एक विचार
एक विचार
क्षमा चाहती हूँ पर आज एक संवेदनशील विषय पर आप सबके साथ बात करना चाहती हूँ। आज मैं आप सबसे यह अपेक्षा करती हूँ कि इसे पढ़कर अनदेखा ना करें। अगर आपको मेरी बात ठीक लगती हैं तो एक मुहिम् छेड़ने की आवश्यकता हैं। आज का विषय हैं गालियाँ। जो हम बिना सोचे समझे प्रयोग करते हैं। दोस्ती पक्की है यह दिखाने के लिए, बड़े कूल हैं यह दिखाने के लिए या फिर बच्चे इस्तेमाल करते हैं यह बताने के लिए कि अब वह भी बड़े हो गये हैं। और समाज से उन्हें लाइसेंस मिल गया है गालियाँ देने का।
आज एक साहित्यिक (सेमी) मंच पर सरेआम गाली (माँ बहन की) का प्रयोग था। उस पर लाइक और कमेंटस भी थे। मैं विचार कर रहीं थी कि यह किस प्रकार के सभ्य समाज का निर्माण हम कर रहें हैं।
मेरे विचार में इस तरह की गलियाँ किसी मंच पर तो क्या कहीं भी शोभा नहीं देती हैं। इस तरह की गालियों में लिखा नहीं होता कि माँ और बहन किसकी हैं, वह आपकी भी हो सकती है।
एक सभ्य समाज में गालियाँ किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं होनी चाहिए, ना दोस्ती में ना मजाक में I
एक स्टार या डैश डाल देने से गालियों का स्वरूप परिवर्तित नहीं हो जाता है। इस तरह की गालियाँ एक प्रकार का मानसिक बलात्कार है। ध्यान रखें अगर आप यह गालियाँ दे रहे हैं तो आप अपने ही शब्दों से अपनी माँ बहन का मानसिक बलात्कार कर रहे हैं।
आजकल वास्तविकता दिखाने के चक्कर में वेब सीरीज व पिक्चरों में गालियों की भरमार शुरू हो गई है, क्या यह सही है ?
एक व्यक्ति की वास्तविकता दिखाने में आप पूरे समाज की वास्तविकता परिवर्तित कर रहे हैं। क्या इसी प्रकार के सभ्य समाज की रचना हम चाहते हैं ? फिर हमारी पढ़ाई लिखाई का क्या उपयोग ?
आज आप सभी लोग दिल पर हाथ रख कर बोलिए, क्या गाली देकर बात करना इतना आवश्यक है ?
क्या गाली हमारी भाषा का एक अंग है ?
क्या यह स्वीकार्य है ?
क्या यह उचित है ?
क्या इसका बहिष्कार नहीं करना चाहिए ?
क्या इन शब्दों की दैनिक ,रोजमर्रा की भाषा में आवश्यकता है ?
अगर नहीं तो चलिए आज से ही शुरु करते हैं। अपने आप से शुरू करते हैं। कृपया गालियों का इस्तेमाल ना करें और कोशिश करें कि अगर कोई कर रहा हो तो उसे भी समझाएं।
आप सभी से हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन है सिर्फ पुरुष ही नहीं (महिलाएं और लड़कियाँ भी आजकल बड़े धड़ल्ले से लड़कों की बराबरी करने के कारण गालियाँ बोलती हैं। वह नहीं जानती वह अपनी खुद की बेइज्जती कर रही है) महिलाएं बच्चे सभी गालियों का प्रयोग बंद करें।
भले ही लाइक और कमेंट ना करें पर सोचिएगा जरूर और कभी जब मुँह पर गाली आ जाए तो उसे रोक लीजिएगा कि गाली नहीं देनी है।
लीजिए मैं फिर हाज़िर हो गयी। आप लोग सोच रहें होंगें कि यह तो पीछे ही पड़ गयी।
जी हाँ यह सच हैं मैं पीछे पड़ गयी हूँ इस बात के कि हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकें। दूसरे मंच पर मेरी पोस्ट पर लोगों के विचार थे कि मेरा यह प्रतिवाद व्यर्थ हैं ( उनके शब्दों में मेरे जैसे लोगों को सुर्खियों में बने रहने के लिए आब्जेक्शन की आदत होती हैं ) खैर यह उनकी सोच हैं " . . . जाकी रहीं भावना जैसी"।
कुछ लोगों ने वैज्ञानिक रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि वैज्ञानिकों का भी मानना हैं गाली दे देने से हिंसा की प्रवृत्ति शान्त हो जाती हैं। क्या सचमुच . . .? तो उसके लिए माँ बहन से सम्बंधित गालियाँ ही आवश्यक हैं ? चलिए यह सब हमारी रचना का विषय नहीं हैं।
अभी कुछ समय पहले तक मैं सबसे कहती थी कि हर बात के लिए सरकार पर निर्भर क्यों होना। समाज को बदलने की शुरुआत हमें अपने से, अपने आप से करनी चाहिए। पर आज इस विषय पर मुझे सरकार से मदद चाहिए।
क्षमा चाहती हूँ अपनी बात रखने के लिए मैं एक शब्द का प्रयोग कर रहीं हूँ किसी की भावनाओं को आहत करना मेरा उद्देश्य नहीं है। फिर भी किसी की भावनाएँ आहत होती हैं तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। आज से दो दशक पहले एक जाति सूचक शब्द ( चमार ) बहुत ही धड़ल्ले से गाली के रूप में प्रयुक्त होता था। मुझे याद हैं इस शब्द का प्रयोग बहुधा बच्चों के द्वारा भी होता था। शायद अम्मी अब्बा से , बड़ो से छुप कर दोस्तों पर, भाई बहनों पर इस शब्द का प्रयोग मैंने भी किया था और अम्मी को पता चलने पर डाँट भी खायी थी। हाँ भाई ! तब के माता पिता इतने आधुनिक और खुले विचारों के नहीं थे।
कुछ समय पहले ( शायद दो दशक ) पहले इस शब्द का प्रयोग सरकार द्वारा वर्जित कर दिया गया चमार की जगह चर्मकार शब्द प्रयुक्त होने लगा जो कि सर्वथा उचित था। नियम बना, धारा आयी कि इस शब्द का प्रयोग करने वाले को सीधे सज़ा होंगी। और देखिए यह शब्द आज जनमानस की जुबान से, लोगों की भाषा से गायब हो गया है। वो कहते है ना "भय बिनु प्रीत ना होय"।
मेरी हाथ जोडकर सिर्फ यहीं प्रार्थना हैं कि जब हम एक जाति के लिए, उनके मान के लिए इतने संवेदनशील हैं तो एक पहल महिलाओं के मान सम्मान की भी होनी चाहिए। चलिए सभी गालियाँ नही पर वह सभी गालियाँ जो महिलाओं से संबंधित हैं को बोलना दण्डनीय होना चाहिए। जुर्माना अथवा जेल का प्राविधान होना चाहिए। वास्तविकता की आड़ में यह जो गालियों वाले गाने और सीरीयल हैं इन पर लगाम लगायी जानी चाहिए।
अगर आप मुझसे सहमत नहीं हैं और सोचते है कि माँ बहन की गालियाँ देना इतनी बड़ी बात नहीं हैं। सालों से लोग दे रहे हैं यह तो जायज हैं तो तैयार रहिये जो समाज निर्माण आप कर रहे हैं उसमें बलात्कार भी जायज होंगा जैसे अभी महिलाओं का बाजारों में बिकना जायज हैं।
कुछ ज्यादा कह दिया हो तो आप मुझे डाँट सकते हैं। मेरी बातें सही लगे तो परिवर्तन प्रार्थनीय हैं।
