हीरा
हीरा
प्राचीन भारत में कुछ ऐसी भी जनजातीयाँ थी, जिनका पेशा था- नाचना। हाट-मेलों में और रास्तों के किनारे नाचने गानेवाली कई प्रजातीयाँ आज भी मौजुद है। ऐसी ही एक टोली बंबई में समुद्र के किनारे आयी हुई थी, जिनमें एक ढोल बजाने वाला था और एक नाचने वाली लडकी, जिसकी उम्र बारह-तेरा साल की होगी, ठुमके लगा रही थी। उसका नाम था हीरा।
हीरा, राजस्थान के बाडमेर जिले में स्थित एक कस्बे से आयी थी। उसके साथ उसकी माँ और पिता थे। हीरा नाचने में बहुत निपुण थी। वह ढोल की थाप पर कमर हिला-हिला कर नाच रही थी। घीरे-धीरे समुद्र किनारे आने वाले लोगों की अच्छी खासी भीड लग गयी। भीड का उत्साह देखकर उसके पिता और जोर से ढोल बजाने लगे। ढोल की थाप और लोगों की तालियों की आवाज एक अंग्रेज के कानों तक पहुँची। वह एक शौकिया छायाचित्रकार था। उसके गले में एक कैमेरा लटका हुआ था। उसे वह धून अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी।
वह भीड के नजदिक पहुँचा और उस बालिका का नृत्य देखने लगा। थोडी ही देर में वह घेरे को चीरता हुआ अंदर पहुँच गया और अलग-अलग कोनों से उनकी तस्विरें खिंचने लगा। लोगों ने भी जी भर कर उनकी तारिफ की और ढेर सारे पैसे इनाम में दिये। हीरा, पहली बार इतने पैसे एक साथ देख रही थी। वह अपने पिता से बोली, “बापू, इतने पैसे तो हमने आज तक नहीं कमाये होंगे, है ना?”
“हाँ री, सब तेरे नाच का कमाल है छोरी।“ हीरा की माँ उसे अपने गले लगा कर बोली।
आज रात हीरा को नींद नहीं आ रही थी। वह अपने आप को किसी फिल्म की नायिका के रूप में देख रही थी। वह सपने में भी मुस्कुरा रही थी। आज कितने दिनों बाद उसे सराहना मिली थी। वह तो खाना भी ठिक से खा नहीं पायी थी। आज तो सारी भूक लोगों की तालीयों से ही भर गयी थी। वह सपने में भी नाच रही थी। सपने के पृष्ठभुमि में उसे एक गाना सुनायी दे रहा था, सच हुए सपने तेरे..!
“हीरा, उठ। चलना नहीं है क्या आज?” उसके पिता ने उसे आवाज दी।
हीरा तो आज किसी फिल्म की नायिका से कम भाव नहीं खा रही थी।
“आयी बापू।“ कह कर वह नहाने चली गयी।
आज फिर शाम होने से पहले वे तीनों समुद्र के किनारे पहुँच गये। हीरा के पिता ने ढोल बजाना शुरू कर दिया। तभी कहीं से वही, कल वाला फोटोग्राफर आ पहुँचा। उसने हीरा को उसके नृत्य करने के छायाचित्र दिखाये। उन्हें देख कर हीरा फूले नहीं समा रही थी।
“बापू, देख तेरी छोरी किसी फिलमवाली से कम नही लागे है।“ हीरा अपने फोटो हाथ में लेकर नाचने लगी। गोल-गोल, गोल-गोल। धीरे-धीरे उसकी आँखे बंद होने लगी। वह खुद को बंबई की एक बडी हिरोईन के वेष में दिखने लगी। वह एक कार से उतरी और किसी फिल्म के प्रिमीयर के लिये धीरे-धीरे आगे बढती हुई हाथ हिला रही थी। उसके माता-पिता खडे ताली बजा रहे थे और वह फोटोग्राफर उसके आगे-आगे फ्लैश चमकाते हुए उसके फोटो ले रहा था।
