राजकुमारी और कोयल
राजकुमारी और कोयल
राजकुमारी गौहर, राजस्थान के एक राजा की विद्वान सुपूत्री थी। वह संगीतकला में निपुण थी। तानपुरे के साथ गायकी में उनका कोई सानी नहीं था। संपूर्ण राज्य में उनके जैसा माहिर कलाकार कोई ना था। उनके गुरू हमेशा ये कहते कि एक दिन राजकुमारी बहुत बड़ी संगीतकार बनेगी।
एक बार वे अपने कमरे के बाहर बनी छत पर रियाज कर रही थी कि तभी उसे दूर पीपल के पेड़ पर बैठी एक कोयल की आवाज सुनाई दी। वह भी बिल्कुल राजकुमारी की तरह गा रही थी। उन्हीं की तरह नकल उतार रही थी। राजकुमारी को ताज्जुब हुआ और गुस्सा भी आया। उसे वह कोयल फूटी आँखों नहीं सुहा रही थी।
“उसकी इतनी मजाल कि वह मेरी नकल उतारे?” राजकुमारी ने आँखें सिकुड़ कर मन ही मन सोचा।
“सेनापती, तुरंत उस गुस्ताख कोयल को पकड़ कर मेरे सामने हाजिर किया जाये।“ राजकुमारी ने फरमान जारी कर दिया।
आनन-फानन में सिपाही भेजे गये और उस पेड़ पर बैठी कोयल को पकड़ कर लाया गया। वह एक बेहतरीन पक्षी था। उसका रूबाब देखते ही बनता था। काला चमकदार रंग और सुरीली आवाज की धनी उस कोयल ने दरबार में उपस्थित सभी को अचंभित कर दिया। राजा ने उससे पुछा कि वह कौन है और कहाँ से आयी है? वह राजकुमारी की तरह कैसे गा लेती है?
“महाराज और राजकुमारी को मेरा प्रणाम।“ वह मानवी भाषा में बोल रही थी। “मैं हिमालय के उस पार के देश से आयी हुँ। वहाँ मेरे गुरू पशुपतीनाथ विराजते है। वे हम सभी पशु-पक्षियों के गुरु है। मैं पिछले कई बरस से उनके पास रह कर संगीत की शिक्षा ले रही हूँ । मेरे गुरु ने मुझे आपके पास भेजा है राजकुमारी जी।“
“किस उद्देश्य से तुम हमारे राज्य में आये हो, तुरंत बताओ।“ राजा ने कोयल से पुछा।
“आपकी बेटी से मुझे आगे की विद्या सीखनी है।“ कोयल बोली।
“हमारी ही बेटी से क्यों?” राजा ने पूछा।
“वह आपको समय आने पर पता चल जायेगा महाराज, मुझ पर विश्वास करें।“ कोयल ने विनती की।
महाराज ने उसे आज्ञा दे दी। वह राजकुमारी के छत के पास लगे आम्र वृक्ष की डाल पर रहने लगी। जब भी राजकुमारी गौहर रियाज करने छत पर आती, तो वह कोयल भी पेड़ की डाली पर बैठे-बैठे उसके साथ गाने लगती। दूर से कोई सुनता तो यों लगता मानो दो बहनें एक साथ गा रही हो। इस प्रकार कई दिन गुजर गये। फिर बरसात का मौसम आ गया। चारों ओर काले-काले बादल छा गये। राजकुमारी और कोयल राग मेघ-मल्हार गाने लगे। उनकी स्वर लहरीयाँ मेघों से टकरा कर उन्हें प्रतिध्वनित कर रही थी। इतनी कि जोर से वर्षा होने लगी। और जैसे-जैसे बरसात का पानी कोयल के शरीर पर गिर रहा था, उसका रंग उजला होने लगा। वह श्याम रंग से श्वेत परिधान पहने एक राजकुमार में परिवर्तित होने लगी। कुछ ही देर में वह कोयल एक अतीशय शोभायमान गंधर्व राजकुमार में रूपांतरित हो गयी।
राजकुमारी अपनी सुध-बुध खोकर उसे देखती रह गयी। तभी राजा और रानी भी वहाँ आ गये। उन्होंने इस दृश्य को देखा तो हतप्रभ हो गये। उन्होंने उस राजकुमार का परिचय जानना चाहा। तब राजकुमार ने उन्हें अपनी आपबीती बतायी कि कैसे वह इंद्र द्वारा शापित हो गया था, जहाँ वह इंद्र के राजदरबार में एक राज गायक था। उसे अपनी आवाज पर बहुत अहंकार हो गया था। वह अपने आगे सभी को तुच्छ समझता था। तब इंद्र ने उसे कोयल के रूप में हिमालय के बरफीले देश में जाने को कहा, जहाँ वह अकेले ही अपनी आवाज सुनते रहता।
चुँकी अब वह श्राप-मुक्त हो गया था, अतः उसने सभी से अनुमति माँगी और वापस स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गया।
