विश्वकर्मा पूजा का आध्यात्मिक अर्थ
विश्वकर्मा पूजा का आध्यात्मिक अर्थ
आपने सुना होगा सनातन धर्म में सबसे प्रचलित मान्यता कि "कन कन में राम बसे हैं, जीव हो या निर्जीव हर मन में राम बसे हैं"
कबीर साहब ने भी अपने दोहे से यही कहना चाहा है,
एक राम दशरथ का बेटा , एक राम घट घट में बैठा ।
एक राम का सकल पसारा , एक राम सबहु से न्यारा ।।
इसमें दूसरे और तीसरे वाक्य से कबीर साहब "जग के कण कण में राम " की ही भाव दर्शा रहे हैं।
अब अगर मेरे नज़र से देखा जाए तो विश्वकर्मा में भी तो हम इसी भाव की पूजा करते हैं कि, काम आ रहे हर वस्तु, हर वाहन, की सफाई फिर पूजा, इसका अर्थ हुआ कि हम हर निर्जीव वस्तु में जो उपयोगी है उसमें हम राम का वास है, मानकर उसका पूजा कर रहे हैं।
पर एक बार दिल पर हाथ रखकर खुद से पूछिए कि कितने प्रतिशत लोग विश्वकर्मा की पूजा ऐसे भी करते हैं?
अब थोड़ा और गहरा मतलब जानिए, जैसे मैंने विश्वकर्मा पूजा मनाया क्या आपको भी ऐसे मानना चाहिए था?
अब दुनिया इसको दुर्भाग्य माने पर राम तो हर दुर्भाग्य को अपना भाग्य मानते हैं मैने भी वहीं माना, आज मेरा बाथरूम जाम हो गया था,
तो उसको सही करने आप समाज के तथाकथित किन लोगों को बुलाएंगे आपको मुझसे बेहतर पता है क्योंकि मेरा बस चलता तो मैं तथाकथित ऊंची जाती को बुलाता ताकि उनको इस बात की अनुभूति हो सके कि जो ये काम करते हैं वो छोटे नहीं हैं राम तुमसे ज्यादा शायद उनमें रहते हैं क्योंकि वो तन से भले काले और गंदे हो पर मन से गोरे और पवित्र होते हैं ।
फिर वो आए उन्होंने अपना काम शुरू किया फिर इस समाज ने भी अपना रंग रूप दिखाना शुरू किया छुआ_छूत और ऊंची नीची जाति वाला भेदभाव, न उसके पास जाते न उसको राम वाली नज़र से ही देखते बस एक पाखंड बोलते जल्दी जाओ पूजा करना है।
फिर मुझे मानो तेज की प्राप्ति हुई विश्वकर्मा का वास्तविक अर्थ समझ आया की अगर मैं अपने बाइक, फंखें या फ्रिज जो एक निर्जीव वस्तु है उसकी पूजा कर सकता क्योंकि मुझे उसमें राम दिखता है।
तो मैं अपने सामने शिद्दत से कर्म कर रहे इंसान में राम क्यों नहीं देख सकता उस निर्जीव वस्तु से तो लाख गुना बेहतर है इन तथाकथित नीची जाति में राम देखकर उनका पूजा करना।
और फिर मैंने उनके साथ मिलकर काम में थोड़ा हाथ बटाकर पूरा वक्त वही बिताया, भूखे प्यासे ताकि मेरी पूजा में कोई पाखंड न दिखे।
एक बात समझ आई उनका काम आसान नहीं होता, वो पॉटी की बदबू में घंटों बिताना नर्क से बत्तर है पर फिर भी वो बिना शिकायत किए शिद्दत से सारा कम करते हैं तो सच में राम किसमें रहते होंगे आप खुद सोचिए ब्राह्मणों में या शूद्र में?
मुझे शूद्र में ही राम दिखा इसलिए मैंने उसकी पूजा की पैसे भी देने का सौभाग्य मिला मतलब पूजा और प्रसाद दोनों चढ़ाया मैंने अपने राम को।
इसलिए मैंने आज कर्मकांडी पूजा नहीं की अगरबत्ती, जल और मिठाई नहीं चढ़ाई, शायद इस समाज के लोगों ने मुझे नास्तिक और पापी समझा होगा अपने कर्मकांडी धर्म के तराजू पर मुझे तौला होगा,
पर मुझे अब घंटा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जिसको सच में राम
मिले हों उनको इस जग से क्या फ़र्क पड़ना है।
हो सके तो हर त्योहार में पूजा करने की कर्मकांडी सोच बदलकर वास्तविक में राम की पूजा करें तो खुद आध्यात्मिक सुकून और जग कल्याण संभव है।।
मैं राममय हो रहा हूं आप कहीं पीछे न छूट जाएं खुद को राम बनाइए।।
बुद्धामिरामहरीशिवोहं।
रामोहम।।
