रामोहम : राम बनो
रामोहम : राम बनो
चेतना अब जग रही तो धर्म का वास्तविक अर्थ सामने आ रहा।
सनातन दर्शन में लाखों भगवान का ज़िक्र है और हर भगवान से जुड़ा त्योहार है। और उसको मनाने के हजार कर्मकांड है।
आज अब बहुत कुछ समझ आ रहा मानो बुद्ध को तेज़ की प्राप्ति हो रही, और इतिहास गवाह रहा है, जब जब कोई बुद्ध बना उसने तथाकथित कर्मकांडी धर्म को सरलता और आध्यात्मिकता प्रदान कर धर्म के नए रूप से समाज का मार्गदर्शन किया। जैसे जगतगुरु शंकराचार्य, संत कबीरदास से लेकर स्वामी विवेकानंद तक ।।
आप मुझे गलत न समझें न तो मैं खुद को बुद्ध न ही इन महात्मा-संतों जैसा कुछ समझ रहा, क्योंकि मेरी क्या औकात इन ईश्वर स्वरुप गुरुजनों के समक्ष, मैं तो इनके पैर के नाख़ून में बसे धूल जितनी ज्ञान भी प्राप्त कर लूं तो चिता पर सुकून से इच्छा मृत्यु लेकर महापरिनिर्वाण कर लूंगा।
मैं तो बस इतना कहना चाहता हूं कि अगर आप खुद को सच्चा सनातनी बनाना चाहते हैं तो मेरे रास्ते पर एक बार चल कर देखे आपको वास्तविकता स्वयं महसूस हो जाएगी शायद जो आजतक कर्मकांड के मार्ग पर चलकर न मिली वो खालीपन वो सुकून हृदय में स्वयं अनुभूति होगी ।।
बस आप खुद को कृष्णजन्माष्टमी के दिन कृष्ण, राधा, मीरा और पार्थ बनाने का,
रामनवमी के दिन राम, सीता, विभीषण और हनुमान बनाने का,
दुर्गापूजा के दिन दुर्गा, काली बनाने का,
शिवरात्रि के दिन शिव, पार्वती बनाने का,
संकल्प लेकर राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव के होने का इस जग को प्रमाण दें ताकि जग को ये एहसास हो कि आप विष्णु, शिव और शक्ति का अवतार लेकर जग कल्याण के लिए आए हैं ।
बहुत से इंसान का ज़िक्र भगवान या उनके अवतार से किया गया है आपने सुना ही होगा जैसे बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, जीसस, मुहम्मद, बिरसा और भी कई आपको भी इनके जैसे बनना होगा।।
मैं ये नहीं कह रहा कि कर्मकांड पूरी तरह गलत है, पूजा पाठ, रीति रिवाज, भगवा रंग तिलक चंदन और भी हजार तरीके पूरी तरह गलत है और इससे कुछ नहीं होता पर समाज इसी को आख़िरी सच्चाई मानकर कर्म को त्याग दे ये उसके सस्ते भक्ति की निशानी है। आप इस दिखावटी समाज के आंख में धूल झोंककर तथाकथित पुजारी, वैष्णव, हिन्दू, सनातनी तो बन सकते हैं पर कभी खुद से पूछिए क्या सिर्फ़ धर्म का ये ऊपरी मुखौटा पहनकर आपको अंदरुनी सुकून मिलता है, तो उत्तर आए नहीं क्योंकि वास्तविक में राम या शिव का 1% भी बनने या उनका बनकर एक दिन जीने के लिए बहुत महंगा जिगरा चाहिए।।
आपने पंडितों, कथावाचकों से रामायण सुनी, तथाकथित हिन्दू और सनातनी समाज ने भी सुनी, पर उस रामायण से सिर्फ़ और सिर्फ़ राम को लेना है और उनके जैसे बनने की कोशिश पूरी जिंदगी करनी है न तो उन कथावाचकों ने बताया न ब्राह्मणों ने क्योंकि राम के जैसा एक दिन बनकर जीने में इन कर्मकांडी सस्ते ब्राह्मण, पुजारी, हिंदू ,सनातनी को मौत आती है क्योंकि रामायण से सिर्फ राम को लेना माने,
वो राम जो उच्चकुल में जन्मे (मतलब जन्म से उच्च जाति का टैग) एक राजकुमार हैं (मतलब हर सुखसुविधा ऐशोआराम से लैश) बाप ऐसे जिसकी तीन बीवियां हैं (मतलब पॉलीगैमी का समर्थक यानि पितृसत्तात्मक समाज) पर खुदपर एक भी बुराई का नामोनिशान नहीं आने दिया, वो राम जिसने अपने बाप को और इस समाज को गलत साबित कर एक ही स्त्री से जीवन भर आध्यात्मिक प्रेम किया जबकि ऐसा नहीं है मौका नहीं मिला, सबने रावण की बहन विश्वसुंदरी शूर्पणखा की राम को पाने की हार्मोनल आशिकी के बारे में तो सुना ही होगा, आजकल के सस्ते आशिक ( मतलब निब्बा निब्बी) की औकात नहीं ऐसे सीता राम ( शिव शक्ति, राधा कृष्ण) बनकर जिंदगी जी सके इसलिए वो राम (कृष्ण, शिव )की सस्ती भक्ति कर दीवाली (शिवरात्रि, कृष्णजन्माष्टमी) में पूजा और कर्मकांड का स्टेटस ( वॉट्सएप, इंस्टाग्राम स्टोरी) लगाकर समाज की नजरों में सनातनी, हिंदू और राम, कृष्ण, शिव भक्त कहलाते, पर अंदर ही अंदर रावण जैसी सोच रख किसी सीता पर हवस दिखाते ( जिस्म की दुकान लगाए कन्या की पोस्ट को लाइक और कॉमेंट कर) अब समझ आ रही होगी रामायण। की राम वो जिनका प्रेम आध्यात्मिक हो जो किसी भी स्वार्थ के परे हो(मतलब एक नारी के प्रति शिद्दत,प्यार, और सम्मान और मोनोगैमी का समर्थन) ।।
फिर बाप के वचन और कैकेयी जैसी सौतेली पुत्रमोह में अंधी माँ के सम्मान के लिए चौदह वर्ष का वनवास (मतलब राजपाठ छोटे भाई को सौंप सारी सुखसुविधाओं का त्याग यानि वैराग्य)। आज के स्वार्थी समाज जो अपने नाख़ून के धूल के लिए अपने भाई, बाप को गोली मारने पर उतर जाए सोचिए दूसरों को क्या क्या करेगा? वो राम बनेगा? या बस राम की दिखावटी पूजा करेगा सोचिए?
फिर उस राम से भी मिलिए जो भील जाति की एक महिला(आज के तथा कथित अनुसूचित जनजाति)शबरी के जूठे बेर भी प्रेमपूर्वक खा ले (मतलब जो जाति भेदभाव के परे हो) दावे के साथ बोल रहा, होगी आज के भी ब्राह्मणों की ऐसी उदार सोच? औकात नहीं आज भी अधिकतर ब्राह्मणों की, कि वो अनुसूचित जाति और जनजाति मे से किसी की जूठी पानी तक छू ले खाने की बात तो बहुत दूर की है। तो सोचिए वो ब्राह्मण, राम कहा से बनेंगे इसलिए वो सस्ते कर्मकांडी उपाय बताएंगे, खुद राम बनने की औकात नहीं, आपको राम बनने देंगे नहीं क्योंकि अगर आप खुद राम बनने लगे तो वो राम का पूजा कैसे करवाएंगे उनका बिजनेस और समाज में दबदबा दोनों जाएगा यानि डबल लॉस (इकोनॉमिकल + सोशल) इसलिए वो बस राम का संस्कृत में पाठ सुना पूजा कराएंगे और कर्मकांड में उलझा आपका राम से दूरी बढ़ाएंगे ।
अब आपको तय करना होगा कि राम, शिव, कृष्ण की कर्मकांडी पूजा करके बेचैन चिता पर सोना है या खुद को आध्यात्मिक बना खुद के अंदर जा अपने हर भेदभाव को जड़ से मिटा, अपने लाखों बुराइयां अर्थात खुद के रावण पर जीत पा, राम बनकर सुकून से गंगा में समाना है।।
इसलिए मेरी मानिए, आइए मिलकर एक नए समाज की ओर चले जिसमें राम, कृष्ण, बुद्ध, शिव की पवित्र भक्ति, पूजा से नहीं प्रयास से करें,
राम, कृष्ण, बुद्ध, जीसस, महावीर, मोहम्मद, शक्ति, शिव बनने का आजीवन प्रयास।।
बुद्धमीरामहरिशिवोहम ।। रामोहम।।
