"गुनहगार कौन"
"गुनहगार कौन"


निशा आधुनिकता से सराबोर एक आधुनिक इक्कीसवीं सदी की लड़की थी। पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगी हुई। परिवारवालें भी महिला सशक्तिकरण से ओत - प्रोत थे। आज - कल लड़का - लड़की दोनों ही स्वतंत्र हैं और उसी स्वतंत्रता का फायदा उठाते हुए, कभी - कभी वे दोनों ही स्वच्छंद हो जाते हैं।
निशा बी - कॉम कर चुकी थी और अब एम - बी - ए के लिये उसे दूसरें शहर में किराये का कमरा दिलवा दिया गया था। जहाँ रहकर वह बिना किसी दखल के स्वतंत्र होकर अपनी पढ़ाई कर सकें। निशा एक हसीन, कमसीन होने के साथ पढ़ाई में भी अव्वल थी। उसने एम - बी - ए अच्छे नम्बरों से पास की और उसका कैंपस इंटरव्यू में छह लाख के पैकेज पे अच्छी कंपनी में चयन हो गया और उसने नौकरी ज्वाइन भी कर लीं। अलोक नाम का लड़का उसके साथ ही काम करता था। धीरें - धीरें दोनों की नजदीकियाँ बढ़ीं और दोनों एक दूसरें के करीब आने लगें। दोनों ही स्वतंत्र ख़्यालात के थे, रोक - टोक कोई थी नहीं, तो दोनों ने लिव - इन में रहना शुरू कर दिया। दोनों की नजदीकियाँ प्यार में बदल गयी।
घरवालों को जब तक पता चला, देर हो चुकी थी। दोनों ही शादी से कतरा रहे थे। दोनों की शादी की उम्र अब निकलती जा रही थी, लेकिन दोनों में से कोई भी अब शादी जैसे दायित्व को निभाने के लिये तैयार नहीं था। घरवालों को चिंता सताने लगी थी कि दोनों बहक गये तो उसका परिणाम क्या होगा। समाज में क्या मुँह दिखाएँगे और उन अवाँछित संतानों को कौन अपनायेगा। क्या निशा और अलोक उस दायित्व को निभाएँगे - शायद नहीं।
इसलिये दोनों के ही परिवार वालों ने उन दोनों.पर शादी का दबाव बनाया और उन्हें विवाह बंधन में बाँध दिया। निशा जिस कंपनी में काम करती थी, शादी के बाद उस कंपनी का माहौल काफी बदला - बदला नज़र आने लगा। निशा पहले देर रात तक काम करती थी, परन्तु अब निशा की घर की ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ गयी थी। कंपनी वालों को तो अपने काम से मतलब हैं, उन्हें आपकी ज़िन्दगी से क्या लेना - देना। अब घर में थोड़ी अन - बन रहने लग गई थी। क्योंकि काम का दबाव बढ़ता ही जा रहा था।
निशा के लिये दो - दो जिम्मेदारियों को निभाना आसान नहीं था। इधर घरवालें भी - तुम्हारीं उम्र बढ़ती जा रही है, अब तुम दो से तीन होने के बारें में सोचो। परन्तु निशा और अलोक, दोनों ही इस जिम्मेदारी से दूर भाग रहें थे या यूँ कहें कि वो अपने करियर को ज्यादा तबज्जों दे रहें थे। अचानक एक दिन पता चला कि निशा माँ बनने वाली है। दोनों घरों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। परन्तु निशा और अलोक जिन्हें वास्तव में खुश होना चाहिये, उनकी ज़िन्दगी अनचाहे तूफ़ान से घिर गयी थी।
न तो ऑफिस में और न घर के बाहर बता सकते थे कि निशा गर्भवती है। तीन महीने बाद जब निशा के ऑफिस में पता चला, तो वह घर और ऑफिस में काम का दबाव सहन नहीं कर पायी। आख़िरकार वही हुआ जिसका डर था। निशा ने उस बच्चें को, यह कहकर उसे रखने से मना कर दिया कि वह उसके करियर में रोड़ा होगा और उसने और अलोक ने घर वालों के लाख मना करने के बाद भी गर्भपात करवा लिया। नासमझी में उन्होंने जो कदम उठाया था, उसके परिणाम से वह अनभिज्ञ थे। दोनों ने अभी बच्चा न करने का फैसला लिया। उसका परिणाम यह हुआ कि निशा को दोबारा गर्भ धारण करने में बहुत पापड़ बेलने पड़े। आठ - दस साल बीत चुके थे लेकिन निशा मातृत्व के सुख से वंचित थी। आख़िरकार अलोक और निशा को टेस्ट-ट्यूब बेबी की सुविधा अपनानी पड़ी।
आजकल एक तो जिस कंपनी में महिला काम करती हैं, वही नहीं चाहते कि आप शादीशुदा हो और बच्चें पैदा करें, क्योंकि उन्हें लगता है कि घर का दायित्व बढ़ने से हमारी वर्कर वर्कलोड नहीं ले पायेगी और आजकल के लड़के - लड़कियाँ विवाह बंधन और बच्चों के दायित्व से मुक्त रहना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी स्वतंत्रता में विघ्न होगा। जीवन शैली के मायने ही बदलते जा रहें हैं। "शकुन" आप किसे गुनहगार मानते हैं ?
लड़के - लड़कियों को या फिर कंपनियों को ?
जिन्होंने महज चंद रूपयों के लिये लड़के - लड़कियों को अपना गुलाम बना लिया है और लड़के - लड़कियों ने आसमान छूने की चाह में अपने - आप को निलाम कर दिया है।