Archana Saxena

Abstract

4.5  

Archana Saxena

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हैसियत

हैसियत

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दरवाजे की घंटी बजी तो कोकिला बड़बड़ाती हुई मास्क पहनते हुये उधर बढ़ी

"अरे कौन आ गया लॉकडाउन में? पिज्जा डिलीवरी के लिए आया होगा, और तो अभी किसी का भी आना जाना बन्द है।"

कहते हुए दरवाजा खोला तो कमला खड़ी थी। कमला उसकी घरेलू सहायिका थी और तीन हजार पगार पर काम करती थी।

उसे देखते ही कोकिला बोली

"तू कैसे आई? अभी तो सरकारी हुक्म है तुझे नहीं रख सकते। वैसे भी कोरोना कितना फैल रहा है? हमें भी हो गया तो? जा तू अभी, जब ठीक लगेगा बुला लेंगे काम पर तुझे।" 

कह कर दरवाजा बंद करने को हुई कि कमला बोल पड़ी

"मैडम दो मिनट बात तो सुनो। कुछ पैसे चाहिए थे। घर में खाने को भी कुछ नहीं है। गप्पू के पापा की नौकरी भी छूट चुकी है। जो कुछ घर में था सब खत्म हो चुका है।"

"अरे तो यहाँ कौन सा खजाना गड़ा है? मेरे लड़के को पैसे कम करके मिल रहे हैं अभी। मेरे पति तो पहले ही रिटायर हैं तू जानती है। पेन्शन इतनी नहीं है। और बहू की तो तनख्वाह पहले से ही कम है।" कोकिला हाथ नचा कर बोली।

" उधार ही देदो मैडम। काम आपका करती हूँ तो पैसे और किससे माँगू?" कमला गिड़गिड़ाई।

"क्यों चार नम्बर में भी तो तू ही करती है?"

"हाँ पर उन्होंने बड़ी मुश्किल से पाँच सौ रुपए दिये हैं। अब पाँच सौ में तो हफ्ते का राशन भी नहीं आयेगा। घर में सब कुछ खत्म है।"

"भई मैं कौन सी सेठानी लगती हूँ तुझे? मेरे बस की तो पाँच सौ देना भी नहीं।"

कह कर दरवाजा बन्द करने को हुई तब तक पिज्जा डिलीवरी वाले लड़के ने बाइक रोक कर कहा

"मैडम एक मिनट, आपके घर का ऑर्डर है।"

एक दम से बगलें झाँकती हुई कोकिला बोली

"अरे बच्चों ने मँगवा लिया होगा। सुनते नहीं है कि खर्चा कम करें। तू क्या अभी तक यहीं खड़ी है? चल जा भी अब।"

इतने में सामने वाले घर का दरवाजा खुला और सामने रहने वाली रचना जो कि एक शिक्षिका थी,बाहर झाँक कर कमला से बोली

  "दो मिनट रुक कमला। ये ले दो हजार रुपए। इस महीने का खर्च चला ले किसी तरह। अगले महीने मेरी सैलरी आयेगी तो और ले जाना।"

कमला के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी पर वह बोली "भाभीजी मैं तो आपके घर काम भी नहीं करती हूँ, फिर आप कैसे..."

"इन्सानियत के नाते। किसी के घर मेरी वजह से चूल्हा जल पाए इससे ज्यादा बड़ी बात और क्या होगी मेरे लिए? सोच मत रख ले। जब मुझे कोई जरूरत हो तो तुम मेरी मदद कर देना।"

कमला पैसे लेकर दुआएँ देती हुई चली गई। उसके जाने के बाद कोकिला बोली

"ये क्या किया रचना? तुम जानती नहीं हो इन लोगों को। मुफ्तखोरी की आदत लग जायेगी। और लॉकडाउन तो पता नहीं कब तक चलेगा? कब तक मदद करोगी?"

"जब तक जरूरी होगा तब तक करूँगी। किसी के काम आ पाऊँ यह मेरा सौभाग्य होगा"

कह कर रचना तो अन्दर चली गई पर कोकिला को सोच में डाल गई। हमेशा रचना के सामने अपनी हैसियत का गुणगान करके उसे नीचा दिखाने का प्रयास करते रहना ही कोकिला का लक्ष्य था और रचना बिना अपना गुणगान किए ही कोकिला को उसकी हैसियत बता गई थी।


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