Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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गुरूर

गुरूर

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"मैं आज एक काम करता हूं उसकी दोनों ही गाड़ी के टायर पंचर कर देता हूं"। एक अधेड़ उम्र के पुरुष ने अपने साथी से कहा। मैं  वहीं पास में खड़ी उनकी वार्तालाप सुन रही थी। एक मिनट के लिए तो चौंक गई ,फिर जिस सोच ने जन्म लिया वह थी कि, क्या उस पुरुष ने अपने बाल धूप में सफेद किए हैं क्योंकि ऐसा व्यक्ति ही इतनी  गिरी हुई बात कर सकता है। जिसके पास घर नहीं वह ज्यादा सुखी है या जिसके पास सभी सुख-सुविधाएं हैं वह? चाहे व्यक्ति आलीशान महल में ही क्यों न रहें उसके अंदर की शैतानियत उससे कुछ-न-कुछ गलत करवाती ही रहती है। ऐसी एक ही घटना होती तो ठीक था लेकिन एक के बाद एक कई इससे मिलती-जुलती घटनाओं की मैं साक्षात्कार बनी। सँकरी गली में किसी व्यक्ति के कार पार्क करके चले जाने के बाद, जब ट्रैफिक जाम होने लगा,  तो एक महानुभाव ने उस व्यक्ति को सबक सिखाने के लिए अपनी बाइक से उतरकर उसकी कार का टायर पंचर कर दिया फिर अपनी बाइक ले वहां से फुर्र हो गया। ऐसा करने के पीछे उसकी यही सोच रही होगी कि कारवाला आज के बाद फिर कभी सड़क पर कार पार्क करने की भूल नहीं दोहराएगा। पर क्या उसका ऐसा करना सही था? अगली घटना में कारवाला एक कदम आगे निकला। वह अपनी कार संकरी गली में सुबह 9:00 बजे जहां एक वाटर टैंक अपार्टमेंट के संप में पानी भर रहा था, के ठीक बगल में पार्क कर कहीं चला गया यानी पूरा रोड उसने ब्लॉक कर दिया। जब एक महिला अपने घर से ऑफिस के लिए निकली तो बेचारी हॉर्न बजाते-बजाते थक गई, लेकिन वह कार वाला जो कि बगल की बिल्डिंग में ही किसी के घर में बैठा हुआ सब सुन रहा था टस-से-मस नहीं हुआ। आखिरकार उस महिला को वॉटर टैंकर के जाने तक का इंतजार करना पड़ा और जब वह महिला वहां से अपनी कार लेकर निकल गई तब वह घमंड में चूर इंसान 5 मिनट बाद जिस तरह बाहर आया लगा मानो जो भी हुआ उससे उसे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। हर अपार्टमेंट में सबको कार पार्किंग दी जाती है। लेकिन वहां भी शान्ति कहाँ। क्योंकि खुराफाती लोग तो हर जगह होते ही हैं न। अपनी कार को पार्किंग में तिरछा पार्क करना, जगह पर पार्क नहीं करना जैसी अनेकानेक घटनाएं अराजकता का माहौल बनाती रहती हैं।

 आए दिन अपार्टमेंट के व्हाट्सएप ग्रुप पर मैसेज पढ़ने में आते हैं। इस नंबर की गाड़ी हमारी कार पार्किंग में खड़ी है तुरंत हटा लीजिए। इत्यादि, इत्यादि।

 छोटे अपार्टमेंट में जहां कार को एक दूसरे के पीछे पार्क करना होता है ,यहां तक देखने में आया है कि आगे वाला पीछे वाले को कार निकालने नहीं देने के लिए परेशान करता है। अगर पीछे वाला देर रात लौटे तो उस रात तो उसे सड़क पर  ही कार पार्क करना पड़ती है यानी आगे वाला उसे अपनी उंगली पर नचाता है, लेकिन ऐसे माहौल में दोनों में से क्या एक भी सुखी है । सताने वाला सताने की योजनाएं बनाने में व्यस्त है और जो उसका शिकार बन रहा है वह तो दुखी है ही। क्या ऐसे में किसी की भी उन्नति संभव है। शायद यही उन्हें अपने जीने का मकसद लगता है। ऐसे उद्देश्यहीन, निरर्थक जीवन का अंजाम सोचने में भी डर लगता है। फिर समाज के कई महानुभाव तो इसे जी रहे हैं। घर में बड़े-बड़े मंदिर बनाते हैं। बड़े-बड़े मंदिरों में माथा टेकने जाते हैं। लेकिन मन में भी अगर एक मंदिर बना लिया होता तो शायद मुझे इन घटनाओं का चश्मदीद गवाह होना न पड़ता।

 

 "प्यार बांटना तो दूर बद्दुआएं बटोर रहा है।

 इंसान खुद का ही दुर्भाग्य जोड़ रहा है।

 

 आज जो मेरे साथ हुआ वह भी दुखदायी  हो सकता था लेकिन शायद मेरी जिजीविषा ने मुझे बचा लिया। सीढ़ी के ठीक नीचे किसी का 10 कि ग्रा का आटे का पैकेट रखा था। और जब मैं नीचे उतर रही थी, एक महाशय जो कि वहीं पास में खड़े अपने मोबाइल में व्यस्त थे , से मैंने पूछा-" क्या आपको पता है यह किसका है"? वह बोला मेरा ही है, तब मैंने कहा मैंने सिर्फ इसलिए पूछा कि कहीं कोई अगर अपनी धुन में नीचे उतरेगा और अगर उसका पैर उस पेकेट पर पड़ा तो वह गिर भी सकता है।  क्या आप इसे  साइड में रख सकते हैं?" लेकिन उसने तुरंत हटाने की बजाय - "हाँ रख दूंगा।" कहकर अपने मोबाइल में पुन: व्यस्त हो गया , तब मैंने कहा- "अगर आप बुरा न माने तो क्या मैं साइड में सरका दूँ।" पहले तो वह झेंपा लेकिन फिर बिना कुछ कहे उसे वहां से हटा दिया। मैं उन महाशय का धन्यवाद कर आगे बढ़ गई। क्योंकि मुझे जिंदगी में आगे बढ़ना है।

 

खुदा की तस्वीर को कैसा रूप दे रहे हैं।

 समाज को क्यों इतना कुरूप कर रहे हैं।

 

जी कहां रहे हैं बस जिंदगी काट रहे हैं।

 और एक दूसरे को सताने का मजा ले रहे हैं।

 

 अभी तक दूसरों को सताया है। 

जल्द ही समझो तुम्हारा नंबर भी आया है।

 

 क्योंकि खुदा के घर देर है अंधेर नहीं।


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