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Manish Gode

Inspirational

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Manish Gode

Inspirational

आजादी

आजादी

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आजादी क्या होती है, उसके क्या मायने होते है, ये किसी कारागृह में कैद किसी बंदी से पुछे..! तब पता चलता है कि हम जो खुली हवा में साँस ले रहे है, कितने भाग्यशाली है..! अंदर और बाहर, हवा, पानी, पृथ्वी, आकाश सब एक ही है, फिर भी उसे ग्रहण करने वाला कैदी बडी बेचैनी महसुस करता है.., ऐसा क्यों..?

किसन एक ऐसा ही कैदी था, जिसे बिना किसी अपराध के जेल में बंद कर दिया गया था। क्यों की वह अपनी निर्दोषता साबित नहीं कर पाया था। सारे हालात और गवाह उसे अपराधी साबित कर रहे थे, उसके खिलाफ थे। किसन, जिसकी माली हालत काफी कमजोर थी, अपने आप को निरपराध साबित करने के लिये उच्च न्यायालय में अपील भी नहीं कर पा रहा था। गरिबों का कोई वाली नही होता। उसे सामाजिक न्याय व्यवस्था में विश्वास करना ही पडता है। गरिब यदी अशिक्षित हो फिर क्या देखना, काला अक्षर भैंस बराबर..! कानुन भी उसी की मदद कर पाता है, जिसके जेब में दमडी हो। बिना नजराने के तो काले कोट वाले बात भी करने को तैयार नहीं होते।

किसन जेल की चार दिवारी में बंद अपने भाग्य को कोस रहा था। उसे रह रह कर अपनी घरवाली – भँवरी का ख्याल आ रहा था। अकेली अपनी लाडो को कैसे सँभाल पायेगी, इस दुनिया से अकेली कैसे लड पायेगी.., भगवान ही जाने। रात रात भर निंद नहीं आती थी। पीठ दिवार से लगाये उकडु बैठा बैठा अपनी किस्मत को कोसता रहता। ना उसका रघु से राडा होता, ना बात का बतंगड बनता..! ना रघु उसके खेतों को तहस नहस करता, ना किसन उसके घर को आग लगाने की धमकी देता..!

हाँ.., धमकी ही तो दी थी..! फिर सचमुच उस रात रघु के घर को आग कैसे लग गई थी..! किसन के कुछ समझ नही आ रहा था। उसने तो धमकी भर दी थी..! फिर वो आग किसने लगायी थी..? किसन हमेशा इसी उधेडबुन में लगा रहता..! रात यों ही कट जाती। प्रातः चार बजे जब कैदियों के उठने का बिगुल बजता तब उसे अपना होश आता। नित्यकर्म से फारिग होकर सुबह सभी कैदियों को वर्जिश व्यायाम करने को कहा जाता। शाम को फिर से खेलने का समय होता था। किसन अपने अन्य साथीयों के साथ व्हॉलीबॉल खेला करता था। बॉल जब नेट से उपर को उठती तब उसका मन भी बॉल के साथ उपर को उठ जाता..! उसे बॉल के नसीब से ईर्ष्या होने लगती..! खुद तो जगह से हिल नही पाती और हमारे सामर्थ्य के भरोसे, चार दिवारी के बाहर का दृश्य देखने को उछलती है..! किसन को बॉल की किस्मत से जलन होने लगी। जेल की उँची चार दिवारी के पार कितना सुंदर संसार होगा, बाहर से गुजरने वाला हर एक इंसान, चाहे वह गरीब हो या अमीर, कितना खुशनसीब होगा..!

कोई स्कुटर पर चला जा रहा होगा तो कोई साईकिल पर..! कोई पैदल ही अपने अपने घर को चला जा रहा था। हर किसी को अपनो के बीच पहुँचने की जल्दी हो रही होगी। तभी लोग शाम को दफ्तर से घर की ओर ऐसे भागे चले जाते है मानो कोई पिछे लगा हो उनके। सात आठ बजे तो रास्तों पर इतनी भिड हो जाती है कि घंटो जाम नही खुलता..! सभी को अपने अपने आशियाने तक पहुँचने की जल्दी होती है। किसी को घर लौटने के साथ साथ सब्जी-भाजी, तरकारी, किराना इत्यादी वस्तुओं की खरिदारी भी करनी होती है। इस वजह से जगह जगह रास्ते के किनारे पार्किंग लग जाती है..! सभी को दुकान के आगे ही गाडी पार्क़िंग चाहिये होती है। चाहे वहाँ जगह हो या नही इससे उसे कोई परवाह नही। गाडी चाहे डबल पार्क़िंग में लगे तब भी चलेगा..!

किसन को भी अपने घर पहुँचना था, जल्द से जल्द..! वहाँ उसकी बिवी भँवरी अकेली होगी..! कहीं कोई उँच-नीच हो गई तो..? कहीं उसने अपनी जान दे दी तो..? हजारों सवाल आ रहे किसन के दिमाग में..! उसे ऐसा लग रहा था की दिमाग अब फटा, तब फटा..!

तभी पास ही के एक पेड पर किसन को एक चिडीया दिखी। वह बडे चाव से उस पर लगे फलों को खा रही थी। खाने के बाद वह फुर्र से उड कर बाहर की तरफ चली गयी। किसन को उसकी किस्मत पर जलन होने लगी। वह कभी भी जेल परिसर के अंदर आ सकती थी कभी बाहर को जा सकती थी।

“काश, मैं भी एक चिडीया होता तो फुर्र से उड कर घर चला जाता.., अपनी भँवरी को मिल आता, हाल हवाला ले लेता..!” किसन मन ही मन पुटपुटाने लगा।

“ऐ किसन..., क्या सोचने लगा भाया..!” उसका एक साथी बोला।

किसन का मन खेलने में नहीं लग रहा था। वह बरामदे के बाहर लगी फुलों की क्यारी में पानी देने में मशगुल होने की चेष्टा करने लगा। सुंदर सुंदर फुल उसका मन बहलाने में मददगार सिध्द हो रहे थे। शाम को खाने की मेज़ पर एक बुढे बाबा उसके पास आये और कहने लगे, “क्या बात है बेटा..? देख रहा हुँ जब से आये हो तब से कुछ उखडे उखडे से हो..? क्या बात है, कुछ बोलोगे नही, बताओगे नही तो मन हल्का कैसे होगा..? बोलो बेटा, बोलो..!”

किसन की आँख में आँसु आ गये। खाना खा लेने के बाद वह बोला, “बाबा मेरे साथ बडा अन्याय हुआ है। मुझे जान बुझ के फँसाया गया है इस केस में.., मेरा कुछ भी गुन्हा ना होते हुये भी मुझ पर झुठे आरोप लगाये गये है..!”

“कोई भी कभी किसी पर झुठे आरोप नही लगा सकता किसन..!” बाबा बोले, “ईश्वर द्वारा रचित इस दुनीया में पत्ता भी बिना उसकी मर्जी के किसी के सिर पर भी नहीं गिर सकता तो तुम हम मनुष्य तो ईश्वर की खास रचना है..! इतनी बडी गलती तो वह कभी नहीं कर सकता बेटा,,! जरूर इसमें कुछ भेद होगा.., इसमें भी तुम्हारी कोई भलाई होगी..! शायद इससे भी बडा कोई पाप तुमसे ना हो जाये, इसलिये तुम्हें यहाँ बँद कर दिया हो.., क्या ये नहीं हो सकता..! सब्र रखो.., सब ठिक हो जायेगा..! उसके घर देर है पर अँधेर नही..!”

दो दिन बाद जेल प्रशासन के द्वारा ऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम रखा गया। इस प्रकार के कार्यक्रमों द्वारा कैदियों में जीवन के प्रती उत्साह का वातावरण निर्मित किया जा सकता है और उन्हे सामान्य नागरिकों के समकक्ष लाया जा सकता है। जो की सही भी है, दैनिक योगा प्राणायाम से भी कैदियों में सकारात्मक सोच को निर्मित किया जा सकता है।

सभी तैयारियाँ हो चुकी थी। जेल के मध्य प्राँगण में एक मंडप सजाया गया। एक व्यासपीठ को कुछ उँचाई पर साकारा गया, उस पर श्वेत - शुभ्र चादर डाली गयी और सुगंधीत पुष्पों द्वारा सजाया गया। चारों ओर उल्हास का माहौल था। हर कोई नहा धोकर, साफ सुथरे कपडे पहन कर मंडप में बैठते जा रहा था। किसन भी आखरी पंक्ति में एक कोने में जा बैठा था।

नियत समय पर ऋषि महाराज पधारे। शुभ्र वस्त्रों में वे बहुत प्रभावशाली लग रहे थे। किसन ने देखा, उनके मुखमंडल पर एक अनोखा तेज था। चंदन का बडा सा टीका उनकी मुख मुद्रा को और भी गौरवांवित कर रहा था। किसन को लगा मानों भगवान खुद उसे रिहा करने आये हो..! अनायास वह उठ कर उनके समीप की पंक्ति में जा बैठा। वह उनकी हर बात को आत्मसात कर लेना चाहता था।

 स्वागत समारंभ इत्यादी होने के बाद ऋषि महाराज का प्रवचन शुरू हुआ। उन्होने कहना शुरू किया, “मित्रों..., ईश्वर की हम संतान सब एक बराबर है। कोई भी उसके लिये छोटा या बडा, उँच या नीच नहीं.., काले और गोरे में भे कोई भेद नहीं.., ना ही अमीर – गरीब, बलवान या कमजोर नही है..! ये सब तो लोग खुद अपने प्रारब्ध कर्मों के कारण विभिन्न योनीयों से जन्म लेने की वजह से भिन्न भिन्न दिखते है..! प्रारंभ में तो सारे इंसान एक से ही थे.., सारे एक समान, एक ही रंग रूप लिये..! किंतु जैसे जैसे समय बितता गया, वह इस कालचक्र में फँसता गया और अपने लिये मुसीबतों का पहाड बढाता गया..! कभी कोई बिरला ही इस मोह माया के चक्र से बाहर निकला होगा और महावीर या बुद्धत्व को प्राप्त हुआ होगा। कभी कोई तेजस्वी पुरूष ही इस चक्र को तोडने में कामयाब हुआ होगा और परमहँस या ताओ, जीसस या पैगम्बर बन पाया होगा..! ऐसा कई सदियों में एक बार होता होगा..! क्या कारण है कि कोई एक ही यह कार्य कर पाने सक्षम हो पाता है..? हम तुम भी तो यह कार्य कर सकते है, किंतु हम रोज अपने दैनंदिन जीवन में इतना खो जाते है कि इन महानुभवों के महान अनुभव से कुछ भी सीख पाने के लिये समय ही नहीं खोज पाते..! फिर उसी जिंदगी की चक्की में पिसते चले जाते है और पाप के भागीदार बनते जाते है। जो हमें करना है, जिसके लिये ये मानव जन्म लिया वह तो हम भुल जाते है और भौतिक भोग विलासिता में इतने मग्न हो जाते है कि अपने परम पिता परमेश्वर को भी भुल जाते है। इसलिये मित्रों, जिसने भी तुम्हे पीडा पहुचायी हो, दुख दिया हो, उसे माफ कर दो और भूल जाओ। फरगीव एण्ड फरगेट इट..! यह एक ही ऐसा मंत्र है जो हमें कर्मों में बँधने नही देगा और हमेशा अकर्म रहकर मोक्ष की ओर लेकर जायेगा..! ॐ नमः शिवाय..! ईश्वर तुम्हारा कल्याण करें..!!” 


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