Amitosh Sharma

Children Stories Inspirational

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Amitosh Sharma

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बोस : आज़ादी की एक नई सोच

बोस : आज़ादी की एक नई सोच

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मैं भारत का गौरवशाली पुत्र, फ़क्र महसूस कर रहा हूँ कि आज भारत माँ के उस पुत्र से आपको अवगत कराने जा रहा जिनके बलिदान से इस माँ का चुनार आज सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में लहरा रहा है।मैं उनके नाम से नही उनके पंक्तियों से शुरुआत करता हूँ, मुझे उम्मीद है उनकी तस्वीर आपके जहन में बन जाएगी।

”तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा” 

23 जनवरी 1897 को एक सोच ने जन्म लिया, जिसे हम हर वर्ष पराक्रम दिवस, बोस जयंती के रूप में मनाते हैं। इस वर्ष हम उनकी 126वीं वर्षगांठ मना रहे हैं।

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें हम नेताजी भी बुलाते हैं, मैं आज उनके वयक्तित्व की झलक उनकी कुछ कहानियों के ज़रिए दिखाने की कोशिश करता हूँ।

सुरुआत उनके कुछ पंक्तियों से, 

”सिर्फ़ सोचने से परिवर्तन नहीं आता, परिवर्तन के लिए अपने सच्चे जज़्बात से, साहस से, पवित्र हृदय से कर्म करना होता है, 

बुज़दिलों को हक़ नहीं की वो आज़ादी के सपने देखे, ये तो वीरों की जागीर है जो दुश्मनों को अपने आगे झुकता देखे”

आइए पहली कहानी की ओर, 1918 में नेताजी ने अपनी बी०ए० ऑनर्स की पढ़ाई कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूर्ण कर 1919 में आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए,वहाँ सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथी रैंक पाकर अफसर बने।पर जिन्होंने छोटे उम्र से ही अपनी ज़िंदगी देश के नाम कर दिया था वो भला विदेशियों के अधीन काम करना कैसे स्वीकार करते।इसलिए उन्होंने उस ऐसोआराम को त्याग कर मातृभूमि की आज़ादी के लिए कर्ममार्ग को चुना और 1921 में नौकरी से इस्तीफा दे कर वापस वतन आ गए और क्रांति की राह पर चल पड़े क्योंकि इनका मानना था कि ”आज़ादी माँगकर नहीं छीनकर लेना होता है” इनका यह सोच गांधीवादी सोच से एकदम विपरीत था इसलिए सोच की लड़ाई से मतभेद भी हुए। 1938 में दोनों सोच की लड़ाई में वोटिंग हुई तो सुभाष चंद्र बोस जीत गए और उनको इंडियन नेशनल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया । पर जाने अनजाने में ही सही उनकी वज़ह से गाँधीजी के सोच को ठेस पहुंचा था जो उनको कतई मंजूर नहीं था, वो गांधीजी को गुरु समान मानते थे, उन्होंने कहा था,

"मेरी यह कामना है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में ही हमें स्वाधीनता की लड़ाई लड़नी है” और इसी वज़ह से उन्होंने 16 मार्च 1939 को अपना त्यागपत्र गाँधी के चरणों में सौंपकर ,भारत की आज़ादी में बाहर से समर्थन करने का ठानकर 26 जनवरी 1941 में कलकत्ता से भेष बदलकर अप्रैल में जर्मनी पहुँचकर हिटलर जैसे डिक्टेटर को अपनी सोच से मदद के लिए प्रभावित कर लिया।और उसी का नतीजा हुआ की जापान जो वर्ल्ड वॉर के वक़्त ’AXIS Power’ में जर्मनी के साथ था उसने मदद की और 5 जुलाई 1943 को उन्होंने जपानी सहायता से 40 हजार सैनिकों की एक सेना बनाकर ’भारतीय हिन्द फौज’ की स्थापना की । बोस एक सोच बनकर एशिया के बहुत से देश में रह रहे भारतीयों के जहन में पल रहे थे जो तब काम आयी जब 16 अगस्त 1945 को टोक्यो के लिए निकलने पर ताइहोकु हवाई अड्डे पर नेताजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला, भारत मां का दुलारा सदा के लिए, राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गया। 

आपको लग रहा होगा ये कहानी तो अधूरी रह गयी ,तो आख़िर में एक ऎसी कहानी जिसकी सच्चई से आपकी अब तक कि सोच भारत की आज़ादी को लेकर शायद बदल जाए।

1945 और 1951 के बीच लेबर पार्टी के नेता और ब्रिटिश प्रधान मंत्री के रूप में भारत को स्वतंत्रता देने के फैसले पर हस्ताक्षर किए, क्लीमेंट एटली जब 1956 में भारत आए थे तब उनसे कुछ सवाल पूछा गया था कि,

”1942 में भारत छोड़ो आंदोलन ठंडा पर गया था फिर उसके बाद और कोई बड़ा आंदोलन हुआ भी नही, आप चाहते तो भारत पर राज करते रहते फिर आपने भारत क्युं छोड़ दिया”?

उत्तर था कि, ”नेताजी की सोच से सैनिकों के अंदर का आक्रोश चरम पर था और उनकी गतिविधियों को रोक पाना मुश्किल था जिसके परिणाम स्वरूप ये फैसला लिया गया”।

और आखिरी सवाल में कलकत्ता के गवर्नर एटली से पूछते हैं कि, ”भारत छोड़ने के ब्रिटिश फैसले पर गांधी या सत्याग्रह का प्रभाव कितना था”? इस सवाल को सुनकर, एटली के होंठ मुस्कान में मुड़ गए, और उन्होंने कहा,”कम से कम”। अब सब कुछ आपके सामने है ,आप खुद तय करो मैं भी चलता हूँ जाते जाते नेताजी के कुछ पंक्तियों से समापन करना चाहूंगा जो उन्होंने आज़ाद हिंद फौज़ के सैनिकों को संबोधित करते हुए दिया था,

”मुझे नही मालूम कि स्वतंत्रता के इस युद्ध के बाद हममे से कौन कौन जीवित बचेगा, लेकिन मैं ये जरूर जानता हूँ की आखिर में विजय हमारी होगी, हमारे मरने से अगर भारत जी उठे तो हमे हँसते हँसते मर जाना चाहिए”

”देखो वीर जवानों अपने खून पर ये इल्ज़ाम न आये, माँ ये न कहे की मेरे बेटे वक़्त पर तु काम न आये”।

मैं भारत माँ का वीर पुत्र नेताजी के स्मिर्तियों को सत सत नमन करता हूँ 🙏


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