एक प्यार ऐसा भी
एक प्यार ऐसा भी




सप्ताह में दो बार हम निश्चित मिलते । हमारे मिलने का समय निर्धारित होता । मेरे करीब जैसे ही वो आते , उनके हाथ को पकड़ कर पहले मैं चूमती , फिर जी भर रो लेती ।मानो,पल भर में सारे दर्द को बहा देना चाहती थी । वो मुझे रोते देखते तो बस इतना ही कहते, " अरे .. इतना रोती क्यों हो ? मैं हूँ ना । भगवान पर भरोसा रखो, सब ठीक हो जाएगा ।फिर मेरे गीले गाल पर थपकी लगाकर, वो मुझे हँसाने का यत्न भी करते । हाँ, इसी क्रम में हमारी दो- चार जरूरी बातें भी हो जाया करती थीं । "
इसी बीच , जैसे ही एक तेज आवाज...पीछे से सुनाई पड़ती , " समय समाप्त हो गया। "
हम चौकन्ने हो जाते। इतना सुनते ही अपनी हाथ को मेरी हथेली के बीच से झट खींचते हुए वो धीरे-धीरे पीछे खिसकने लगते। और ओझल होने से पहले भीगी पलकों से मुझे बाय का इशारा करते हुए , तुरंत बाल सुधार गृह के मेन गेट से बाहर सड़क की ओर मुड़ जाते थे। सजल नेत्रों से उन्हें एकटक, मैं जाते देखती रहती ।इस आस में कि जल्द ही भेंट होगी! यह सिलसिला चलता रहा , जब तक मैं बालिग़ नहीं हो गयी, लगभग एक साल तक !
बाल सुधार गृह , एक जेल की तरह ही होता है , नाबालिग बच्चों का जेल !और उस स्थान पर , पति का नियमित रूप से आना, उनसे बोल -भरोसा मिलना , मेरे लिए संजीवनी बूटी का काम करता था। वरना, एक दिन काटना भी , वहाँ मेरे लिए पहाड़ जैसा था ! देखते देखते वो दिन भी आ गया, जिसका हमें बेसब्री से इंतजार था ।
आज, बाल सुधार गृह से मैं आजाद हो रही हूँ । क्योंकि, मैं अब बालिग हो गई। मुझे बालिग़ होने का सर्टिफिकेट भी मिल गया । आज ही शाम, पति के साथ उनके घर, यानि ससुराल जा रही हूँ । भगवान का लाख शुकर है कि ससुराल वालों को एक बहू के रूप में मुझे अपनाने से कोई आपत्ति नहीं है। वरना मैं कहीं की नहीं कहलाती !
पर, समय ने करवट ली ।आज मेरा पहली एनिवरसरी है। मैं पति का सानिध्य पाकर सच में बेहद... खुश हैं । जैसे एक मरता सपना साकार हो गया ।
"भले तुम्हारा एक साल बहुत कष्ट में बीता, पर आगे तुम्हें कभी कष्ट नहीं होने दूँगा। ऐसा मैं वचन देता हूँ ।" ससुराल पहुँचने वाली बस के सीट पर बैठते ही मुझे अंक में भरते हुए इन्होंने कहा । मन मयूर बन थिरकने लगा ।
परंतु , रास्ते भर, बस के हिचकोले के साथ मेरे दिमाग में हमारी शादी की बातें ..............................
' मंदिर में विवाह संपन्न होने के तुरंत बाद, मेरे रिक्वेस्ट करने पर इन्होंने मेरे पापा को फोन से सूचना दे दी । हलांकि, पहले ये राजी नहीं हुए थे । इन्होंने सूचना भेजने के लिए मना किया। क्योंकि, हमारी लव मैरेज थी, हम दोनों दो जात के थे । मैं राजपूत और ये, मतलब मेरा प्रेमी (पति) यादव। अपने घर से भाग कर, मैंने मंदिर में इनके साथ विवाह रचाई थी । क्योंकि हमलोग एक दूसरे को बेहद प्यार करने लगे थे ।एक ही कोचिंग इन्स्टिट्यूट में हम दोनों पढने जाते थे ।यद्यपि ये मुझसे चार क्लास आगे थे। पर, इन्स्टिट्यूट के केन्टीन में हमारी अक्सर भेंट हो जाया करती थीं । हम साथ बैठकर नाश्ता करते और पढाई में भी ये मुझे बहुत हेल्प करते थे ।
फिर, देखते- देखते प्यार के सुनहरे पंख पर हम दोनों उड़ान भरने लगे । चुकी, मैं माता- पिता की इकलौती बेटी थी । इस तरह अचानक घर से गायब हो जाने पर घर के सभी लोग जरूर चिंतित होंगे -- ऐसा विचार मन में आते ही उन्हें खबर पहुँचाना मैंने उचित समझा । वैसे , पहले कई बार मेरे मन हुआ था कि अपने प्रेम के बारे में पापा ,मम्मी को मैं सब बता दूँ। पर, मेरे माता-पिता आर्थोडोक्स विचारधारा के हैं । इसलिए किसी कीमत पर हमारा अंतर्जातीय विवाह वो होने नहीं देते ।
वैसे , कभी-कभी घर में मेरी शादी की बात होने लगी थी। क्योंकि, हमारे परिवार में बेटी को अधिक पढ़ाने की परंपरा नहीं रही , कम उम्र में ही बेटी को शादी कर दी जाती है । इसलिए मेरे लिए घर से भाग कर शादी कर लेना ही एक मात्र विकल्प बचा था। जैसे ही पापा ने इनका फोन रिसीव किया, खबर सुनते ही उन्हें जैसे सांप सूंघ गया। उनका पारा सातवें आसमान पर चढ गया । स्पीकर आन रहने के कारण उधर से माँ और दादी की रोने की आवाज मुझे सुनाई पड़ी, साथ ही पापा के गरजने की आवाज आई । पर, पिता तो पिता होते हैं । मेरा मतलब, कठोरता से निर्णय लेने का सामर्थ्य उनमें भरा होता है । पापा ने झट थाने जाकर इनके विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई, " मेरे नाबालिग बेटी को बहला फुसला कर , दो कौड़ी के छोकरे ने उसके साथ शादी कर डाली ।"
फिर जो होना था वही हुआ। कानून को दिल कहाँ होता , उसे सिर्फ अपनी कारवाई से मतलब था । आननफानन में पुलिस ने हमें हिरासत में ले लिया । शादी की रात, अर्थात् सुहाग रात... को हम दोनों ने एक दूसरे से अलग-थलग किसी तरह हिरासत में गुजारी । उस रात लॉकअप में मुझसे मिलने मेरे मम्मी ,पापा नहीं आये।आते भी कैसे! बेटी ने उनसे बगावत जो कर ली ! उनकी इज्जत का कुछ ख्याल नहीं रखा। लेकिन मेरी दादी और मेरा छोटा भाई मुझे देखने आये ।
मैंने देखा, दादी के हाथ में एक टिफ़िन बाक्स था ।मुझे देखते ही वो फफफ पड़ी। पर, मुझे टोका भी नहीं! मुझे टिफ़िन देने के लिए उसने हाथ आगे जरूर बढ़ाया ।मैं लाकॅ अप में ठगी सी खड़ी , नजरें बचाकर सब देखती रही।तभी एक लेडिज कांस्टेबल ने उनके हाथ से टिफ़िन बाक्स ले लिया । उसके बाद मैंने थानेदार को उनसे बातें करते देखा । पता नहीं, क्या बातें हुईं! हाँ, कुछ घंटों बाद दोनों चले गए । सुबह होते ही पुलिस वेन पर मुझे बिठाकर,दूसरे शहर के बाल सुधार गृह में ले जाया गया। क्योंकि मैं नाबालिग थी, बालिग़ कहलाने में अभी एक साल देरी था। मेरे पति बालिग़ थे इसलिए उन्हें छोड़ दिया गया । परन्तु पति ने उसी शहर में रहने का फैसला लिया , जिस शहर के बाल सुधार गृह में मुझे रखा गया था । इन्होंने एक साल तक मेरा भरपूर साथ दिया । हमेशा मुझसे मिलने आते और ढाढ़स बांधते ।" ........ ....... ......... मेरे मन को भीगो रही थी।
प्रतिकूल परिस्थिति में सच्चे जीवन साथी का सही मतलब मुझे समझ में आ गया । आज हमारा पहला एनिवरसरी है।आज ही के दिन हम विवाह के बंधन में बंधे थे। यह सच बात है कि कच्ची उम्र में हमने विवाह करने का फैसला लिया , लेकिन जीवन साथी का चुनाव सही निकला ।इसलिए मैं अपने को बहुत भाग्यशाली मानती हूँ और ईश्वर की शुक्रगुज़ार हूँ ।अगर , बाल सुधार गृह में पति ने मेरा साथ नहीं दिया होता तो... सच में मैं मर जाती ! "अरे...तबसे क्या सोच रही हो? ससुराल नहीं जाना चाहती ? या जाने सा डर रही हो?" पति की आवाज सुनते ही मैं वर्तमान में लौट आयी। मैंने उनका हाथ अपने हाथों से पकड़ते हुए कहा, " सच में तुम बहुत अच्छे हो, अगर तुम मेरे जीवन में नहीं आते तो मेरा जीवन अधूरा रह जाता !"