फ़िर से चली इश्क़ की हवा
फ़िर से चली इश्क़ की हवा
प्रेम, चाहत, इश्क़, मोहब्बत ये सारे लब्ज़ एक अदृश्य इमोशन के अलग–अलग नाम है, जो अगर सच्ची हो तो दिल में सदा के लिए घर कर जाए।
यह कहानी एक ऐसे लड़के की है, जिसकी उम्र वही 20 के करीब रही होगी। पला बड़ा बिहार का वो लड़का इश्क, मोहब्बत से बहुत दूर रहता था, क्योंकि वह एक पारिवारिक जीवन जी रहा था। न ज्यादा दोस्त, न तो ज्यादा घुमना फिरना ही होता था।
पर यह बात तब की है जब तक वो 10th पास कर रहा था।
वो कहते हैं ना बड़े होने पर जज़्बात, इमोशन सब कभी न कभी खेलती ही है, तो इसके साथ भी ऐसा हुआ।
10th के फेयरवेल पार्टी पर उसे एक लड़की में अपना चाँद नज़र आ ही गया, और वक़्त भी ऐसा की अगर वो इज़हार करे हो किसी को पता चल कर भी क्या ही हो जाएगा, आज तो आखिरी दिन था। बहुत हिम्मत से वो गया ”लड़की उस दिन सच में चाँद ही लग रही थी, सफ़ेद साड़ी, ज़ुल्फ़ों में गजरे, चेहरे से ऐसी नूर बिखर रही थी मानो पूरा स्कूल उसकी नृत्य के लिए दिल थाम कर बैठा हो। वो लड़का भी कुछ कम नहीं था, गायक था बन्दा,शायद इसलिए हिम्मत जुटा पाया उस चाँद को प्रोपोज़ करने की।
लड़का अपने परफॉर्मेंस के बाद उसके पास गया और सोचा आज सब कुछ कह ही देता हूँ। उसने बस शुरू ही करा था इतने में नज़र प्रिंसिपल साहब पर पड़ी फिर क्या वो जाने लगा, तभी लड़की ने उसको रोक कर उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया, शायद वो भी लड़के के आकर्षण को कुछ दिनों से समझ रही थी। लड़का पागल हो गया था मानो, ख़्वाबों का मंजर मानो आसमानों के भी ऊपर था।
बातों का सिलसिला, चाहतों का कारवाँ ऐसे बढ़ने लगे मानो रात कब दिन हो जाये और दिन कब रात कुछ खबर ही न हो। पर किसे पता था ये वक़्त ज्यादा देर ठहरने वाला न था। एक दिन लड़के के एक दोस्त ने उसे उससे बात करते देखा तो उसको उस लड़की की हकीकत बताई, और वह किसी मातम से कम न था।लड़की किसी और के साथ रिलेशन में थी और इसके सच्चे इमोशन्स के साथ बस खिलवाड़ कर रही थी। बात आख़िरी कॉल की है, लड़के ने एक ही लाइन पूछी: ”क्या तुम किसी और के साथ रिलेशनशिप में हो?” लड़की को शायद समझ आ चुका था तो उसने भी सच बोल दिया ’हाँ’, बस कॉल खत्म।
अब लाशों की तरह बिताये हर दिन वो खुद से एक ही सवाल करता क्या ज़रूरत थी मोहब्बत की, विरानी के दिनों में अपने हर दर्द को समेटता वह सिर्फ़ गाता रहा, और जब गए तो मानो दर्द रक्त बनकर उसके पलकों के सहारे बह रहे हो। बात थोड़ी फ़िल्मी लगती है पर, फ़िल्म भी तो हक़ीक़त को उठाकर ही फ़िल्माई जाती है ना।
वक़्त गुजरता गया, और अब वो कोलकाता आ चुका था, क़रीब 4 साल के अंतराल के बाद वो पुराने सारे दर्द भर चुका था। वह अपनी तन्हाई, संगीत और अकेलेपन में जीना सीख चुका था। आने के साथ उसने अपने संगीत के लिए एक म्यूजिक क्लास पकड़ लिया। शायद यहीं से उसकी ज़िंदगी मे वो ख़ुशनुमा पल वापस आने वाले थे क्योंकि उसके लिए म्यूजिक सिर्फ़ गाना नहीं था बल्कि मानो उसकी ज़िंदगी थी, वो जब भी गाता वो जीता था।
कहते है न संगीत मानो पवित्र हृदय का मेल, उसकी म्यूजिक टीचर जो एकदम यंग और गये तो मानो ’श्रेया घोसाल’,फिर क्या दोनों पास आने लगे, लड़का न चाहते हुए भी खुद को रोक न पा रहा था क्योंकि उसके इमोशन्स तूफान मचा रहे थे। बारिश, होती तो बूँदों में उसके होने का असर दिखता, मानो पूरी क़ायनात दोनों को एक करने में जुटी हो। ये इसलिए क्योंकि इस लड़की की नेकि, पवित्रता और सच्चाई माँ सरस्वती के समान इसमें निहित थी। क्यूंकि शायद उसके गले में माँ सरस्वती का बॉस था।
फिर क्या था मोहब्बत हो ही गयी, दोनों ऐसे रहते मानो एक ज़िस्म दो जान और साथ मे जोड़े रखने की सबसे खूबसूरत उपहार संगीत।।
इसलिए कहते है, इश्क़ किसी सरहद, किसी धर्म, किसी भाषा की गुलाम नहीं। और इश्क़ दुबारा होने पर और भी खूबसूरत होती है।