Meera Ramnivas

Abstract Tragedy

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Meera Ramnivas

Abstract Tragedy

गिद्ध

गिद्ध

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पति के देहावसान के बाद रूपमती मजदूरी करके अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जैसे तैसे जुटा रही थी। पड़ोसी परिवार होली मनाने शहर से गांव आया। एक दूजे के यहां आना जाना हुआ। आपसी बातचीत हुई। उन्होंने रुपमति के हालात देख मजदूरी के लिए शहर चलने को कहा। बच्चे यहां वो वहां क्या उचित रहेगा, सोच कर पहले तो उसने मना कर दिया, किंतु बच्चो के भविष्य को ध्यान में रखते हुए रुपमति बच्चों और सास को छोड़ कर पड़ोसी परिवार संग शहर चली आई। ईंट गारे ढोने का काम करने लगी। इमारत के साथ ही दूसरे मजदूरों की तरह रैगजीन की झुपडी बना कर रहने लगी।

जैसा नाम था वैसा ही उसका रुपरंग था। गदराया हुआ बदन, तीखे नैन-नक्श, सामान्य कपड़ों में भी वह बहुत सुंदर दिखती थी। ठेकेदार की नज़र पड़ी और उसे गिद्ध नज़र से घूरने लगा। वह मजदूरों को सूचना देने के बहाने उसके इर्द-गिर्द घूमता रहता। रुपमति को तनिक भी नहीं सुहाता।

गुस्से से वह लाल हो जाती और उसका मुंह नोचने का मन करता। ठेकेदार की हरकत से उसके चमचे मज़दूर भी उसे ललचाई नज़रों से देखने लगे। एक दो के साथ तो उसने झगड़ भी लिया किंतु घिनौनी और कपड़ों के पार झांकने वाली नज़रों ने उसके मन को व्यथित कर दिया था। वह रात को ठीक से सो भी नहीं पाती थी। वह गांव से दरांती (पेड़ पोधे काटने का औजार) अपने साथ लाई थी

सिहराने रख सोती थी।

वह अपनी रक्षा करना जानती थी किंतु उसे अपने इर्द-गिर्द घूमते गिद्धों से भी बदतर लोगों से नफ़रत हो गई थी। गिद्ध तो मरे हुए को खाते हैं ये तो जिंदा इंसान को खा जाना चाहते हैं। उसकी मां कहा करती थी जिन लोगों में लोलुपता हो उनसे सदा दूर रहना चाहिए।  

अगली सुबह वह दनदनाते हुए ठेकेदार के पास गई, पंद्रह दिन का मेहनताना लिया और गांव लौट आई। कम खा लेगी लेकिन मानव गिद्धों से दूर रहेगी।


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