Amitosh Sharma

Drama Action Inspirational

4.8  

Amitosh Sharma

Drama Action Inspirational

"कीचड़ में कमल "

"कीचड़ में कमल "

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बचपन से ही सुनता था कि कीचड़ में ही कमल खिलता है,

उस रात इस वाक़िए को हक़ीक़त में जिया मैंने।

बात दरअसल 27 मार्च 2021 की रात एक सफ़र की है,

गया हावड़ा के एक जनरल बॉगी में, जिये उस लम्हें की है जो कमल के समान खुशनुमा था।

टिकट के अभाव में मुझे 2S क्लास यानी जनरल बॉगी में सफ़र करना था। होली का वक़्त मानो चीटियों जैसे भीड़, उसपर साग-सब्जी और सामान का बौछार। 

अनेकों किसम के बदबू मानो इस गर्मी में मेरी सांस् रोक रही हो। पूरे वातावरण को अगर कीचड़ कहुँ तो गलत न होगा। एक ही राहत थी कि मेरी सीट विण्डो वाली थी जिससे ठंडी और शुद्ध आ रही हवा मुझे थोड़ी राहत दे रही थी। 

वक़्त करीब 12 के आसपास होगी, तभी कोई अनजान बाजु में साउंड बॉक्स और हाथ मे माइक लिए वहाँ आया।

उसे सिंगर या परफ़ॉर्मर नही कह सकता,क्योंकि उसके प्लेलिस्ट में 2 से 3 ही कराओके था वो भी शार्ट-वर्शन।

एक रंग-बरसे क्योंकि होली थी, दूसरा भोले-ओ-भोले जिसे आप ट्रेन में अक्सर सुनते होंगे। और आखिरी वो गीत जो कमल बनकर खिला।

वो गीत लेजेंडरी मोहम्मद रफ़ी साहब का था,आपने सुना होगा 'बड़ी दूर से आए हैं प्यार का तौफा लाए हैं'।

सिंगर इसलिए भी नही क्योंकि उसे सिंगिंग की शायद बहुत कम ज्ञान थी और वो गाने को जी नहीं रहा था,वो जीने के लिए गा रहा था। पैसों के लिए वो लोगों को एंटरटेन कर रहा था।

उसे मैंने खाँसते देखा तो मुझे समझ आया कि शायद उसका गला अब जबाब दे रहा था कि आज के लिए अब बख़्श दो वरना कल चल न पाऊंगा।

उसकी वज़ह गले में स्ट्रेस और स्त्रैण क्योंकि अत्यधिक इस्तेमाल से वो ड्राई हो चुका था।

तभी मेरे अंदर का वो परफ़ॉर्मर उसकी मदद के लिए उठा,क्योंकि बचपन से ही फ़िल्मों में हीरो को ऎसे मदद करते देखा था।

आज मुझे रियल लाइफ हीरो बनने का एक सुनहरा मौक़ा मिला था।

मैंने उनको 50 रुपये दिए वो शायद उस माहौल में सबसे ज्यादा थे।

फिर मैंने उनके कान में कहा, "भइया ये आखिरी गाना मैं गा दे रहा आप मेरी मेरी मदद से मिलने वाले पैसे इकठ्ठा करो"। 

फिर उसने माइक मुझे दी,खुश होकर बोला, "ये लीजिए भइया"।

फिर जब मैंने गाना सुरु करा बहुत मुर्दों में जान आयी,कुछ चेहरों पर सच मे 12 बज रहे थे।

भौंचक्का होकर बस मुझे सुन रहे थे,मानो किसी बड़े गायक को साथ बैठा देख उनके गले से ये सच्चाई उतर न रही हो।

फिर मैंने पिटारे से वो एक्सप्रेशन की जादू बिखेरी, सामने बैठे एक भौंचक्की बच्ची को स्माइल दी और फिर क्या सब झूमने लगे।

तब तक उसके आज के सारे पैसे शायद इकट्ठा हो गए थे,

क्योंकि मेरे बाद उसने एक गाना गाया ओर सिस्टम ऑफ करने में मुझसे मदद ली और एक तसल्ली भरे चेहरे से मुस्कुराकर बोला, "शुक्रिया बड़े भाई" और चला गया।

फिर मैंने भी अपने खुले चेहरे को मास्क के अंदर ढ़का क्योंकि कोरोना वापस आ गया था और फिर खिड़की पर अपनी ही दुनिया मे ये सोचकर मुस्कुराता रहा कि, बचपन से सुनी उस कहावत को मैंने आज जी भर जिया,आज हक़ीक़त में, "कीचड़ में कमल खिला था"।।


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