होली में कला के सतरंग
होली में कला के सतरंग
कला में जलन, नफ़रत और प्रतिस्पर्धा
ये महज़ बच्चों के लब्ज़ होते हैं,
परिपक्वता तो ये कहती है कि सूर्य और चाँद के
चमक को किसी का मोहताज नहीं बनना पड़ता,
सही वक्त आने पर उसकी रोशनी
पूरे जग में अपने परचम लहराएगा।
बस कलाकार के सब्र के बांध की बुनियाद
मज़बूत होनी चाहिए, वो डगमगाने न पाए।
एक दिन आएगा,
जब कला के प्रति उसकी सच्ची मोहब्बत को मंजूरी मिलेगी,
और उसकी मेहनत रंग लाएगी और
उसके इस रंग में सारा संसार सतरंगी होगा।
फिर बरसों के बेरंग होली के
इस सब्र को ठहराव मिलेगा,
और उसकी बेरंग होली बिना
कोई रंग और अबीर के ही रंगीन होगी,
फिर रंग के इस त्यौहार में वह
कला के सतरंग खूब बिखेरेगा।
क्यूंकि त्यौहार के तोह्फे में उसे
मुक़म्मल मंजिल मिली होगी।