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Manish Gode

Others

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Manish Gode

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बडे बाबू

बडे बाबू

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कालीघाटी के एक सरकारी दफ्तर में रोज की तरह गहमा-गहमी मची हुई थी। ये अंग्रेजों के समय की बात है जब उन्होंने भारतीयों को काम करने के लिये दफ्तरों में भर्ती देनी शुरू की थी। बंगाल के लोग पढने-लिखने में अन्य भारतीयों से जरा ज्यादा होशियार थे, अतः वे अपने आप को लाट-साब समझने से भी नहीं चुकते। अपने अंग्रेज अफसर की अनुपस्थिती में वे उनकी नकल उतार कर हँसी-ठिठोली किया करते। निचले तबके के कर्मचारी ऐसे नकलची बंदरों को देख कर अचरज में पड जाते और आँखें गोल-गोल कर उनकी तारिफों के पूल बाँधा करते थे।

ऐसे ही एक हेड-क्लार्क हुआ करते थे, जिनका नाम..., नाम तो पता नहीं किंतु सभी उन्हें बडे-बाबू कह कर पुकारते थे। बडे-बाबू दफ्तर के बाहर भी इसी संबोधन से जाने जाते थे। वे शाम को एक हाथ से अपनी धोती दबाये, दुसरे हाथ में ऑफिस का बैग पकडे, लेफ-राईट लेफ-राईट करते जब घर लौट रहे तो मोहल्ले के बच्चों की टोली पिछे-पिछे क्विक मार्च करते-करते उनके घर तक पहुँच जाती। मजा तो तब आता जब वे उन बच्चों सहित गुसलखाने तक पहुँच जाते। जब उन्हें इस बात का इल्म होता तो वे ऊटपटाँग अंग्रेजी में उन्हें दफा होने का हुक्म देते।

बडे-बाबू, खुद को सचमुच लाट-साब समझने लगे थे। उनकी तरह चलना, बोलना, उठना, बैठना...! वे आँखे बंद कर सारी दुनिया को नजरअंदाज कर देते। वे सपने में अंग्रेजी सिगार पीने लगते, तो कभी तकिये को बगल में दबाये बॉल डाँस करने लगते। उनकी आँखे तब खुलती जब वे अपने पलंग से टकरा कर औंधे मुँह गिर पडते। पुनः उठ कर डाँस करने लगते। अजीब इंसान थे ये बडे-बाबू। तभी वे घर पर अकेले ही रहते और खुद को लंदन स्थित बर्मिंघम पैलेस में रहने का एहसास दिलाते।

बडे-बाबू, अंग्रेजो के हिमायती थे। वे उनकी दिल खोल कर चापलुसी करते। अंग्रेजी में मिली गालीयों को भी वे रानी विक्टोरिया का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लेते। अजीब हिमाकत थे बडे-बाबू। एक दिन तो हद ही कर दी। ऑफिस में अपने अंग्रेज अफसर को ना पाकर वे उनकी कुर्सी पर जा बैठे। कंघी से बालों को कानों के पास गोल-गोल कर लिया। पैरों में उँची हील के जुते पहन लिये और पास रखा हुक्का गुडगुडाने लगे। सभी कर्मचारी दरवाजे से उन्हें देख कर हँस रहे थे। मजा ले रहे थे। तभी पिछे से अंग्रेज अफसर ने अपनी केन से किसी के पिठ थपथपायी। उस कर्मचारी ने जैसे ही पिछे देखा वह घबरा गया और सभी को इशारा कर भाग गया। अंग्रेज अफसर धीरे-धीरे बडे-बाबू के पास पहुँचे और उनकी हरकते देखने लगे। बडे-बाबू इतमिनान से अपनी आँखे बंद कर हुक्का गुडगुडा रहे थे। तभी उन्हें अपने अंग्रेज अफसर के दहाडने की आवाज आयी, “गेट लॉस्ट, यू रास्कल..!”

और बडे-बाबू को अपनी कमर में एक जोर की लात पडने की आवाज आयी। आँखे खुली तो वे दफ्तर के बाहर चारों खाने चित पडे थे। आने-जाने वाले उनकी ओर देख कर खूब हँस रहे थे। बच्चे उन्हें लाट-साब लाट-साब कह कर चिडा रहे थे। बडे-बाबू उठे और अपने घर की ओर चल पडे, मानों कुछ हुआ ही ना हो। वे आँखे बंद कर खुद को लंदन की सडकों पर घुमते हुए देख रहे थे। उनकी धोती पिछे से खुल रही थी और आँखों पर लगे चश्मे का एक काँच भी नदारद था। बडे-बाबू अपनी दुनिया में खो गये। 


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