Anupama Thakur

Abstract

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Anupama Thakur

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गौरैया

गौरैया

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लॉक डाउन हुए एक महीना हो गया था वैसे तो सुनैना हर पल छुट्टियों की राह देखती पर इस बार लॉक डाउन के चलते छुट्टियाँ मिली तो थी पर वह संतोष देने वाली न थी। एक तरफ तो वह प्रसन्न थी कि उसका पूरा परिवार साथ में है, तो दूसरी ओर प्रतिदिन देश में होने वाली मौतें, उसे भयभीत और निराश करती।

इधर कुछ दिनों से वह वातावरण में परिवर्तन महसूस कर रही थी। सुबह-सुबह पंछियों की चह -चहाट सुनाई देने लगी थी। सबसे खुशी की बात तो यह थी कि दो गोरैयें उसके आँगन में छज्जे के नीचे से लगे पाइप के पास तिनके जमाने लगे थे।  वह बड़े ध्यान से उन्हें देखती। हल्के भूरे रंग के शरीर पर छोटे-छोटे पंख, पीली चोंच, पीले रंग के पैर,  छोटा सा मुंह, उस पर छोटी-छोटी बिंदुनुमा आँखें, दोनों भी अति सुन्दर। 

नर गौरैया के गले पर एवं आँखों के पास काला रंग था। बस यही सूक्ष्म भेद। अंतर करना कठिन था कि कौन गौरा है और कौन गौरैया। गौरा बड़े रुबाब से और परिश्रम से तिनके चुन कर ला कर देता तो मादा गौरैया उसे बडी सावधानी से जमाती। दोनों का ताल-मेल, उनकी समझदारी , उनके सामंजस्य एवं उनके प्रेम को देखकर आश्चर्य होता। सुनैना को उनकी सभी बातें पसंद आती पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि गौरा और गौरैया ने घोसले के लिये इतनी मुश्किल जगह क्यों चुनी ? बिल्कुल मुट्ठी भर  जगह होगी, जहां वे अपने तिनके जमा रहे थे।  

कुछ सात -आठ दिन यही सिलसिला चलता रहा। प्रात: दिनकर की पहली किरण के साथ ही उनका श्रम प्रारंभ होता और दिनकर के अस्त होने तक चलते रहता। उनका कठोर परिश्रम देखकर मनुष्य को भी शर्म आ जाए। सायं काल के 6.00 या 6.30 बजे के बाद वे कहां गायब हो जात, पता ही नहीं चलता एक दिन सुबह सुनैना आँगन में झाड़ू लगा रही थी, तभी उसे जूते रखने के स्टैंड पर, जहाँ एक थैली रखी हुई थी, उस पर कुछ हिंलता हुआ दिखाइ दिया। उसने निकट जाकर गौर से निरीक्षण किया, यह एक छोटा सा नवजात शिशु था, जिसे ठीक से बैठना भी नहीं आ रहा था। बिल्कुल एक डेढ इंच का गुलाबी वर्ण का लघु गात होगा।

 यह तो निश्चित था कि यह गौरा और गौरैया का शिशु था। सुनैना की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? उसने आश्चर्य से ऊपर की ओर देखा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह नन्हा शिशु घोसले से गिरा कैसे? हाथ लगाने से गौरा और गौरैया उसे स्वीकारेंगे नहीं, फिर अब क्या किया जाए? सुनैना असमंजस में पड़ गई थी, उसने तुरंत अपनी बेटी और पति को बुलाया ताकि उनकी बुद्धि से कोई उपाय निकले। सुनैना की बेटी तुरंत भीतर जाकर एक जालीनुमा प्लास्टिक की टोकरी ले आई। उस पर उसने रुई का गद्दा बनाया। पर अब प्रश्न था कि शिशु को उस टोकरी में बिना छुए कैसे बिठाए ? सुनैना के पति ने धीरे से वह थैली उठाई जिस पर शिशु गिरा था और उसे टोकरी के रुई के गद्दे पर लुढ़का दिया। फिर टोकरी के चारों ओर एक पतली सी डोरी बाँधकर उसे घोसले के निकट पाइप से बाँध दिया। अब सभी के मन में यह प्रश्न था कि पता नहीं गौरैया उसे स्वीकार करेगी या नहीं ?

सभी सदस्य घर में आ गए पर सुनैना की दृष्टि खिड़की पर ही थी। वह बार-बार बाहर जाकर देखने लगी। करीब 2 घंटे बित गए। वहाँ आस-पास भी गौरैया दिखाई नहीं दी। सुनैना बहुत डर गई, वह समझ गई कि शायद गौरैया अब शिशु को स्वीकार नहीं करेगी। वह स्वयं दरवाजे के पास खड़ी होकर लगातार आस-पास देखती रही। कभी वह भगवान से प्रार्थना करती कि गौरैया को भेज दो, तो कभी वह दरवाजे की ओट में खड़े होकर चुपके से देखती ताकि गौरैया उससे डर कर चली न जाए। जैसे -जैसे समय बीत रहा था सुनैना की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी।

वह मन ही मन अपने आप को कोसने लगी। “नाहक ही बच्चे को ऊपर टोकरी में रखा। अब गौरैया उसे नहीं स्वीकार करेगी।**  संध्या 5.00 बजे अचानक उसे चूं चूं की आवाज आई, उसने दरवाजे की जाली से चुपके से देखा, गौरैया मुँह में कीड़ा लिए टोकरी पर बैठी थी। सुनैना साँस रोक कर खड़ी रही, यह देखने के लिए कि वह शिशु को खिलाती है या नहीं? गौरैया ने दो -तीन बार गर्दन मोड- मोड  कर इधर-उधर देखा और शिशु के मुंह में निवाला भरने लगी।  सुनैना ने राहत की साँस ली और ईश्वर को धन्यवाद दिया। सुनैना के बच्चों के लिए तो जैसे घर में कोई नया सदस्य आ गया हो। वे बार-बार उस टोकरी के निकट जाते और चप्पल के स्टैंड पर चढ़कर शिशु को देखने का प्रयास करते। सुनैना भी कभी-कभी जाकर शिशु को देखती। शिशु को टोकरी में रखे 1 दिन गुजर चुका था।

गौरैया बड़ी तेजी से पेड़ों पर जाती और मुंह में कीड़े भरकर फुर्ती से लौट आती।  तीसरे दिन सुबह-सुबह ही छौटी बेटी रिद्धि,  गौरैया को आस-पास ना पाकर टोकरी के निकट गई और अचानक चिल्लाई , ’’माँ देखो, इसमें और एक छोटा बच्चा है।’’ सुनैना हैरान थी। उसे विश्वास नहीं हुआ। उसने भी चप्पल् स्टैंड पर चढ़कर टोकरी में झाँका तो देखा कि उसके जैसा ही परंतु उससे आकार में थोड़ा सा छोटा शिशु उस टोकरी में था। सुनैना बहुत खुश हुई। उसने सोचा कि गौरैया उनके प्रबंध से बहुत खुश हैं और इसीलिए शायद उसने दूसरे शिशु को भी इस टोकरी में लाकर रखा है। हर रोज की तरह गौरैये शाम 6.00 बजे तक दोनों शिशुओं को कीड़े लाकर खिलाते रहें परंतु 6.00 बजे के पश्चात वह पता नहीं उनको अकेले छोड़ कर कहां चले जाते। उस दिन भी शिशुओं को टोकरी में अकेला छोडकर दोनों चले गए। रात के 8.00 बजे थे, दोनों शिशु बहुत जोर -जोर से चीं -चीं की आवाज निकाल रहे थे। 

ग्रीष्म के दिन थे। दिनभर भयंकर लू चलती थी। उनके चिल्लाने की आवाज सुनकर सुनैना और बच्चे व्याकुल होने लगे। सुनैना की छोटी बेटी उससे पूछने लगी, “ऐसे कैसे मम्मी पप्पा है? बच्चों को अकेले छोड़ कर चले जाते हैं?’’ सुनैना के पास गौरैया के संबंध में अधिक जानकारी तो थी नहीं, फिर भी उसने बेटी को संतुष्ट करने के लिए कहा, “बेटा पंछी रात में पेड़ों पर सोते हैं, वे अपने बच्चों को स्वतंत्र रखते हैं।’’ पर फिर भी इस उत्तर से वह संतुष्ट नहीं हुई। उनके चिल्लाने पर सूनैना को लगा कि कहीं इन्हें प्यास तो नहीं लगी। निकट जाकर देखा तो बड़े शिशु का एक पैर टोकरी के छोटे-छोटे छिद्रों से बाहर निकल आया था। सुनैना ने रुई की सहायता से उसे ऊपर धकेलने की कोशिश की, अगरबत्ती के काडी से भी पतला पैर था वह। उसे डर लग रहा था कि कहीं टूट ना जाए। 

जैसे -तैसे उस छोटे से छेद से वह पैर ऊपर की ओर चला गया।  सुनैना ने राहत की साँस ली। फिर ऊपर चढ़कर देखा तो बड़ा शिशु छोटे शिशु के ऊपर चढकर चिल्ला रहा था। सुनैना ने उसे कपास लगी काड़ी की मदद से अलग किया। दोनों शिशु अपना मुँह फाड़े जोर -जोर से चिल्ला रहे थे। सुनैना को लगा कहीं इन्हें प्यास तो नहीं लगी? उसने एक कटोरी में फिल्टर का पानी लिया और माचिस की काड़ी के सफेद हिस्से को थोड़ी सी कपास लपेटी। चप्पल स्टैंड पर चढ़कर देखा तो दोनो बच्चे अभी भी अपना छोटा मुँह फाड़े चिल्ला रहे थे। सुनैना ने छोटी बेटी को कटोरी पकड़ने के लिए कहा और काडी को लगी कपास पानी में डुबोकर बड़े शिशु के मुँह में एक दो बूँद टपकाए।

उतने में सुनैना के पति वहां आ गए और उन्होंने सुनैना को डांट कर कहा, “क्या तुम भी, बच्चों की तरह उनके पास बार-बार जा रही हो,  ऐसा मत करो।’’ सुनैना झट से नीचे उतर गई और चुपचाप घर में आ गई। उसे भी लगा कि उसके पति सही कह रहे हैं।  उनके जीवन में बार-बार हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। उसने पानी तो पिला दिया था परंतु अब उसके मन में यह बात खटक ने लगी थी कि उसने शिशु को पानी पिलाकर उचित किया या अनुचित? रात भर वह यही सोचती रही कि कहीं उसने कोई गलती तो नहीं की? दूसरे दिन सुनैना जब आंगन में झाड़ू लगा रही थी तब उसने टोकरी की और देखा तो उस टोकरी के सुक्ष्म छिद्रों में से उसे लगा, जैसे अंदर एक ही बच्चा हो। उसने झट ऊपर चढ़कर देखा तो टोकरी में से कपास की गादी और छोटा शिशु गायब थे। 

सुनैना घबरा गई। वह झट से नीचे उतरी और उसने आस- पास देखा कि कहीं शिशु नीचे तो नहीं गिर गया पर कहीं पर भी उसे वह कपास की गादी और शिशु नजर नहीं आए। उसने महसूस किया कि गौरैया भी कहीं आस- पास नजर नहीं आ रही है। उसने अपने पति और बच्चों को यह बात बताई। पति ने कहा, “शायद वह शिशु छोटा था इसीलिए वह उसे चोंच में पकड़कर कहीं और ले गई होगी।

यह शिशु बड़ा होने के कारण नहीं ले जा पाई होगी।’’ सुनैना का मन विचलित रहने लगा। वह मन ही मन सोचने लगी कि यह सब उसकी नादानी के कारण हुआ है। उसने शिशु को पानी पिलाया और उसके पैर को सीधा किया, इसीलिए गौरैया उसे साथ नहीं ले गई। उस दिन सुनैना के मस्तिष्क में एक ही बात घूमती रही और वह फिर से बार-बार प्रार्थना करने लगी, “हे!ईश्वर गौरैया को भेज दो।’’ कुछ दो घंटे बाद गौरैया की  आवाज आई। वह जोर -जोर से क्रंदन कर रही थी। सुनैना ने बाहर जाकर देखा तो घोसले के निकट, छज्जे पर एक बिल्ली थी।  सुनैना ने जल्दी से उसे भगा दिया।

तब गौरैया शांत होकर टोकरी पर जाकर बैठ गई और शिशु को खिलाने लगी। अब सुनैना निश्चिंत हो गई कि  गौरैया ने उसे त्यागा नहीं है। संध्या काल का फिर से वह वियोग वाला पल आ गया, जब गौरैया उसे टोकरी में अकेला छोड़ कर चली गई। 7.00 बजे वह शिशु जोर -जोर से चिल्ला रहा था तब सुनैना ने ऊपर चढ़ कर देखा। शिशु बिल्कुल ही निर्बल, अशक्त और कमजोर नजर आ रहा था। अब पहले की तरह चंचल एवं मुँह ऊपर किए बैठा नहीं था बल्कि लेटे- लेटे ही चिं-चिं की आवाज कर रहा था। उसका कंठ क्षीण हो गया था। 

उसका एक ही पैर हिल रहा था। शरीर का रंग भी कुछ बदला- बदला नजर आ रहा था। शरीर की त्वचा सूखी हुई नजर आ रही थी। सुनैना चिंतातूर हो गई। उसके मन में फिर वही बात खटकने लगी थी। यह सब उसके पानी पिलाने के कारण हो रहा है। उसकी दशा देखकर उसे लगा कि शिशु को मोसंबी का रस पिलाए पर अब वह कोई जोखिम उठाना नहीं चाहती थी। इसीलिए वह चुप-चाप घर में आ गई। सुनैना की छोटी बेटी ने भी चढ़कर देखा और माँ से कहा, “माँ वह बच्चा मर रहा है क्या? मुझे लगता है, उसकी मम्मी उसे नहीं ले गई इसीलिए वह दुखी रह रहा है।’’ सुनैना खामोश रही। वह अंदर ही अंदर अपनी गलती के लिए रो रही थी। दूसरे दिन प्रात: जब सुनैना उठी तो उसने सबसे पहले ईश्वर को प्रणाम कर शिशु गौरैया को ठीक करने की प्रार्थना की। 

आज सुनैना का ह्रदय जोर -जोर से धड़क रहा था। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह ऊपर चढ़कर देखें। उसने झाड़ू हाथ में लिया और आँगन में झाड़ू लगाने लगी। तभी उसे गौरैया दिखाई दी। वह दरवाजे की ओट में खड़ी होकर देखने लगी। गौरैया अब चूँ- चूँ  की आवाज नहीं निकाल रही थी और ना ही गर्दन को टेढ़े -मेढ़े कर इधर-उधर देख रही थी। वह चुपचाप उस टोकरी पर आकर बैठी थी। सुनैना की समझ में नहीं आया कि वह शिशु को खिला क्यों नहीं रही है? अब उससे रहा न गया। जैसे ही गौरैया वहाँ से हटी, सुनैना ने अपने पति को टोकरी में देखने के लिए कहा। सुनैना के पति ने ऊपर चढ़कर देखा तो बड़े दुख के साथ कहा, “अरे ! यह तो पूरा सूख गया है। लगता है मर गया है।’’ सुनैना ने उन्हें टोकरी नीचे लेने क लिए कहा। उसकी दशा देख सुनैना के नेत्रों में आंसू थे। उसने रोते हुए अपने पति से कहा, “मेरे कारण ही यह शिशु मर गया है। मैंने ही इसे पानी पिलाया था।” पति ने विस्मित भाव से उसकी ओर देखा और कहा, “ऐसा क्यों किया तुमने? तुम्हें मालूम नहीं कि पंछियों की परवरिश कैसे होती है, फिर भी तुमने यह जोखिम क्यों उठाया ?’’ 

अब तो सुनैना की रुलाई और फूट पड़ी। उसे रोता देखकर पति ने कहा, “मुझे लगता है हमें उसे इस जालीदार टोकरी में नहीं रखना चाहिए था। हर रोज चलने वाली गर्म लू , वह सहन नहीं कर पाया होगा।” उतने में सुनैना की छोटी बेटी रिद्धि तपाक से बोली , “उसकी मम्मी उसे अकेला छोड़कर जाती थी ना इसीलिए वह बीमार हो गया और मर गया।” यह सब सुन सुनैना का दिल कुछ हल्का हो गया। सुनैना के पति ने बच्चे को वहीं पौधे की मिट्टी में दफना दिया और टोकरी धो दी। सुनैना ने कहा, “वह टोकरी वहीं टाँग दो। क्या पता गौरा और गौरैया फिर से आए।” टोकरी धोकर टाँगी गई पर गौरैये उसके बाद वहां कभी नहीं आई। आज भी वह टोकरी वहीं टंगी है और सुनैना हर रोज गौरा -गौरैया की प्रतीक्षा करती है।।

पर्यावरण को संतुलित रखने में पेड़-पौधों के साथ ही पशु-पक्षियों की भूमिका भी अहम है। लेकिन मनुष्य के अत्यधिक हस्तक्षेप के चलते इन सबकी संख्या कम होती जा रही है।गर्मियों का मौसम विशेषकर पक्षियों के लिए बहुत कष्टप्रद होता है। उन्हें बचाने के लिए सभी को थोड़ा-थोड़ा प्रयास करना होगा। 


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