गमछा से साक्षात्कार
गमछा से साक्षात्कार


कोरोना ने पूरी दुनिया को बदल दिया। शायद ही कोई वस्तु या व्यक्ति हो जिस की उपयोगिता या जीवन शैली प्रभावित ना किया हो। कोरोना के पहले और कोरोना के बाद की दुनिया बिल्कुल बदल चुकी है। लेकिन अगर कोई इस बदलाव से सबसे ज्यादा खुश है वह है गमछा। आज के बदले युग में पूरी तरह छा गया है हमलोग का अपना गमछा।
अभी कुछ दिनों पहले की बात है बहुत उदास होकर आया था मेरे पास। कह रहा था अब मेरी कोई उपयोगिता नहीं। ढांढस बंधाने के लिए मैं बोला - तुम तो गम को छाने वाले हो मित्र गमछा ,हम बिहारियो की पहचान हो। तुम्हें उदास होना ठीक नहीं।
गमछा - दोस्त,मुझे फटे होने और गंदे होने का डर कभी नहीं रहा। अपनी उपयोगिता देख खुश होता था।कभी सामान लाने के लिए गठरी ,कभी बिछ कर आसन बनने में, खुशी मुझे मिलती थी। मैं उस समय भावुक हो जाता था जब आंखों में आंसू और मेहनत के पसीने से मेरा वास्ता होता था। कभी भी रुमाल से मुझे जलन नहीं हुई।अपने हाल में मैं खुश रहता था।
मैं- तुम्हे अपनी दुर्गति का आभास कब हुआ ?
गमछा- यूं समझ लें जब लोगों ने अंग्रेजों के देखा देखी शर्ट पैंट पहनना शुरू किया तब से असुरक्षा की भावना आनी शुरू हुई।लेकिन जब मेरी बहन दुपट्टा अपनी अस्तित्व खो दी तो भीतर से टूट गया। और लगने लगा कि बस कुछ दिनों की मेहमान हूं।
मैं - हूं..
गमछा - फिर पिछले दशक में मजबूरी में,मैंने और दुपट्टा ने एक गुप्त समझौता किया ,अपनी अपनी उद्देश्य भूल, स्त्री और पुरुष का लिंग भेद मिटाकर, केवल पहचान छुपाने के लिए पार्क जाने वाली लड़कियों के काम आने का मन बना लिया और साथ ही राजनेताओं का अपनी असली चेहरा छुपाकर भोली छवि के रूप में जनता के बीच जाने के काम आने लगा।और आजतक अपना अस्तित्व बचाए रखा।
मैं - इस कोरोना युग में तो केवल तुम और तुम्हीं दिख रहे हो। आम से खास तक सभी तुम्हे आजमा रहे है।वो दिन दूर नहीं जब विदेशों में भी विदेशी कम्पनियों द्वारा मोहक और आकर्षक रूप दिया जाय और तुम सर्व विद्यमान हो जाओ।
गमछा - आप इतने भी सपने ना दिखाओ कि अपनी खुशी के आंसू भी अपने से ही पोछना पड़े।
मैं - दोस्त ! तुम आत्मनिर्भरता के प्रतीक बनकर उभरोगे।