Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Crime Children

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Crime Children

हाँ, मैं जीना चाहती हूँ!

हाँ, मैं जीना चाहती हूँ!

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हाँ, मैं जीना चाहती हूँ! अगर आज मैं, जीवित होती तो कहती -

हाँ, मैं जीना चाहती हूँ!

फिर कहती कि - हाँ मैं, जीना चाहती हूँ!

बार बार कहती कि - जी हाँ, मैं, जीना चाहती हूँ!

मैं आपको बताती हूँ कि - उसने, 1 वर्ष पहले मुझे, अपहृत कर लिया था। उसके चंगुल से तब मैं, किसी तरह से छूटी थी। 

मैंने, उसके विरुद्ध, पुलिस रिपोर्ट भी की थी। 

मुझे इस कटु सत्य का ज्ञान था कि - जब तक मैं, जीवित हूँ, तब तक मुझ पर, उसके द्वारा किये गए अपराध की जानने-समझने की, किसी को फ़ुरसत नहीं है। उसके विरुद्ध, अपने जीवन की मेरी लड़ाई में, किसी अन्य की कोई रुचि नहीं है। 

मुझे समझ आता था कि - समाज की रीति-नीति खराब हो चुकी है। 

कोई लड़की जब जीना चाहती है और वह किसी तरह जीवित है, तब तक किसी को फ़ुरसत नहीं कि - उसकी सुरक्षा तथा उसके मूलभूत जीवन अधिकार की चिंता तथा उसकी सुनिश्चितता करे। 

मुझे आभास था कि - हाँ, यदि मैं किसी के अत्याचार में, मार दी जाती हूँ तब अवश्य ही मीडिया जागेगा, राजनीति भी की जायेगी। तब मेरे गुणगान-बखान करने एवं संवेदना जताने भीड़ भी जुट जायेगी। 

मैंने एवं मेरे परिवार ने तब, अपनी बेबसी और इसे दुःखद रूप से अपनी, अकेली की समस्या होना पहचान लिया था। 

राजनैतिक पृष्ठभूमि वाले, उसके शक्तिशाली परिवार के समक्ष, अपनी सामर्थ्य सीमा अल्प अनुभव करते हुए, मेरे पापा ने उससे समझौता कर लिया था। 

उसके परिवार ने तब आश्वासन दिया था कि - आगे से वह, मेरा पीछा नहीं करेगा।

अपनी बेटी को जीती-जागती देखने के लिए मेरे पापा, मम्मी एवं परिजनों की, यह लाचारी ही थी। 

बात को कुछ दिन हुए तब, स्कूल में एक दिन, किसी अन्य कक्षा की एक लड़की, मेरे पास आई थी। वह मेरी पूर्व परिचित नहीं थी। उसने अपना नाम सबीना बताया था और मुझसे कहा था - तुमने समझौता करके ठीक किया। 

मैंने अचरज से उसे देखा कि, वह कैसे जानती है। मेरे मनोभाव समझते हुए वह बोली थी - 

हमारे, मुहल्ले में, इस अपहरण एवं समझौते की चर्चा रही थी।

उसी ने आगे कहा - वह, तुमसे प्यार करता है। 

मैंने कहा - यह प्यार तो नहीं होता! जो जबरन अपहरण करे। 

फिर स्वयं एक निष्कर्ष की तरह कहा - 

यह, दो घंटे का सिनेमा नहीं, पूरे जीवन का प्रश्न है। जिसने मेरे ना कहे जाने का, आदर नहीं किया है। उसके लिए मेरे मन में, कोई सम्मान नहीं है।    

सबीना ने कहा - तुम, उसके प्यार को एकतरफ़ा छोड़ दो। कुछ दिनों में तुम्हारी उपेक्षा से वह स्वयं, तुम्हें भुला देगा। मेरे पीछे भी गैर कौम के लड़के पड़ते हैं। मैं अपने लिए, प्यार से भरे, उनके दिल को समझती हूँ। फिर अपने परिवार की, ऐसे प्यार को अनुमति नहीं जानते हुए, अपनी उदासीनता एवं चुप्पी से, उनसे पीछा छुड़ा लेती हूँ। 

मैंने कहा - मेरा प्रकरण इतना सीधा नहीं है। यह मुझे लव जिहाद प्रेरित लगता है। 

सबीना ने प्रतिक्रियात्मक स्वर में कहा - नहीं, यह हमें बेकार ही बदनाम करने वाली बात उड़ाई गई है। 

मैंने कहा - सबीना, मैं खुली सोच रखने वाली 21 वीं सदी की लड़की हूँ। मुझे अन्य जाति या कौम में शादी करने से भी एतराज नहीं है। फिर भी मैं, उससे शादी की कभी सोच ही नहीं सकती। वह तीन-चार सदी पुरानी तरह की, सोच रखने वाले मुल्ला-मौलवियों के द्वारा प्रचारित की जाती, कट्टरता वाली शिक्षा से प्रभावित है। 

सबीना ने मेरी बात पर एतराज जताते हुए कहा - यह तुम, हमारे मज़हब को बदनाम करने के लिए प्रचारित की गई बात, बोल रही हो। 

मैंने कहा - सबीना, मज़हब के बारे में मैंने कुछ नहीं कहा है। मेरी बात मुल्ला-मौलवियों की दकियानूसी एवं भ्रामक सीख पर है। तुम मेरी एक ही बात का सही तर्क पूर्ण उत्तर दे दो। मैं, स्वयं को गलत मान लूँगी। 

सबीना ने पूछा - हाँ कहो, तुम क्या, कहना चाहती हो?

मैंने कहा - मैंने, #नुसरतजहां के द्वारा अन्य कौम में, शादी करने के विरुध्द, फतवा सुना है। तुम बता सकती हो कि, तुम्हारे लड़कों ने, जब अन्य कौम में शादी की हैं तब उनके विरुद्ध कहीं कोई फतवा किया गया है। 

सबीना सोचने वाली मुद्रा में दिखाई दी। फिर हार सी मानते हुए बोली - हाँ ये तो है। 

फिर उसके दिमाग में कोई उत्तर सा आ गया था। उसने व्यग्र हो कहा था - हो सकता है, ऐसे फतवे, होने - ना होने के, सही कारण, मैं नहीं जानती हूँ। संभव है कोई, मुझसे ज्यादा जानकार व्यक्ति, तुम्हें इसका तर्क पूर्ण उत्तर दे सके। 

मैंने सहमत ना करने की मुद्रा सहित कहा - मैं तो, और भी ढेरों प्रश्न कर सकती हूँ। मगर तुम्हें समझाने की व्यर्थ होने वाली कोशिश मैं नहीं करूँगी। मैं जानती हूँ, तुम्हें कटु सच, सुनना पसंद नहीं आयेगा। 

सबीना ने कहा - यह, तुम नहीं तुम्हारे पूर्वाग्रह कह रहे हैं। 

मैंने कहा - सबीना, मैं तुम्हें कहने नहीं आई हूँ। तुम ही जब आई हो तो यह अवश्य सुन लो कि  

- अब सभी कौम-नस्ल में समाज, सोच एवं संस्कृति बदल रही है। कदाचित तुम्हारी कौम में भी यह होने लगा हो।

तब भी ये मुल्ला-मौलवी, औरतों तथा मर्द के लिए अत्यंत अधिक भेदभाव की व्यवस्था देते दिखाई पड़ते हैं। मैं, ऐसी सोच से प्रभावित किसी लव जिहादी से शादी नहीं कर सकती। मैं आत्मघाती रूप से, अपने खुले जीवन अवसरों को, संकुचित सोच में बंद करने की भूल नहीं कर सकती। मुझे तो, यह तक पसंद नहीं कि कोई ऐसा लड़का, मुझे लेकर, अपने दिल में एकतरफा प्यार भी रखे। 

सबीना को मेरी बातें पसंद नहीं आई थी। चुप ही रहकर वह, तब चली गई थी। 

दिन बीते थे। मैंने अपने अपहरण वाली, कटु बात बिसरा दी थी। 

फिर मैं अपने अवसाद से उबर सकी थी। मुझे, मेरे युवा सपने, उत्साहित करने लगे थे। मैं सोचती थी कि मैं औरों जैसी, साधारण नहीं हूँ। मैं एक विलक्षण लड़की हूँ। मुझे, पता नहीं था कि - और युवा भी ऐसा ही सोचते हैं या नहीं।

मैं सोचती थी कि - मैं, जीवन में औरों जैसी साधारण रह जाने वाली नहीं हूँ। मुझे लगता था कि भविष्य में मैं, निश्चित ही श्रेष्ठ मानवों की अग्रणी पंक्ति में स्वयं को स्थापित कर सकूँगी। 

स्वयं को ऐसा विलक्षण मानना, सच है या यह मेरा भ्रम है, यह देखने के लिए, मेरा पूरा जीवन, मैं जीना चाहती थी। 

सबीना तब एक दिन, स्कूल में एक बार फिर मेरे पास आई थी। उसने कहा था कि - 

जैसा तुम समझती हो, हमारे सभी लड़के ऐसे नहीं है। मेरे चार भाई हैं। तीन की शादियाँ, हमारी ही लड़कियों में हुई है। चौथे भाई भी हममें ही, शादी करने की कहते हैं। लव जिहाद, मात्र कल्पना है। इसका कहीं, कोई अस्तित्व नहीं है। 

मैंने तब कहा - मैं, अपनी सच्चाई आज तुम्हें बताती हूँ। 

फिर मैंने उससे विस्तार पूर्वक कहा -   

कुछ समय से मुझे, ऐसी अनुभूतियाँ होने लगी हैं, जिसके होने से कोई लड़की, अपने आगामी जीवन साथी की कल्पनायें और सपने देखने लगती है। 

इन सपनों में भी मैं, जानती हूँ कि अभी मेरी प्राथमिकता, मेरी उच्च शिक्षा अर्जित करना है। 

मैं, जानती हूँ कि कहीं मेरा जीवन साथी भी है। वह अभी जहाँ भी है, पढ़ने के प्रति, मेरे जैसा ही गंभीर होगा। इस समय उसका लक्ष्य अपनी जीवनसंगिनी का विचार रख, वह योग्यता अर्जित करने का होगा, जिससे भावी जीवन में, अपने सपने पूरे कर सकने की क्षमता, किसी में खुद, सुनिश्चित होती है। 

ऐसे में, मुझे जो चाहिए वह जीवन साथी, यह अपहरण का अपराधी लड़का, कभी नहीं हो सकता है। इसे तो मेरी इच्छा, आदर एवं स्वाभिमान की समझ ही नहीं है। 

कोई भी लड़की, उस लड़के को कैसे पसंद कर सकती है जो सिर्फ अपनी ही अभिलाषाओं की समझ रखता हो। जिसे, अपनी प्रिया (वह जानता है) की, अभिलाषाओं की समझ ही न हो।

 अपहरण करने वाले ऐसे लड़के को, कोई लड़की, चाह ही कैसे सकती है, भला? 

उसने मेरा अपहरण किया था। वह मेरी दृष्टि से गिर चुका है। तब भी, मैंने उससे समझौता एवं क्षमा किया था कि मैं, उसका भविष्य अपनी नाराजी से बिगाड़ ना दूँ।

सबीना तब यही कह सकी थी कि - हाँ, बात तो तुम सही कहती हो। मैं भी, कुछ ऐसा ही सोचती हूँ। 

यह सबीना से हुई मेरी अंतिम मुलाकात थी। फिर मेरा स्कूल पूरा हुआ और मैं कॉलेज में आ गई थी। ऐसे फिर, सबीना आगे कभी मुझे नहीं मिली थी।  

(यह कहानी काल्पनिक है, यह कोई यथार्थ घटना नहीं कहती है) 

(शेष अगले भाग में)



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