सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational

4.7  

सोनी गुप्ता

Abstract Inspirational

हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी का युद्ध

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हल्दी घाटी युद्ध में असंख्य शूरवीरों ने वीरगति पाई थी, 

घोड़े चेतक ने भी अपने स्वामी के लिए जान गवाई थी, 

पूरे भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध जिसमें, 

महाराणा प्रताप ने अपनी अप्रतिम वीरता दिखाई थी I

( एक ऐतिहासिक युद्ध) 

वीरता की माटी हल्दी घाटी भारत की भूमि पर कई बड़े-बड़े युद्ध हुए , जिसने भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया Iऐसे ही एक युद्ध हुआ हल्दी घाटी का युद्ध, यह युद्ध बेहद ही चर्चित युद्ध रहा और आखिर में प्रश्न छोड़ गया कि हल्दीघाटी का युद्ध किसने जीता I मेवाड़ और मुगल शासकों के बीच युद्धों का एक लंबा इतिहास रहा है I तो आइये विस्तार से इस युद्ध के बारे में जानते हैं I


18 जून 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था I मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया था Iजिसका नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से भील जनजाति का सहयोग मिला। इसमें अकबर बादशाह की हार हुई थीI


1568 में चित्तौड़गढ़ की विकट घेराबंदी ने मेवाड़ की उपजाऊ पूर्वी बेल्ट को मुगलों को दे दिया था। हालाँकि, जो बचे हुए जंगल और पहाड़ी राज्य अभी भी महाराणा के नियंत्रण में थे। मेवाड़ के माध्यम से अकबर गुजरात के लिए एक स्थिर मार्ग हासिल करने को तैयार था I जब प्रताप सिंह को राजा का ताज पहनाया गया, तो अकबर ने कई दूतों को भेजा जो महाराणा प्रताप को इस क्षेत्र के कई अन्य राजपूत नेताओं की तरह एक जागीरदार बना दिया। 


कहते हैं न आग में यदि घी डालो तो और भड़कती है I जब महाराणा प्रताप ने मुगलों की संधि स्वीकार नहीं की I अकबर ने क्रोध में आकर आपसी रिश्तो में ही तो फूट डालने की योजना बनाई I जगमल सिंह मेवाड़ की राजनीति से नाराज होकर अकबर से मिल गया, अब अकबर ने 80,000 सैनिकों को मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा Iअकबर ने अपने कबीले के वंशानुगत विरोधी, मेवाड़ के सिसोदिया के साथ युद्ध करने के लिए कछवा, मान सिंह की प्रतिनियुक्ति की। राणा की सेना की संख्या 20000 थी, जिन्हें मान सिंह की 80,000-मजबूत सेना के खिलाफ खड़ा किया गया था। महाराणा प्रताप के बहादुर सेनापति हकीम खां सूर के बिना हल्दीघाटी युद्ध का उल्लेख अधूरा है। 


महाराणा प्रताप ने लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों के बल को मैदान में उतारा। मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह ने किया था I तीन घंटे से अधिक समय तक चले भयंकर युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने खुद जख्मी हो गए थे Iकहा जाता है कि लड़ाई का कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकला थाI यह जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली थी I इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर बरस पड़ी थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी I


उसने मातृ भूमि के खातिर, जंगल में कई साल गुजारे थे, 

गूंज उठी थी हल्दीघाटी, हर इंसान वहाँ थर्राया था, 

तब चेतक पर चढ़ महाराणा ने, अपने भाला से दुश्मन को, 

नाकों चने चबाया था I

इस चंदन की माटी पर जाने कितने सिर कट गए, कितनों ने अपना रक्त बहाया I इस माटी का जिसने तिलक लगाया कितने ही वो शहीदों हुएI लेकिन मरते दम तक हार नहीं मानी I हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप ने 

बहलोल खान को घोड़े सहित काट दिया था I कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप और अकबर बादशाह के बीच युद्ध हो रहा था तो जो लोग युद्ध कट गए थे , उनका रक्त बहकर तालाब में गया था और वह तालाब खून से भर गया था I इन बातों को लिखते हुए ही मेरे हाथ कांप रहे हैं I सोचो जब यह युद्ध हुआ था तो कैसा भयावह दृश्य होगा I


मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर की विशाल सेना का आमना-सामना हुआ था I महाराणा प्रताप खुद इस युद्ध में मोर्चा संभाले थे तो अकबर की ओर से कमान मान सिंह के हाथों में थीI चार घंटे चले इस युद्ध में कई लोगों की जानें गई थीI


दोनों सेनाओं के मध्य गोगुडा के निकट अरावली पहाड़ी की हल्दीघाटी शाखा के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा प्रताप पराजित हुए। लड़ाई के दौरान अकबर ने कुम्भलमेर दुर्ग से महाराणा प्रताप को खदेड़ दिया तथा मेवाड़ पर अनेक आक्रमण करवाये, किंतु प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं की। युद्ध राणा प्रताप के पक्ष में निर्णायक नहीं हो सका। राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल सम्राट अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता थाI साल 1576 में हुए इस भीषण युद्ध में अकबर को नाकों चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई I



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