कोयला या चंदन
कोयला या चंदन
राजा विक्रमादित्य, अपने दान-धर्म और पुण्यकार्य के लिये संपुर्ण पाटलीपुत्र में प्रसिद्ध थे। वे हर उस मनुष्य की मदद करने थे, जो राज्य के लिये अपना योगदान देता था। एक बार वे शिकार के लिये वन की ओर गये। अक्सर उनके साथ सैनिकों की एक टुकडी होती थी, किंतु आज वे अकेले ही शिकार पर चले गये और जैसा कि सभी को अंदेशा था, वे जंगल में गूम हो गये। वे दिशाहीन हो गये थे। हर तरफ से हरे पेडों के झुरमुट से सिटी की आवाज आ रही थी और सुखे पेड गरज रहे थे। चुँकी हरे पेडों के बीच से हवा, तेजी से बह रही थी, अतः उनमें से सीटी की सी आवाज आ रही थी। दुसरी ओर सुखे पेड तेज हवा की वजह से गिर रहे थे, इसलिये उनसे गर्जना की आवाज आ रही थी।
राजा विक्रमादित्य, एक निडर राजा थे। वे तो भूत-प्रेतों से भी नहीं घबराते थे। अतः वे अपनी समझ से जंगल से निकलने का मार्ग तलाश कर रहे थे। एक हाथ से घोडे की लगाम और दुसरे हाथ से अपने कंधे पर बंदुक संभाले वे धीरे-धीरे आगे बढते जा रहे थे। रात बहुत हो चुकी थी, दूर उसे एक झोपडी दिखायी दी, जिसमें से धुँआ निकल रहा था और दरवाजे पर एक दीया टिमटिमा रहा था। उन्होंने झोपडी का दरवाजा खटखटाया। भीतर से एक आदमी बाहर निकला। उसने एक राजपुरूष को अपने दरवाजे पर देख उनका स्वागत सत्कार किया। जब उसे ये पता चला कि वे तो उनके राजा विक्रमादित्य है, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उनका यथोचित स्वागत सत्कार किया। सुबह को उनके साथ-साथ चल, उन्हें जंगल पार करवा दिया। राजा विक्रमादित्य, उससे बहुत प्रभावित हुए और उसे लेकर वे राजमहल आये। वहाँ उन्होंने उस आदमी को अपने बगीचे से सटा हुआ चंदन का बाग, उपहार स्वरूप ग्रहण करने को कहा। वह बहुत खुश हुआ। चुँकी उसे तो सिर्फ जंगल से लकडीयाँ ही काटनी आती थी, अतः उसने चंदन के पेड भी काट-काट कर घर लाने लगा। वह उससे अपना खाना बनाता और बचे हुए कोयले बाजार ले जाकर बेच आता। जिससे उसे कुछ आमदानी हो जाती।
एक दिन बहुत बारीश हुई, चंदन की लकडीयाँ तो चुल्हे में जलने से रही, यह सोच कर उसने आज बाजार में लकडीयों को ही बेचने का फैसला कर लिया। बाजार पहुँचते ही हर तरफ चंदन की महक पसर गयी। उसे कोयले से सौ गुना ज्यादा पैसे मिले, जब उसे पता चला कि ये तो सुगंधित लकडी है और इसका पूजापाठ में बहुत महत्व है, तो वह पछताने लगा। उसके पास वही आखरी पेड बचा था, जो वह आज काट के लाया था। किंतु अब पछता कर का होये, जब चिडिया चुग गयी खेत..!
इस कहानी से ये शिक्षा मिलती है कि किसी को भी ऐसी वस्तु भेंट में ना दे, जिसकी उसे कद्र नही। जिसकी उसे कोई जानकारी नही।
