एप्वायन्टमेंट लेटर
एप्वायन्टमेंट लेटर


“गोलू , बाथरुम से जल्दी बाहर निकलो, बस निकल जायेगी।‘’
“सुबह सुबह क्या शोर मचा रखा है। अपने घर में भी चैन से सोने को नहीं मिलता। सबेरा होते ही शोर शुरू हो जाता है , नाक में दम कर रखा है।‘’
दिव्यम् की बड़ बड़ शांत हो जाये , इसलिये ईशा ने चुपचाप गोलू को पकड़ा और दूसरे कमरे में ले जाकर उसे तैयार करने लगी। लेकिन सुबह सुबह ही उसका मूड ऑफ हो गया था।
उसे गोलू को लेकर रोज सोसायटी के गेट पर जाकर बस का इंतजार करना पड़ता था। वहां पर उसे मान्या मिल गई और उसके साथ बातों में 10 मिनट कब निकल गये पता ही नहीं चला था । उसने घड़ी पर नजर डाली तो तेजी से भागती हुई घर आई और जल्दी जल्दी दिव्यम् के नाश्ते के लिये उसका फेवरेट पोहा बनाया और टिफिन में सैण्डविच रख ही रही थी कि वह तैयार होकर आ गये थे।
डायनिंग टेबिल पर पोहे की प्लेट देखते ही नाराज हो उठे ,’’ रोज के रोज वही पोहा, मैं ऑफिस में कुछ खा लूंगा।‘’
“टिफिन में क्या रखा है?’’
“आपकी मनपसंद सैण्डविच’’
“कुछ डिफरेंट नहीं बना सकतीं, यहां वहां गप मारना और रात दिन मोबाइल और टी.वी. से जब तुम्हें फुर्सत मिले, तभी तो कुछ करोगी।‘’
“मेरी शर्ट का बटन टूटा हुआ है, तुमसे कब से कह रहा हूं ?’’
“पैंट में प्रेस नहीं है, घर देखो तो बुरी तरह से बिखरा पड़ा हुआ है । दिन भर जाने क्या करती रहती हो?’’
“जॉब के लिये तो तुम्हें सोचने की अब कोई जरूरत ही नहीं रह गई है । मैं बेवकूफ अकेला हूं तो कमाने के लिये बस आप महारानी बन कर मेरे पैसों पर ऐश करती रहिये ।‘’
“प्लीज, नाश्ता कर लो। कल कुछ स्पेशल बना दूंगी।‘’
“तुम ही खाओ ये सब और दिन भर मेरे पैसे पर ऐश करो ।‘’
अपना क्रोध जाहिर करने के लिये पैरों से जोर से दरवाजे बंद करके वह जा चुका था।
बार बार इंटरव्यू में असफलताएं मिलने के कारण वह मानसिक रूप से बहुत परेशान रहती थी। सच कहा जाये तो वह अवसाद की शिकार हो चुकी थी। एक ओर उसका लेक्चरर बनने का सपना टूट रहा था तो दूसरी ओर पति दिव्यम् के साथ रिश्ते भी खराब हो रहे थे। अवसाद और निराशा के कारण अब तो उसने नौकरी ढूंढना ही बंद कर दिया था ।
दिव्यम् के व्यंग बाण उसके मनोमस्तिष्क को घायल कर देते तो वह घंटों तक आंसू बहा कर अपना मन हल्का कर लेती। धीरे धीरे-धीरे वह अवसाद के समन्दर में डूबती जा रही थी। बात बात में आंसुओं में डूब जाना उसका स्वभाव बन गया था।
आज भी वह अपने को रोक नहीं पाई, और बस उसकी आंखें बरस पड़ीं । वह बहुत देर तक सिसकती रही। जब वह रोते रोते थक गई तो वह उठी और किचेन समेट कर बाथरुम में नहाने के लिये चली गई। आइना में अपने चेहरे को देख वह परेशान हो उठी थी । उसकी सूजी हुई लाल आंखें उसके रोने की कहानी कह रही थीं। भूख के कारण उसकी आंतें कुलबुला रही थीं, लेकिन आज दिव्यम् के कहे हुये शब्द तुम्हीं खाओ और मेरे पैसे पर ऐश करो, सीधे उसके दिल को चुभ गये थे।
यदि गोलू न होता तो शायद वह आज ही इस घर को छोड़ कर कहीं भी चली जाती । तीन साल से अपमान झेलते झेलते वह जीवित लाश बन कर रह गई है । तभी कॉलबेल बाजी थी। चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुये इसने दरवाज़े को खोला था ।
निशि ,उसकी खास सहेली थी, जो उसके मन की सारी व्यथा की राजदार थी।
“क्या हुआ? आज फिर दिव्यम् तुझ पर नाराज हुआ और बिना नाश्ता करे चला गया। अभी तक तुमने चाय भी नहीं पी होगी।‘’
“क्यों अपने को तिल तिल करके मार रही हो? अपने लिये जीना सीखो । जी है तो जहान् है। तुम तो ऐसे बिहेव कर रही हो , जैसे अनपढ और पूरी गंवार हो।‘’
“क्या करूं? कितनी जगह तो मैंने नौकरी के लिये कोशिश की थी। कुछ हुआ भला ? कहीं कुछ होता ही नहीं । उसके स्वर में उदासी थी।
“मैं तेरे लिये डिग्री कॉलेज के लेक्चरर के लिये वॉक इन इंटरव्यू देखकर तुझे बताने आई थी। लेकिन तुझे तो रोने धोने से ही फुर्सत नहीं है। तेरा कुछ नहीं हो सकता मैं जा रही हूं।‘
“अच्छा, तुम्हीं बताओ कि गोलू कहां रहेगा?’’
’’क्यों क्या तुम्हारे पास ही बच्चा है ?’’
“मुझे दर्द नहीं हुआ था, जब में साल भर के बच्चे को डे केयर में छोड़ कर ऑफिस जाया करती थी।‘’
“दिव्यम् से पूछा भी नहीं है । वह वैसे ही चिड़चिड़ाता रहता है। उसे नाराज होने का एक मौका और मिल जायेगा।‘’
“जब हर समय उसे खुश करने की कोशिश करते रहने पर भी रहने पर नाराज रहता है तो फिर छोड़ न उसकी परवाह करना ।‘’
“अपने तरीके से जी । चुपचाप कोशिश करती रह, जब कहीं नौकरी मिल जाये तो बता देना।‘’
“एक एक नौकरी के लिये के लिये इतनी मारा मारी है ,क्या तुझे पता नहीं?’’
“और ये तो बता कि यदि तुम इंटरव्यू देने गईं तो क्या तुम्हें पक्का है कि नौकरी मिल ही जायेगी?’’
डा. ईशा गुप्ता अपने सपने को भूल भालकर पति की गाली खाकर रो रही हैं और अपने बच्चे को पाल रहीं हैं।
वाह-वाह वेरी गुड, वह ताली बजाते हुये बोली थी।
“अपनी फाइल निकालो, उस पर लगे हुये जाले और गंदगी को साफ करो । अपनी नॉलेज को अपडेट करो और फिर कॉन्फिडेन्ट के साथ इंटरव्यू को फेस करो’’
निशि की बातें सुनकर ईशा के मन में उत्साह का संचार हुआ था।
“निशि, आज तुम इस समय घर पर कैसे हो?’’
“आज मैं घर से काम कर रही थी। पेपर में तेरे सब्जेक्ट के वाक इन इंटरव्यू को देखा तो मैंने सोचा कि तुम्हें पुश करूं कि एक बार जाकर ट्राय करने में क्या हर्ज है। फिर यहां पर कॉफी का भरा हुआ मग और प्लेट में रखा हुआ पोहा ,टिफिन तेरी रोई हुई लाल आंखों ने सारी चुगली कर डाली।‘’
“आज फिर झगड़ा हुआ?’’
“निशि झगड़ा तो जब होता है, जब दोनों बोलते हैं। दिव्यम् तो मुझ पर नाराज होने का बहाना ढूंढता है।
कल मैंने अपने हेयर कट करवाये और फेशियल भी करवाया था ,फिर एक ड्रेस बहुत सुन्तो मैंने खरीद ली । मैं तो बहुत खुश थी कि दिव्यम् मेरी ड्रेड्रेस देख कर खुश होगा लेकिन वो तो देखते ही नाराज होउठा। हजारों रुपये में आग लगा कर खुश हो रही हो। तुम्हें तो ऐसा लगता है कि जैसे मैं कोई पेड़ हूं, हिलाया और नोट बरसने लगे। तुम्हें तो हर समय हरा हरा दिखाई पड़ता है। उसने मेरी ड्रेस को उठा कर फेंक दी। हट जाओ मेरे सामने से, कहते हुये गाड़ी लेकर घर से चला गया। न उसने खाया मैंने खाया, दोनों ऐसे ही सो गये।
अच्छी भली तनख्वाह है, लेकिन एक –एक पैसे के लिये किच-किच करते रहना उसका स्वभाव बन गया है।‘’
“निशि , तुम्हारे साथ बातों में बहुत देर हो गई। गोलू के आने का टाइम हो गया।‘’
“बाय, सी यू’’
“मेरी बातों में गौर करना। और इंटरव्यू के लिये तैयारी करके जाना ।‘’
निशि तो चली गई लेकिन आज उसके मन में उत्साह की उमंग पैदा कर गई थी ।
वह सोचने लगी कि बहुत हुआ, चार साल से वह दिव्यम् को खुश रखने का प्रयास करती जा रही है लेकिन उसके हिस्से में तो केवल दुत्कार और अपमान ही आया है । इसलिये अब वह चुपचाप इंटरव्यू देने अवश्य जायेगी। उसने अपने पेपर्स सब ठीक किये फिर अपनी पढाई में जुट गई । उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह अपने पैरों पर खड़ी होकर दिव्यम् को दिखायेगी कि वह भी उससे कम नहीं है और उसका भी आत्मसम्मान है।
नियत दिन वह अच्छी तरह से तैयार होकर पूरे आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू के लिये गई थी। यद्यपि कि उसे उम्मीद नहीं थी, क्योंकि डॉक्ट्रेट करने के बाद इसने चार वर्षों से कहीं पर कोई काम नहीं किया था।
लेकिन शायद आज उसकी किस्मत उसका साथ दे रही थी। जितने भी कैण्डीडेट इंटरव्यू देने आये थे , वह सभी पी एच डी कर रहे थे । अभी कोई भी डाक्टरेट पूरा नहीं कर सका था ।
उसके व्यक्तित्व और उनके पूछे गये सभी प्रश्नों के उत्तर से वह संतुष्ट और प्रभावित थे। परंतु उनके हाथ बंधे हुये थे इसलिये वह उसे एप्वायंटमेंट लेटर नहीं दे सकते थे। उन्होंने कहा कि फाइनल इंटरव्यू तो हमारे मैनेजर साहब लेंगें और वहीं से आपको एप्वायंटमेंट लेटर भी मिल जायेगा
परंतु उन सबके चेहरे की कुटिल मुस्कान देख कर वह नर्वस फ़ील कर रही थी।
लेकिन फिर क्षण भर में ही खुशी के मारे सब भूल कर उसने निशि को फोन करके पूरी बात बताई थी । वह बहुत खुश थी, वह ऐसा महसूस कर रही थी मानो उसे पंख लग गये हों और वह हवा में उड़ रही है।
अब वह इस नौकरी के लिये गंभीर होकर कोशिश में लग गई थी कि हर हालत में इस नौकरी को अपनी मुट्ठी में करना ही है । उसने मैनेजर के परिचितों का पता लगाया और उनसे मिलने के बाद पता लगा कि मैनेजर जिसको चाहेगा उसी को नौकरी देगा । यह बात सभी लोगों ने एक सुर में ही बताया था।
वह चिंतित हो उठी थी ,इसलिये उसने अपने सब्जेक्ट की अच्छे से तैयारी करनी शुरू कर दी थी ।
एक दिन एक अनजान नंबर से उसके पास किसी शख्स का फोन आया कि नौकरी पाने के लिये आपको कम से कम दस लाख रु. का इंतजाम करना होगा या फिर हमारे मैनेजर साहब को खुश करना होगा ।
अब उसके सारे उत्साह पर पानी पड़ गया था । उसके पास रुपये तो थे नहीं और किसी पुरुष को खुश करना मतलब स्त्री देह से खेलने का हक देना है।
मैनेजर के स्वभाव के बारे पता लगाने से मालूम हुआ कि वह नेता टाइप है ,लेकिन उसकी खासियत है कि वह अपने जुबान का पक्का है। वह अपना किया हुआ वादा जरूर निभाता है ।
उसके मन में तरह तरह की भाव आ रहे थे। यदि उसे डिग्री कॉलेज की नौकरी मिल जायेगी तो इसे दिव्यम् की धौंस की कोई फिक्र नहीं रहेगी । वह भी हर महीने ठाट से सैलरी लेकर आयेगी और फिर अपनी तरह से जी सकेगी ।
एक ओर नौकरी का सुनहरा सपना था तो दूसरी ओर अपनी देह से किसी को खेलने का हक देना। पशोपेश में उसकी आंखों की नींद उड़ी हुई थी। वह सोच रही थी कि दिन्यम् भी तो उसकी देह के साथ जबर्दस्ती करता है। कई बार उसने जब अपनी अनिच्छा जाहिर की तो उसने उसकी इच्छा को दरकिनार करके अपनी इच्छानुसार उसकी देह को रौंद कर अपनी इच्छा की पूर्ति की, मात्र इसलिये कि वह इसे रोटी, कपड़ा और सिर छिपाने को छत देता है । वह अपनी नौकरी के लिये यदि एक बार किसी
को अपने शरीर से खेलने का हक दे देती है तो इसमें भला हर्ज क्या है। इसकी एवज में उसे जीवन भर के लिये एक सुरक्षा कवच मिल जायेगा । परंतु यह भी हो सकता है कि वह उसके बिछाये जाल में जीवन भर के लिये फंस कर अपने परिवार से हाथ धो बैठे। नहीं वह इतनी बेवकूफ नहीं है , कि कोई उसे अपने जाल में फंसा सके। वह अपने को समझाने का प्रयास करते हुये सोचती है कि आखिर उसकी देह पर उसका भी तो हक बनता ही है ।
इसी ऊहापोह में वह अपने अतीत में खो गई थी ,जब दिव्यम् से इसकी पहली मुलाकात हुई थी ।वह पी.एच. डी. कर रही थी तब दिव्यम् एक सर्वे करने के लिये यूनिवर्सिटी में उनके गाइड के पास आये थे ।तो उनके गाइड सर ने उसे दिव्यम् की सहायता करने को बोला था।
दिव्यम् के आकर्षक व्यक्तित्व को देखते ही वह उसके आकर्षण में पड़ गई थी । दोनों की मुलाकातें होने लगी थी , कभी काम के सिलसिले में तो ,कभी कॉफी के बहाने ,बस दोनों ही एक दूसरे के प्यार में खोते चले गये । दोनों ही साथ साथ भविष्य के मीठे मीठे सपने संजोने लगे थे ।
वह दोनों शादी के सपने संजोने लगे थे । दिव्यम् का कहना था कि पहले उसे भी जॉब मिल जाये तभी शादी करूंगा। पर एक दिन प्यार के क्षणों में कब सारे बंधन टूट गये थे, पता ही नहीं चला था ।
लेकिन समस्या उस समय खड़ी हो गई जब उन दोनों के आपसी मिलन का अंकुर उसके शरीर के अंदर प्रस्फुटित हो उठा था । दोनों के बीच बहुत बहस हुई कि इस संकट से कैसे निपटा जाये । दिव्यम् इस अंकुर को नष्ट करवाने के फेवर में था लेकिन वह अपने प्यार के बीज को पनपते देखना चाहती थी ।दिव्यम् के सपने को पूरा करने के लिये वह अपने प्यार के पौधे को नष्ट नहीं करेगी। उसकी जिद के आगे दिव्यम् को झुकना पड़ा और वह मजबूरीवश शादी के लिये तैयार हो गया था । धूमधाम से दोनों की शादी हो गई। उसने रात दिन एक करके अपनी पी.एच . डी. पूरी कर ली थी ।
गोलमटोल गोलू के आने के बाद वह उसके साथ इतनी खुश और व्यस्त हो गई कि अपनी नौकरी की बात भूल ही गई वह एक सामान्य गृहिणी बन कर रह गई ।दिव्यम् के दबाव में दो चार बार इंटरव्यू के लिये गई भी तो उसका मन अपने बेटे गोलू में ही लगा रहा था। वह रात दिन गोलू के साथ व्यस्त होती गई और दिव्यम् के साथ उसकी दूरी बढती गई।
उसका नतीजा यह हुआ कि अब उसे हर दिन पति से अपमान और उपेक्षा मिलने लगी थी । गोलू के कारण खर्च भी बढ गये थे । अपने सपने के टूटना हुआ देख कर वह तिलमिला उठा था । वह दिन ब दिन क्रोधित और उद्विग्न रहने लगे थे। इसी वजह से दोनों के आपसी रिश्ते बिगड़ते चले गये थे ।
अब इसको अपनी दोस्त निशि की याद आई थी, एक वही है जो इसको सही सलाह दे सकती है और उसके मन की बातों को समझ सकती है । उसने तुरंत उसे फोन मिला कर कहा था ,मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है निशि भागती हुई तुरंत आ गई थी।
“निशि मुझे बताओ कि सारी बंदिशें , सारी सीमायें उसी के लिये ही क्यों है?’’ जरा सा दूध उफन कर बह जाता है, तुम होश में नहीं रहती हो’?
एक दिन उसके हाथ से टी सेट का कप ,धोते समय हाथ से छूटकर टूट गया था ,बस चिल्ला पड़ा था ‘’,तोड़ दिया न’’ मैं लाता रहीं और तुम तोड़ती रहो । अभी उसी दिन तुमने डिनर सेट तोड़ डाला था।
“अब निशि तुम ही बताओ कि उसे कौन समझाये कि वह ये सब जानबूझकर थोड़े ही तोड़ती है । जो काम करेगा, उससे ही तो टूट फूट होगी। वह खुद तो साहब हैं, उन्हें प्यास लगे तो पानी भी उनके हाथ में ही दो ।
उसी दिन उसकी शर्ट प्रेस कर रही थी ,एकदम से गोलू के गिरने की आवाज के कारण उसका ध्यान बंट गया बस शर्ट जल गई थी तो दिव्यम् ने जो हंगामा मचाया कि कुछ पूछो मत। तुमने मेरी एलान सोली की शर्ट जला दी । तुमने तो मेरी जिन्दगी खराब करके रख दी है ।मैं तो तुमसे पूरी तरह परेशान हो चुका हूं । अब तो घर में घुसने का भी मन नहीं करता है ।‘’
“मुझे बताओ निशि सारे अधिकार केवल उसे ही हैं , इसलिये कि वह कमाई करता है ,वह ब्राँडेड शर्ट खरीद सकता है क्योंकि वह पुरुष है । वह क्लब जा सकता है, स्टेटस सिम्बल बढाने के लिये नई बड़ी गाड़ी खरीद सकता है । और यदि वह कभी कोई मूवी देखने को भी कभी कह देती है तो बोलेगा, तुम्हें दिखाई नहीं देता, ई. एम. आई देने के बाद बचता क्या है? तुमको क्या, न ही नौकरी के लिये कोई तरह की कोशिश करना है, बस बैठे बैठे जुबान हिला दी । ‘’
“जरा सी देर घर में रहो तो बस या तो शिकायतों का पुलिन्दा या फिर फरमाइशों का ढेर । बस वह तेजी से उठ कर गाड़ी निकाली घर से 2-4 घंटे के लिये घर से गायब हो जाता । वह गोलू के साथ उलझी तो रहती है लेकिन दिव्यम् के व्यवहार के कारण वह अपने को दोयम दर्जे का समझने लगी है । वह अपना आत्मविश्वास खोती जा रही है । अब यदि उसे नौकरी नहीं मिली तो वह मानसिक रोगी बन जायेगी । ‘’
“निशि, तुम्हीं बताओ, कि शादी करके उसे क्या मिल रहा है, पेट की रोटी ,तन ढकने के लिये कपड़ा और सिर छिपाने के लिये छत लेकिन निशि मेरे दर्द को समझो कि मैं क्या खोती जा रही हूं , ‘’अपना स्वाभिमान ,स्वतंत्रता, अपना कैरियर, अपना आत्मविश्वास ,और अपना व्यक्तित्व । रोटी कपड़ा और मकान के साथ वह उसे मुफ्त में दे रहा है ताने, उपहास ,उपेक्षा और हर पल अपमान अवश्य दे रहा है ।‘’
“बताओ, आखिर वह यह सब क्यों सह रही है, मात्र अपनी शादी को बचाने के लिये’’
“ईशा, मैं क्या कहूं ? शादी का अर्थ ही समझौता है । लेकिन डियर जब प्यार होता है तो तकरार भी प्यारी लगती है ।‘’
“मैंने बचपन से मां ,ताई, चाची ,मौसी ,बुआ सभी को ऐसे ही रोते सिसकते और हर पल समझौता करते देखा है क्या मैं भी इसी तरह रोते हुये जिन्दगी गुजार दूँ । नहीं....... ऐसा कभी नहीं हो सकता ।
निशि मैं अपना अनुभव बताती हूँ कि यदि पत्नी कभी अनिच्छा होने के कारण पति को अपनी देह सौंपने को मना करती है तो उसके एवज में उसे उससे मिलती है – उपेक्षा, अनबोलापन,उपहास, और बात बात में अपमान, क्योंकि उससे पुरुष के अहम् को चोट लगती है और वह बर्दाश्त नहीं कर पाता कि पत्नी उसकी इच्छा को अस्वीकार भी कर सकती है।
मेरी सखी मैं तो सोचती हूं कि शायद पत्नी का जीवन तो वेश्या से भी गया बीता है । वह अपनी इच्छा से मना तो कर सकती है, जबकि पत्नी को तो यह भी अधिकार नहीं होता ।
यदि मैं अपनी मर्जी से अपनी देह का सौदा एक हार कर लेती हूं तो जीवन भर के लिये मेरी रोटी ,कपड़ा और मकान की समस्या समाप्त हो जायेगी। मैं इस तरह की गुलामी से सदा के लिए मुक्त हो जाऊंगी ।
निशि निःशब्द थी। आज ईशा की बातों के कारण उसकी सोचने विचारने की शक्ति जैसे समाप्त हो गई थी ।
तुम्हीं बताओ निशि क्या यह सही होगा कि वह अपने सामने आये इस अवसर को गंवा कर पतिव्रता का तमगा लगा कर आजीवन पति के द्वारा अपमान, उपेक्षा, ताने आदि सहती रहे या अपनी देह के माध्यम से अपने जीवन को नई दिशा दे जहां उसे सम्मान , सफलता, और ऊंचाइयों के साथ रोटी ,कपड़ा और मकान की सुरक्षा भी मिल जायेगी।
उसने फोन मिलाया था,’’ सर, आप मेरा एप्वायंटमेंट लेटर तैयार करवाइये। आप मुझे बताइये कि मुझे कब और कहां आना है?’’
अब जैसे निशि को होश आया था ।
“ईशा तुम मुझे फोन नंबर बताओ । मैं कोशिश करूंगी कि तुम्हें मैनेजर की कुटिल चाल से बचा सकूँ और इस मैनेजर की नौकरी के नाम उसके काले धंधे का भंडा फोड़ हो सके । और जो नौकरी के नाम पर अपनी हवस का और रिश्वत का खेल चल कहा है ,वह बंद हो सके ।‘’
“निशि जब मेरे पास उसका फोन आयेगा तब में तुम्हें बताऊंगी।‘’
ईशा मन ही मन घुल रही थी । यदि कुछ गड़बड़ हुआ तो दिव्यम् तो उसकी ओर कभी देखेगा भी नहीं,
फिर एक दिन उसके पास फोन आ ही गया कि तुम्हें इस दिन यहां पर आना है लेकिन होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना नहीं तो अपने जीवन से हाथ धो बैठोगी ।
अब जैसे –जैसे वहां जाने का दिन नजदीक आ रहा था, उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी । उसके चेहरे पर परेशानी छाई रहती । चेहरा उड़ा उड़ा रहता वह बात बेबात गोलू को डांट देती ।
दिव्यम् एक दिन ऑफिस से आये तो बहुत खुश थे । उस दिन अंतरंग पलों में उससे प्यार से पूछा , मैं काफी दिन से तुम्हें परेशान देख रहा हूं । मुझे बताओ ,उसके प्यार भरे मीठे मीठे बोल सुनकर वह पिघल उठी थी और उसने सारी बातें शुरु से आखिर तक जो कुछ भी हुआ था, सब बता डाला था । दिव्यम् ने प्यार से उसके आंसू पोंछते हुये उससे समय और दिन पूछ लिया।
अब दिव्यम् ने अपने दोस्त के पापा जो पुलिस कमिश्नर थे, संपर्क किया । उन्होंने फोन नंबर को सर्विलांस पर लगाकर ट्रैक करते हुये , उनके द्वारा किये और आये हुये काल के रिकार्ड के आधार पर मैनेजर के गलत कामों की तहकीकात की । मैनेजर के खिलाफ पहले भी कई शिकायतें आ चुकीं थीं लेकिन सबूत के अभाव में कोई कार्यवाही नहीं हो पाई थी
ईशा और दिव्यम् के सहयोग और हिम्मत से मैनेजर को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया ।
ईशा के इंटरव्यू के आधार पर उसे नौकरी मिल गई। अपने हाथ में एप्वायंटमेंट लेटर पाकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। इसके मन का अवसाद और पीड़ा सब क्षण भर में हवा हो चुकी थी ।
उसकी अंगुलियाँ जल्दी जल्दी निशि का नंबर डायल कर रहीं थीं । आखिर वही तो इसकी सूत्रधार थी।
बहुत दिनों के बाद आज दिव्यम् की आंखों में उसे अपने लिये प्यार का झरना दिखाई पड़ रहा था ।वह उसकी फैली हुई बाहों में समा गई थी। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे।
उसी समय उसका मोबाइल बज उठा था , उधर निशि थी ,दिव्यम् ने उससे उसका फोन लेकर कहा "निशि आज ईशा के एप्वायंटमेंट लेटर की खुशी में फाइव स्टार में तुम्हारी पार्टी है।" एप्वायंटमेंट लेटर ने दोनों के बीच की दूरियां पल भर में मिटा दी थीं।