Padma Agrawal

Classics Inspirational

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Padma Agrawal

Classics Inspirational

गुड्डन

गुड्डन

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“गुड्डन आज तुम फिर देर से आई हो।साढे आठ बजा दिये हैं। तुम्हें सबेरे –सबेरे सजना संवरना ज्यादा जरूरी है। अपने काम की फिक्र बिल्कुल नहीं है।.तुमने तो हद् कर दी है। इतने सुबह सुबह कोई लिपिस्टिक लगाता है।. मैं तो तुम्हारी हरकतों से परेशान चुकी हूं।.’’

 गुड्डन, लगभग 16-17 वर्ष की लड़की है। वह उनकी सोसायटी के पीछे वाली चॉल में रहती है। जब वह 11-12 वर्ष की थी तब वह मुड़ी तुड़ी फ्रॉक पहन कर और उलझे बिखरे बालों के साथ सुबह सबेरे मुंह अंधेरे काम करने आ खड़ी होती थी। परंतु जैसे ही उसने जवानी के दहलीज पर पैर रखा था उसे दूसरी लड़कियों की तरह खुद को सजने संवरने का शौक हो गया था।

अब वह साफ सुथरे कपड़े पहनती, सलीके से तरह तरह के स्टाइलिश बाल बनाती, नाखूनों में नेलपॉलिश तो होठ लिपिस्टिक से रंगे होते। बालों में रंगबिरंगी सस्ती वाली बैकक्लिप लगा कर आती।

अब वह पहले वाली सीधी सादी टाइप नहीं वरन् तेज तर्रार छम्मकछल्लो बन गई थी। चॉल के कई लड़कों के साथ उसके चक्कर चलने की बातें, उस चॉल में रहने वाली दूसरी मेड चटपटी खबरों की तरह एक दूसरे से कहती सुनती रहतीं थी।

निशि जी की बड़ बड़ करनॆ की आदत से वह अच्छी तरह परिचित थी। सुबह सुबह डांट सुनकर उसने मुंह फुला लिया था। लेकिन उनके घर से मिलने वाले बढिया कॉस्मेटिक की लालच में वह चुपचाप उनकी बक बक को नजरअंदाज कर चुपचाप सुन लिया करती थी। दूसरे अंकल जी भी तो जब तब 100- 200 की नोट चुपके से उसे पकड़ा कर कहते कि गुड्डन काम मत छोड़ना, नहीं तो तेरी आंटी परेशान हो जायेंगीं।

वह अपनी नाराजगी दिखाने के लिये जोर जोर से बर्तन पटक रही थी। निशि जी समझ गई थीं कि आज गुड्डन उनकी बात का बुरा मान गई है। वह उसके पास आईं और प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर बोलीं,’क्यों रोज रोज देर करके आती हो, अंकल जी को ऑफिस जाने में देर होने लगती है न ‘

“आओ, नाश्ता कर लो। “

“आंटी जी, मुझे आज पहले ही देर हो गई है, अभी यही सारी बातें 502 वाली दीदी से सुननी पड़ेगीं।‘’

निशि उसकी मनुहार करतीं, उससे पहले ही गुड्डन जोर से गेट को बंद करके जा चुकी थी।

 उन्हें गुड्डन की बद्तमीजी पच नहीं रही थी। “ जरा सी छोकरी, और दिमाग तो देखो।. यहां वहां लड़कों के संग मुंह मारती रहती है।. जैसे मैं कुछ जानती नहीं।.’’

“निशि बस भी करो, तुम्हें अपने काम से मतलब है कि उसकी इन बातों से।’’

पति की नाराजगी से बचने के लिये वह चुपचाप अपना काम करने लगीं थीं परंतु उनके चेहरे पर नाराजगी के भाव थे।

निशि जी 46 वर्षीय स्मार्ट शिक्षित घरेलू महिला थीं। उनके पति रवि जी बैंक में मैनेजर थे। उनके पास घरेलू कामों के लिये 3 मेड थीं, उन्हीं में एक गुड्डन भी थी।

टी. वी. सीरियल देखने के बाद उनका सबसे पसंदीदा काम था अपनी मेड से दूसरे घरों की महिलाओं की रिपोर्ट लेना,उसके बाद फिर थोड़ा नमक मसाला लगा कर फोन घुमाकर उन्हीं बातों की चटपटी गॉसिप करना।

गुड्डन उनकी सबसे चहेती और मुंहलगी मेड थी। वह सुबह बर्तन धोकर चली जाती फिर दोपहर तक सबका काम निबटाकर आती तो बैठ कर आराम से सबके घरों में क्या चल रहा है, यह बताती और कभी खाना खाती तो कभी चाय बना कर खुद पीती और उन्हें भी पिलाया करती .. फिर अपने घर जाया करती थी।

निशि जी का यह मनपसंद टाइमपास था। दूसरों के घरों के अंदर की खबरें सुनने में उन्हें बहुत मजा आता था। वह भी तेज थी। सुनी सुनाई बातों में कुछ अपनी तरफ से जोड़ कर इस कदर चटपटी खबर में तब्दील कर देती, मानों सच उसने अपनी आंखों से देखा हो। लेकिन इधर कुछ दिनों से उसका रवैया बदल गया था।

मोबाइल फोन की आवाज से उनका ध्यान टूटा था, ‘ उधर महिमा थी, हेलो आंटी आज गुड्डन आपके यहां आई है।बहुत नालायक है .. कभी फोन बंद आता है तो कभी बिजी आता है। मै तो इसकी हरकतों से आजिज आ गई हूं। वाचमैन से मैंने कह दिया है कि देख करके मेरे लिये कोई ढंग की अच्छी सी मेड भेजो। पैसे की चिंता मत करना।आपने बताया नहीं कि गुड्डन आई कि नहीं।’

“तुमने मुझे बोलने का मौका ही कहां दिया। वह हंस कर बोलीं थीं ‘’

“आंटी आपने इसके करम सुने। कई लड़कों के साथ इसका चक्कर चल रहा है।’’

उनका मन पसंद टॉपिक था, वह भला कैसे चुप रहतीं .. ‘अरे वह जो सोसायटी के बाहर राजेन्द्र, प्रेस का ठेला लगाता है, दिन भर उसी के घर में घुसी रहती है यह।मेरे घर से काम करके गई और यहां तो तुम्हारे घर पर ही जाने को बोल कर गई थी। आज तो उसने चाय भी नहीं पी और ऐसे बर्तन पटक पटक कर अपना गुस्सा दिखा रही थी कि कुछ पूछो मत।’

“आज सुबह आप सैर पर नहीं आईं थीं, तबियत तो ठीक है।.’

“हां.. हां।आज उठने में देर हो गई फिर आलस्य आ गया।’

“ओ.के . बाय। आंटी ..दरवाजे पर देखती हूं, शायद गुड्डन आ गई है।‘’

 गुड्डन चूंकि चोर नहीं थी, दूसरे साफ सफाई इतनी अच्छी तरह करती है कि घर चमक उठता है।

यही कारण था कि महिलायें उसको पसंद करती थीं। वह कई साल से इन उच्च मध्यम परिवारों की महिलाओं के घरों में काम करती आ रही थी। इसलिये वह इन लोगों के स्वभाव और कार्यकलापों से खूब परिचित हो चुकी थी। वह इन लोगों की आपसी बातों पर अपना कान लगाये रहती थी और सब सुनने के बाद मौका मिलते ही इन लोगों को अच्छी तरह से सुना भी दिया करती थी ।

 इन दिनों राजेन्द्र के साथ उसकी दोस्ती के चर्चे सबकी जुबान पर चढे हुये थे। वह जिसके घर में भी काम करने जाती, वह व्यंगात्मक लहजे में कुछ न कुछ बोलतीं जैसे।. तुम्हें यहां वहां घूमने से फुर्सत मिल गई।आदि ..आदि।

राजेन्द्र,जिसकी उम्र लगभग 40 वर्ष की थी, उसकी बीबी उसको छोड़ कर किसी दूसरे के साथ चली गई थी। वह और उसका बूढा बाप दोनों ही खोली में अकेले ही रहते थे। कुछ दिनों पहले उसने अपनी खेती की जमीन बेची थी, उसके एवज में उसे लाखों रुपये मिले थे। वह गेट के बाहर ठेले पर प्रेस किया करता था, उससे भी उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी। वह ऱाजेन्द्र के पिता को कभी चाय दे जाती तो कभी खाना खिला देती, इस तरह से कालीचरण पर उसने अपना फंदा फेंक दिया था। अब कालीचरण बिटिया – बिटिया कह कर उस पर लाड़ दिखाते और उसको अपने साथ बाजार ले जाता और कभी चाट खिलाता तो कभी मिठाई। बस दोनों के बीच चच्चा और बिटिया का दुलार प्यार का रिश्ता बन गया था।

अब धीरे से तेज दिमाग गुड्डन ने राजेन्द्र को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उससे दोस्ती कर ली। वह उसके घर में उसके लिये रोटी बना देती फिर दोनों मिल कर साथ में खाना खाते। दोनों साथ में घूमने जाते कभी मूवी तो कभी मॉल। वह छेड़ता और यह खिलखिलाती। उन दोनों की दोस्ती पर यदि कोई कुछ उल्टा सीधा बोलता तो वह पलट कर उससे लड़ने पर उतारू हो जाती,’ तुम्हें का परेशानी है।. राजेन्द्र हमारा दोस्त है। खसम है।. हम तो खुल्लमखुल्ला कह रहे हैं।..जो करना है कर लो।जो समझना है वह समझो मेरी बला से।

उसके दोनों मतलब सिद्ध हो रहे थे, मालकिन की तरह उसके घर में मनचाहा खाना बनाती।खुद भी खाती और राजेन्द्र को भी खिलाती। दोनों की जिंदगी में रंग भर गये थे। राजेन्द्र भी रोज उसके लिये मिठाई वगैरह कुछ न कुछ लेकर आता। वह उसे अपने साथ बाजार भी लेकर जाता कभी सलवार सूट तो कभी लिपिस्टिक, तो कभी चूड़ियां या इसी तरह अन्य सजने संवरने का सामान दिलवाता रहता।. इसलिये स्वाभाविक था कि वह उसे खुश रखता है तो उसका भी तो फर्ज बनता था कि वह उसे खुश करे।. बस इस तरह दोनों के बीच अनाम सा रिश्ता बन गया था। उसकी लालची अम्मा को खाने पीने को मिल रहा था।. वह भी खुश थी उसके दोनों हाथ में लड्डू थे।जब जिससे मौका लगता उससे पैसा ऐंठती।.बाप बेटा दोनों उसकी मुट्ठी में थे।

 इसी रिश्ते की खबर सोसायटी की तथाकथित उच्चवर्गीय महिलाओं को मिल गई थी , क्योंकि चॉल की दूसरी मेड आपस में बैठ कर ऐसी बातें चटखारे लेकर करके अपने मन की भड़ास निकाला करती थीं।

इसीलिये सोसायटी की महिलाओ के पास भी गुड्डन के कारनामों की खबर नमक मिर्च के साथ पहुंचती रहती थी। घरेलू महिलाओं की चर्चा जाने अनजाने इन घरेलू कामवालियों पर आकर टिक जाती थी क्योंकि उन्हें इनके साथ रोज ही दो चार होना पड़ता है।

गुड्डन सोसायटी में कई घरों में झाड़ू पोछा करती थी और वर्मा अंकल के यहां तो खाना भी बनाती थी।चूंकि वह बिल्कुल अकेले रहते हैं इसलिये उनके घर की तो सर्वेसर्वा ही है।

दोपहर में खाली होते ही महिमा निशि जी के घर आ गई थीं,‘ क्या हो रहा है आंटी।.’

“कुछ खास नहीं।आओ बैठो। ऐसा लग रहा था कि मानो कोई राज बताने जा रही हैं, ‘ कुछ सुना है आपने इस गुड्डन के तो बड़े चर्चे हैं। चारों तरफ इसकी बदनामी हो रही है। अपने बगल में ही दरवाजे के अंदर वर्मा अंकल के साथ जाने क्या गुल खिला रही है। रीना बता रही थी कि कोई रंजीत ऑटो चलाता है, उसके साथ भी यह प्यार का नाटक कर के पैसा ऐंठ रही थी। अब तो वह राजेंद्र के साथ खुलेआम मटरगश्ती करती फिर रही है। “

“अच्छा। आज उसे आने दो, ऐसी झाड़ लगाऊंगीं कि वह भी याद रखेगी। फिर उन्हें उसका सुबह का बर्तन पटकना याद आ गय़ा तो बोली,’ छोड़ो महिमा, अपने लोगों को उसके काम से मतलब है। छोटी सी थी, तब से मेरे घर पर काम कर रही है। एक भी चम्मच इधर से उधर नहीं हुई। घर को ऐसा चमका कर जाया करती है कि फर्श शीशे सा चमकता रहता है। “

“हम लोगों को क्या करना है, जो करेगा। वह भरेगा। उसकी अम्मा ने तो इसी तरह से अपनी जिंदगी ही बिता दी।‘’

महिमा ने अपनी दाल गलती हुई न देख बोली, ‘आंटी, अब चलूंगी ..आरव स्कूल से आता होगा।‘

निशि जी के पेट में खलबली मची थी। गुड्डन को आने दो, आज उसकी क्लास लेकर रहूंगीं। बित्ते भर की छोकरी है और 2- 4 लोगों को अपने जाल में फंसाये हुये है। 40- 45 साल के राजेन्द्र जैसे मालदार पर अपना हाथ मारा है। वही मैं सोचूं कि कहां से इतने बढिया बढिया सलवार सूट इसे मिलते हैं। राजेन्द्र को रिझाने के लिये ये लौंडिया सुबह से ही सज धज कर निकलती है।

“कहीं मेरे सीधे सादे रवि पर अपना जादू न चला दे, ऐसी छोरियां पैसे के लिये कुछ भी कर सकती हैं।‘’

अगली दोपहर जब वह आई,’आज बड़ा सज कर आई है। ये सूट बड़ा सुंदर है। तुझे किसने दिया है?

ये तो बहुत मंहगा दिख रहा है। “

“इतना मंहगा सूट, भला कौन देगा ? सोसायटी में नाम के बड़े आदमी रहते हैं, लेकिन दिल बहुत छोटा है। कोई कुछ दे नहीं सकता।.मैंने खरीदा है।‘’

“साफ साफ क्यों नहीं कहतीं कि तेरे आशिक राजेन्द्र ने दिलवाया है।‘’

“नहीं आंटी जी,राजेंद्र ने थोड़े ही दिलवाया है, यह तो रंजीत दिल्ली से मेरे लिये लेकर आया है। मुझसे कहता

रहता है कि, तुझे रानी बना कर रखूंगा।’’ वह शर्मा उठी थी

वह तो बंदूक में जैसे गोली भरी बैठीं हुई थीं।’काहे री,गुड्डन अभी तक तो राजेंद्र के साथ तेरा लफड़ा चल रहा था।अब यह रंजीत कहां से आ मरा।. उस दिन तेरी अम्मा आई थी, वह कह रही थी कि तू ज्यादा समय राजेंद्र की खोली में गुजारती है। वह तुझे इतना ही पसंद है तो उसी के साथ ब्याह रचा ले।. तेरी अम्मा यहां वहां लड़का ढूढती फिर रही है। “

वह चुपचाप अपना काम करती रही तो निशि जी का मन नहीं माना । वह फिर से घुड़क कर बोलीं,’ क्यों छोरी, तेरी इतनी बदनामी हो रही है, तुझे बुरा नहीं लगता?’

“आंटी जी, राजेंद्र जैसे बूढे से ब्याह करे मेरी जूती।.मैं कोई उपमा आंटी जैसी थोड़ी ही हूं, जो पैसा देख कर ऐसा मोटा भारी भरकम काला दामाद ले आईं हैं। ऐसी फूल सी नाजुक पूजा दीदी, बेचारी 4 फीट की दुबली पतली लड़की के बगल में 6 फीट का लंबा चौड़ा आदमी।.

“चुप कर।. निशि जी चीख कर बोलीं,’तेरा मुंह बहुत चलता है। आकाश जी की बहुत बड़ी फैक्ट्री है, वह बड़े रईस लोग हैं ..’’

गुड्डन के मुंह से कड़वा सच सुन कर उनकी बोलती बंद हो गई थी इसलिये उन्होंने इस समय वहां से चुपचाप हट जाना ही ठीक समझा था।

जनवरी की पहली तारीख थी, वह खूब चहकती हुई आई थी,’आंटी, हैप्पी न्यू ईयर’

“तुम्हें भी नया साल मुबारक हो ‘’

“कल कहां गायब थीं।किसी के साथ डेट पर गईं थीं क्या।.?’’

“आंटी, आप भी मजाक करती हैं।. वह बी ब्लॉक की रानी आंटी जो आपकी किटी की भी मेम्बर हैं।’’

“क्या हुआ उनको।’’

“उनका लड़का शिशिर है ना . उनकी शादी के लिये लड़की वाले आये थे, इसलिये आंटी ने मुझे काम करने के लिये दिन भर के लिये बुलाया था।.’’

“बेचारी रानी अपने बेटे की शादी के लिये बहुत दिनों से परेशान थीं।. चलो अच्छा हुआ।. शिशिर की शादी तय हो गई।..’’

“मेरी पूरी बात तो सुनिये।. लड़की वाले उनकी मांग सुनते रहे। सबका मुंह उतरा हुआ था।.धीरे धीरे वह लोग आपस में राय मशविरा करते रहे थे। “

“आंटी,मैं भी बहुत घाघ हूं। चाय देने गई फिर बर्तन धीरे धीरे उठाती रही थी और उन लोगों की आपसी बात ध्यान से सुन रही थी ‘’

“इनोवा गाड़ी, 20 तोला सोना।. शादी का दोनों तरफ का खर्चा लड़की वालों को करना होगा। शादी फाइव स्टार होटल से करना होगा।.’’

“रानी आंटी तो पूरी मंगता हैं।देखौ जरा अपने लड़का को बिटिया वाले को जैसे बेच रहीं हैं ? चाहे जितना बड़ा अफसर होय, उमर भी कितनी होय गई है। राजेंद्र से थोड़े ही कम होय तो कोई ताज्जुब नाहीं।.

हम गरीब लोगन को सब भला बुरा कहते हैं, लेकिन बड़े आदमी भी दिल के बड़े नहीं होते।. आप लोग में भी कम नहीं।.. एक लड़की के बियाह करै में माय बाप चौराहे पर खड़े होकर बिक जायें, तब बिटिया का बियाह कर पायें।..’’

“ रानी आंटी कैसी धरम की बातें किया करती हैं, अपने को बड़ी धरमात्मा बनती हैं। अपने यहां ‘भागवत’ करवाने में लाखों रुपया खर्चा कर डालीं थीं।. का अब बिटिया वाले से वही खर्चा की वसूली करेंगीं।‘’

“सरकार तो दहेज को अपराध कहती है।आप लोगन में दहेज मांगने की कोई मनाही नाहीं है का ‘’

‘गुड्डन मुंह बंद करके काम किया करो।. तुम इतना बोलती हो कि सिर में दर्द हो जाता है। शिशिर बड़ा अफसर है, उसकी तनख्वाह बहुत ज्यादा है।.उनकी बिटिया यहां पर राज रजती।‘

लगभग एक साल पहले उनके बेटे की शादी में भी गाड़ी और दहेज में बहुत सारा सामान आया था, इसलिये गुड्डन की बातें सुनकर उन्हें लगा कि वह इशारों इशारों में उन पर भी बोली मार रही है।

निशि जी ने उसकी ओर आंखें तरेर कर देखा और फोन पर अपनी आदत के अनुसार रानी के घर की चटपटी खबर को इधर से उधर करके अपने मन पसंद काम में जुट गईं थीं।

 लगभग 6 महीने पहले उनकी सासजी का स्वर्गवास उनके देवर के घर में हो गया था। निशि चालाक थीं, उन्होंने सास जी के जेवर दबा कर रख लिये थे और अब वह उसे किसी के साथ बांटना नहीं चाह रहीं थीं।. पूरा का पूरा वह अकेले ही हजम करना चाह रही थीं। उनके देवर सतीश और ननद संध्या उन पर बंटवारा करने का दबाव बनाये हुये थे। लेकिन उन्होंने साफ साफ कह दिया था कि उनके पास कोई जेवर नहीं है, क्यों कि उनकी नियत खराब थी। परंतु पति रवि बंटवारा करने के लिये उन पर दबाव डाल रहे थे। उसी सिलसिले में वह लोग कई बार आ चुके थे और हर बार गरमागरम बहस के बाद कोई न कोई बहाना बना कर वह उन्हें अपने घर से जाने पर मजबूर कर देती थीं।

“भाभी, आप मेरे हिस्से का जेवर मुझे दे दीजिये, मुझे ईशा की शादी करनी है, सोना इस समय इतना मंहगा है।. आपको तो मेरी हैसियत के बारे में अच्छी तरह से पता है।.’’

संध्या भी हिम्मत करके बोली, ‘’ भइया आपने अम्मा का सारा जेवर दाब लिया।. ये तो गलत बात है कि नहीं। घर मकान में तो हिस्सा नहीं मांग रहे हैं .. जेवर का तो बंटवारा कर ही दो ‘’।

गुड्डन काम करते हुये सारी बातें ध्यान पूर्वक सुन रही थी तभी जैसे ही निशि जी को याद आया कि गुड्डन सारी बातें सुन रही होगी, उन्होंने तेजी से आकर उससे बर्तन हाथ छुड़वा कर कहा कि इस समय जाओ।. तुम शाम को आना।

 परंतु होशियार गुड्डन को तो मसाला मिल गया था कि निशि आंटी कितनी शातिर हैं, उन्होंने सबका हिस्सा दबा कर रख लिया है।

 सतीश और संध्या अक्सर आते, आपस में बातचीत, वरन् कहा जाये कहासुनी और बहसबाजी होती परंतु अंतिम निर्णय कुछ भी न हो पाता क्योंकि निशि जी की नियत खराब थी, वह किसी को कुछ देना ही नहीं चाहतीं थीं।वरन् वह गुड्डन के सामने रो रो कर नाटक करतीं कि यह लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं।.

एक दिन वह उनसे बोली, ‘आंटी जी अम्मा कथा सुन कर आई,तो बताय रही थीं कि हमारे धरम मे बताया गया है कि भाई बहन का हिस्सा हजम करना बहुत बड़ा पाप होता है।

निशिजी को तत्काल कोई जवाब नहीं सूझा था वह खिसियाये स्वर में बोलीं, ‘ चल बड़ी धरम करम वाली बनी है ‘

एक दिन सुबह बड़ी घबराई हुई सी आई थी।’ आंटी जी।आंटी जी।’

“क्या हुआ। क्यों चिल्ला रही है। “

“ आपको किसी ने खबर नहीं दी।. गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी है। कई सारे पुलिस वाले यादव अंकल को अपने साथ लेकर जा रहे थे।. उन्हें कुछ पूछताछ करनी है।गार्ड लोग आपस में बातें कर रहे थे कि यादव अंकल ने 10 करोड़ का घोटाला किया है।. उसी की जांच चल रही थी। घर में छापा पड़ा है।. बहुत सारे अफसर उनके घर में घुस कर छानबीन कर रहे हैं।‘’

“आंटी जी 10 करोड़ में बहुत सारा रुपया होता होगा। वह अपने हाथों से इशारा करके पूछती है।..’’

निशि नीरा य़ादव से हमेशा से चिढती थी, उसकी तरफ देख कर बोली हां।.हां। बहुत सारा होता है।

‘’वह बड़बड़ाने के अंदाज में बोलीं कि वह बड़ी अकड़ कर रहती थीं मिसेज यादव।. आज स्विट्जरलैंड तो कल पेरिस।.. ये हार तो यादव जी ने मेरे बर्थ डे पर गिफ्ट किया था। आदि आदि अब आज क्या इज्जत sरह गई।.?’’

‘आंटी जी आप लोग हम लोगन को को बेकार में भला बुरा कह के बदनाम करती रहती हैं।. कम से कम हम लोग भाई बहन का हिस्सा तो नाहीं मार कर रख लेते।..हम लोग बैंक की रकम तो नाहीं मार लेते हैं हम लोग चॉल में चाहे कितना लड़ झगड़ लें लेकिन यदि कोई पर मुसीबत आय जाय तो तुरंत सब उसके दरवाजे पर मदद करने के लिये इकट्ठा होय जाते हैं।.’

“आज यादव अंकल का मुंह उतरा हुआ था।।उनके आस पास दूर दूर तक कोई नहीं खड़ा हुआ था।. नीरा दीदी फूट फूट कर रो रहीं थीं। उनका फोन भी उनसे ले लिया ।. सब लोग बताय रहे थे। हम तो सुबह से गार्ड के पास ही खड़े होय कर सब तमाशा देख रहे थे। बेचारी नीरा दीदी।. कह कर वह आंसू बहा कर रोने लगी।.

गुड्डन को आंसू बहाते देख निशिजी उसकी भावुकता देख समझ नहीं पा रहीं थीं कि क्या करें और इससे क्या कहें। वह उसके लिये ग्लास में पानी लेकर आईं।. “ लो पानी पी लो, चुप हो जाओ ‘’

“उनके वकील उन्हें छुड़ा कर बाहर लाने के लिये कोशिश कर रहे होंगें और वह जल्दी ही छूट कर आ जायेंगें’’ लेकिन मन ही मन में सोच रही थीं कि वह भला इस केस की पेचीदगी को क्या समझेगी ?

परंतु आज गुड्डन के निश्छल आंसू और उसकी भावुकता को देख कर, पता नहीं क्यों।नीरा य़ादव की बेबसी के बारे में सोच कर वह भी उदास हो उठीं थीं

 एक स्त्री की बेचारगी के बारे में सोच उनकी आंखें भी भीग उठीं।.

गुड्डन के हाथ काम कर रहे थे लेकिन वह निरंतर बड़बड़ा रही थी ‘ सब देखने के बड़े आदमी बनते हैं।. कोई किसी के दुख में नाहीं खड़ा होता।. बड़े आदमी खाली पीली दिखावा करना जानते हैं। वह भावुक लड़की लगातार आंसुओं से रो रही थी।

इस लड़की के निश्छल आंसुओं के कारण उनका भी दिल भर आया था और वह सच में उदास हो उठी थीं।


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