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Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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गुलामी

गुलामी

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भूख से बेहाल बच्चा एक स्कूल में बच्चों को भोजन करते देख रुक गया ! जब सब बच्चे भोजन कर चुके, तब भी वह वहीं खड़ा रहा !

भोजन काफी बचा हुआ था ! भोजन परोसने वाले ने उसे बुलाया और उससे पूछा, "भूखा है क्या ? तू भी खा ले.. !"

बच्चे ने कहा, "घर में मां भी भूखी है !"

"क्यों ? क्या घर में कोई कमाने वाला नहीं है ?"

"नहीं ! पापा एक सड़क दुर्घटना में मर गये ! किसी ने कोई मदद नहीं की ! वो मजदूरी करते थे !"

"और मां क्या करती है ?"

"वो भी मजदूरी करती है, पर रोज रोज काम कहां मिलता है ! और कल से उसे बुखार भी है ! सरकार दवाई तो दे भी देती है, पर खाना नहीं देती !"

"ओह ! तेरी मां क्या जवान है ? और सुदर है ?"

"हां, जवान भी है और सुंदर भी है !" बच्चे को कुछ अटपटा सा लगा ये प्रश्न.. !

"वैसे तू रहता कहां है ?"

"सड़क पर ! नाले के किनारे ! एक टूटी फूटी झुग्गी में.. !"

"ठीक है ! तू खुद भी खाना खा ले, और मां के लिये भी चार रोटियाँ रख ले !" ऐसा कह कर रसोइये ने उसे भोजन परोस दिया !

जब बच्चे ने भोजन कर लिया तब रसोइये ने एक पोटली में चार रोटी और थोड़ी सब्ज़ी बांध कर उसे देते हुए कहा-"इसे मां को दे देना, और उससे कहना, की अगर वो मेरी गुलामी में आ जाये, तो तुम दोनों को रोज रोटी मिलेगी, तू पढेगा भी और रहने को भी तुम दोनों को मिलेगा ! वो भी पक्का कमरा.. !"

"ठीक है ! पर ये गुलामी कौन सा काम होता है ?" बच्चे ने पूछा, क्योंकि इस तरह का भी कोई काम होता है, यह उसने पहली बार सुना था

"तू नहीं समझेगा, पर तेरी अम्मा समझ जाएगी !"

"ठीक है !" बच्चा गुलामी का अर्थ तो न समझ सका, पर उसके चेहरे पर खुशी थी !

घर जाकर खुशी खुशी उसने मां को रोटी दी और सारी बात बताया ! ये सुन कर उसकी मां की आंखों में आंसू आ गये, पर दूसरे दिन मां बेटे दोनों रसोइये के कमरे में थे ! मां दुखी तो थी, पर खुश भी थी, क्योंकि उसके बेटे के पास चार किताबें भी थीं !


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