घर की इज्ज़त
घर की इज्ज़त
रुपाली आज पन्द्रह साल की हो गयी थी। आज उसका जन्मदिन था। संयुक्त परिवार में पली पढ़ी रूपाली वैसे तो स्वभाव से शान्त और संस्कारी थी। लेकिन रूढ़िवादी विचारों की कट्टर विरोधी थी। इसी बात को लेकर उसकी दादी से उसकी कभी नही बनती थी। क्योंकि उसकी दादी उसकी हर बात में टोका टाकी करती थी। जोर से मत हँसा कर , धीरे बोलाकर, लड़को से मत बात किया कर दुनिया भर की बंदिशें बस उस पर ही लगाई जाती। लेकिन उसके भाई और चाचा के लड़कों को वो एक शब्द भी नही बोलती। बचपन से हुए इस भेदभाव ने रुपाली के मन मे उनके प्रति नफरत भर दी थी।
रुपाली फोन पर बात कर रही थी। उसने कहा",थैंक यू यार। लेकिन पापा परमिशन देंगे तो ही आऊंगी। वरना नही। वैसे उनको मनाना मेरे बाए हाँथ का खेल है। अधूरी बात रुपाली की दादी ने सुन ली।
रुपाली ने अपने पापा से उनके कमरे में जाकर पूछा "पापा क्या आज बर्थडे मनाने बाहर जा सकती हूं दोस्तो के साथ वो......""
तभी पीछे से दादी उसकी बात काटते हुए बोली""नही बिलकुल भी नही।"''
और उसका हाँथ घसीटते हुए बाहर हॉल में लेकर आयी। दादी मेरा हाँथ छोड़िये मुझे दर्द हो रहा है। आआआआआ....... रुपाली बोले जा रही थी लेकिन वो कुछ भी सुनने को तैयार नही थी।
पूरा परिवार वहाँ इकट्ठा हो गया। तभी दादी ने बोला देख टीवी में आये दिन लड़कियों के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही है। तू चली बाहर लड़को के साथ बर्थडे मनाने। शर्म नही आती बाप से झूठ बोलते। बेशर्म बनी अब मुझे घूरे जा रही है। लड़कियां घर की इज्ज़त होती है जो एक बार चली जाए तो दुबारा लौट कर नही आती।
"लेकिन माँ उसकी पहले पूरी बात तो आप सुन लेती-" रुपाली के पापा ने कहा
तभी पीछे से चाचा बोल पड़े। भाईसाहब माँ गलत नही कह रही। वैसे भी आपने और भाभी ने रुपाली को कुछ ज्यादा ही आजादी दे रखी है।पहले बात और थी लेकिन अब ये बड़ी हो चुकी है। रुपाली को अब कायदे क़ानून तो मानने ही होंगे।रुपाली जानती थी कि चाचा चाची को तो बस मौका चाहिए। बोलने के लिए। क्योंकि उनको कोई बेटी नही थी।
तभी चाची ने कहा "रूपाली अब अन्दर कमरे में जाओ। इसलिए तो लोग लड़कियां पैदा करने से लोग डरते है भाभी। रुपाली को अंदर ले जाइए"
"नहीं जाऊंगी!और अब तो बिलकुल भी नही जाऊंगी और जन्मदिन भी मनाऊंगी जैसे मुझे ठीक लगेगा।" रोती हुई रुपाली ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
"दादी अगर बेटियों से घर की इज्ज़त है तो बेटों से घर मे क्या है??? कुछ भी नही तो क्यों पैदा करते है लोग बेटो को जब सारी जिम्मेदारी बेटियों की ही है तो।किसी पुरूष के द्वारा ज़बरदस्ती किसी महिला का बलात्कार किये जाने से उस महिला की इज्ज़त और उसके परिवार का सम्मान चला जाता है। तो क्या ऐसे पुरूष का और उसके परिवार का सम्मान समाज मे बढ़ जाता है नही ना......।
दादी बलात्कार तो अब 2 साल की बच्ची से लेकर 80 साल की बुजुर्ग तक से हो रहा है। तो चलिए हम सब एक कमरे में बंद हो जाते है। और ये पुरुष कमरे में बाहर से ताला लगा दे। आप के हिसाब से यही ठीक होगा ना। तब बच जाएगी इज्जत और सुरक्षित भी रहेगी।
चाची ये सोच कर की कही लड़कियों के साथ कोई बुरी बात ना हो जाये। लोगो को लड़की पैदा करने में डर लगता है। तब तो इस बात से भी डर लगना चाहिए कि कही बेटा पैदा होकर किसी लड़की का बलात्कार ना कर दे।इस डर से लोग बेटा भी ना पैदा करें सिर्फ लड़की के लिए ही ऐसी सोच क्यों??
ये लोगों की ओछी मानसिकता ही है जो समाज में फर्क पैदा करती है महिला पुरूष में। लड़की उस शैतान से ज्यादा इस बात से डर जाती हैं कि अब वो कैसे सामना करेगी समाज और घर वालो का। लेकिन जिसदिन हर घर मे लोग लड़को को लड़कियों की इज्ज़त करना और घर के इज्जत की जिम्मेदारी लड़को पर भी दे देंगे। थोड़ी बंदिशें लड़को पर भी लगने लगेंगी। तो ही बदलाव सम्भव है। जिस दिन मातापिता और परिवार अपने बलात्कारी बेटे या आदमी को बचाने की बजाय उनसे सम्बंध ही खत्म कर के उनको सजा दिलाने लगेगा। बदलाव जरूर आएगा। बलात्कार करने वाले कि इज्जत जानी चाहिए और सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। उन औरतों का नही जो खुद बिचारी उसका शिकार होती है।रही मेरी बात |तो कभी भी अगर किसी ने मेरे साथ ऐसा करने की कोशिश की तो मैं उस पुरुष का पुरुषत्व ही नष्ट कर दूँगी। जिसकी गंदी नजरें और हाथ मुझ तक पहुंचेंगे।चाहें मेरे पास उस वक़्त हथियार हो या ना हो। मुँह बोलने के लिए तो दांत काटने के लिए दिए गए है। बस उनका सही वक्त पर इस्तेमाल करना होगा। बिना डरे। तब उसकी हालत भी वही होगी। कि किसी से कुछ कहने में भी उसको शर्म आएगी।मैं अपनी रक्षा करना जानती हूँ। और शायद दुनिया की हर लड़की भी जानती है। लेकिन अफसोस कि उसके अपनो का साथ ना मिलने से वो कमजोर हो जाती है।अगर नारी कमजोर होती तो आज दुनिया काली और दुर्गा की पूजा ना करती। नारी को शक्ति स्वरूप कहते है। कमजोर या अबला नही।लेकिन अफसोस कि हम औरते ही एक दूसरे का साथ नही देते। चलती हुँ। मुझे अपनी और अपने परिवार की इज्ज़त की रक्षा करना आता है। मैं अबला नही हूँ।
तभी दादी ने कहा"मुझे माफ़ कर दे बिटिया तूने बिल्कुल सही कहा। घर में कैद करना या बेटी जन्म ना देना समस्या का समाधान नही। उसके लिए बच्चो को सही संस्कार देने जरूरी है।" जा अपना जन्मदिन मना।