसे प्यार करती थी न, शायद इसलिए प्यार में अंधी होकर तुम्हे सहारा देती जा रही थी।

हम लोग फाइनल ईयर में आ गये थे। लेकिन तुम अभी तक नव्या को अपने दिल की बात नहीं बता पाए थे। हम अभी भी दोस्ती दोस्ती के खेल में ही अटके हुए थे। फिर तुम्हारा, हाँ भई मेरा भी कैंपस सिलेक्शन हो गया। सबसे सुखद या दुखद कहूँ, हमारी नौकरी भी एक ही कंपनी में लगी। नियति न जाने मेरे लिए क्या तय कर चुकी थी ?मैंने तुम्हे समझाया कि अब तो तुम नव्या को अपने दिल की बात बता ही दो। अभी नहीं बताया तो फिर कब बताओगे ?

आखिर तुमने नव्या को अपने दिल की बात बता ही दी। लेकिन नव्या ने तुम्हे साफ़ साफ़ इंकार कर दिया, क्यूंकि उसकी ज़िन्दगी में तो पहले से ही कोई और था। तुम्हे फिर कंधे की जरूरत पड़ी, मैं तो थी ही। तुम्हारी बात सुनकर मुझे समझ ही नहीं आया था तब कि मैं उदास हूँ या खुश। तब तुमने मुझे कहा था कि, "यार, तू सिर्फ मेरी दोस्त ही नहीं है, बल्कि माँ, बहन सब कुछ है। हर मुसीबत से मुझे बचाती है। मेरा ध्यान रखती है। "

तुम्हारी शायद ऐसी बातों से ही में पिघलकर हर बार तुम तक आ जाती थी। जबकि जानती थी कि तुम्हारी नींदें चुराने वाली मैं नहीं हूँ ;नव्या है। तुम तो मेरे पास सुकून की तलाश में आते थे। अपने दुःख को कम करने आते थे। कॉलेज के साथ ही नव्या वाला तुम्हारा चैप्टर तो क्लोज हो ही गया था।

शनि की महादशा भी ७ साल में ख़त्म हो जाती है, लेकिन मेरी ज़िन्दगी के तो तुम स्थायी शनिचर बन गए थे। हम दोनों साथ ही काम कर रहे थे। तब ही तुमने एक दिन मुझसे सीधे ही शादी के लिए पूछ लिया, " यार मुझे तेरी बहुत जरूरत है। तू मुझे और मेरे सपनों को अच्छे से समझती है। घरवाले शादी के लिए दबाव बना रहे हैं, तो तुझसे बेहतर लड़की मुझे कहाँ मिलेगी ?मुझसे शादी कर ले न। "

तब भी मैं तुम्हे न कहाँ कह पायी। अभी भी तुम्हारी ज़रुरत, तुम्हारे सपने, तुम्हारे घरवाले, तुम्हे समझने वाली यही सब था। लेकिन मेरे प्यार ने मुझे फिर डुबो दिया। दिमाग की न सुनकर दिल की सुनी। तुमसे शादी के लिए हाँ कर दी । हमारी शादी हो गयी।

शादी के बाद भी मैं तुम्हारी दोस्त, माँ, बहिन सब बन गयी, लेकिन प्रेयसी कभी नहीं बनी। तुम्हारे मुँह से अपनी तारीफ सुनने के लिए मेरे कान तरस गए। इसी बीच तुमने अपने सपने, हाँ तुम्हारे सपने, लेखक बनने के सपने के लिए, नौकरी भी छोड़ दी। मैंने सोचा था कि तुम कभी तो मेरी इच्छा, मेरे सपनों के बारे में पूछोगे। लेकिन तुमने कभी नहीं पूछा।

तुमने लिखने के लिए नौकरी छोड़ी। लेकिन आज ३ साल बाद भी तुम वहीँ के वहीँ हो। इन तीन सालों में हमने ३ घंटे बैठकर भी बात नहीं की। मैं सुबह तुम्हे सोता छोड़कर ही ऑफिस चली जाती हूँ। तुमने एक दिन भी मुझे ऑफिस के लिए see off नहीं किया। रात को आकर डिनर बनाती हूँ। सोचती हूँ, डिनर करते हुए हम बातें करेंगे, लेकिन तब तुम या तो कोई किताब पढ़ते हो या कभी तुम्हारे स्टुपिड से स्टैंड उप कॉमेडी shows देखते हो।

वीकेंड पर भी अगर कहीं बाहर जाए तो, तुम या तो बुक शॉप में जाते हो या स्टेशनरी शॉप में। तुमने मुझे अंतिम बार ध्यान से कब देखा था ?अगर पूछूँगी तो शायद तुम्हे याद भी नहीं होगा। तुम रात को बिस्तर पर भी अपनी जरूरत पूरी करके सो जाते हो। मैं क्या चाहती हूँ, कभी नहीं पूछते। हमने बात करना तो छोड़ ही दिया है।

मैंने सोचा था शादी के बाद तो तुम मुझे कभी तो अपनी प्रेयसी भी मानोगे। लेकिन नहीं तुम अपने आप में ही इतना खो गए कि मुझे भूल गए या मैंने ही अपने आपको तुम्हे भुलाने दिया। तुम्हे प्यार देते-देते अब मैं इतनी खाली हो गयी हूँ कि मुझे अपने आप से ही नफरत हो गयी है। अब बस, अब मैं यह घुटन भरी ज़िन्दगी और नहीं जी सकती। मैं हमारा घर, तुम्हें और तुम्हारे सपने सदा के लिए को छोड़कर जा रही हूँ।

सिर्फ मैं।


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