एक परिवार का घिनौना राज

एक परिवार का घिनौना राज

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सुनीता को मैं उसके बचपन से जानता हूं। मैं और उसके पापा एक ही बैंक में काम करते थे। बचपन से ही वह बड़ी चंचल और हंसमुख स्वभाव की थी। जब वह शादी के बाद हमारे पड़ोस में रहने आई तो मेरी पत्नी और मैं हम दोनों को बड़ी खुशी हुई । इसके कुछ दिनों के बाद हम दोनों छः महीने के लिए अपने बेटे के पास अमरीका चले गए । अभी परसो ही वहां से लौटे थे। जानेवाले दिन सुनीता हमें एयरपोर्ट पर छोड़ने आई थी। उस दिन तो वह खुशी से ऐसी चहक रही थी कि मानो हम नहीं वह अमरीका जा रही हो।

पर वापस आने पर वह जब अपनी अंकल-आंटी से मिलने न आई तो जाने कैसा लगा ! कल जब कॅरिडोर में उससे एकबार मुलाकात हुई तो पहले तो उसे पहचान ही न पाया था। उसका चेहरा बिलकुल मुरझाया हुआ। आंखें एकदम निष्प्रभ--बुझी-बुझी सी। लगा कि कोई और है। वह भी बिना कुछ कहे ही वहां से चली गई थी। सबकुछ बहुत अजीब लग रहा था ! मैंने आकर अपनी पत्नी से कहा। उनकी भी कुछ समझ में न आया।

जब हम उसके घर मिलने गए तो घर का माहौल बिलकुल स्वाभाविक था। सुनीता की सास ने हंसकर हमारा स्वागत किया । हमारी काफी खातिरदारी की गई पर सुनीता न दिखी। उसके बारे में पूछने पर पता चला कि उसके सर में दर्द है इसलिए वह अपने कमरे में आराम कर रही है। उसका बुझा हुआ चेहरा एकायक मेरे आंखों के सामने नाच गया। उसदिन हम जल्दी घर लौट आए थे।

इसके कुछ दिनों के बाद हमें सुनीता से बातचित का मौका मिल गया। एकदिन वह जब घर में अकेली थी तो मौका देखकर मेरी पत्नी उसे अपने घर बुला लाई। शुरू में तो वह बिलकुल खामोश बैठी जमीन ताकती रही। बहुत पूछने पर उसने रोते-रोते अपनी आंटी को जो आपबीती सुनाई वह भयानक दर्दनाक था। सुनीता की शादी एक बहुत बड़े घराने में हुई थी। ससुराल वाले काफी अच्छे थे। घर में सभी सुनीता का बड़ा ख्याल रखते थे।सुनीता यहां बहुत जल्दी एडजस्ट हो गई थी।

वह एकल परिवार में पली बढ़ी थी इसलिए उसे संयुक्त परिवार शुरू से ही बड़ा अच्छा लगता था। यहाँ वह जैसी चाहती थी वैसी ही रहती थी। उसे सुबह देर से उठने की आदत थी। उसके ससुराल में इसके लिए कोई रोक-टोक न थी। पति मनीश सरकारी मुलाजिम थे। और उनके जेठ मंत्रालय में एक बहुत बड़े ओहदे पर कार्यरत थे। दोनों भाइयों की नौकरी की वजह से घर की अच्छी खासी आमदनी थी।

 कहीं किसी चीज की कोई कमी न थी। हर काम के लिए नौकर-चाकर मौजूद थे। सुनीता को कोई खास काम न करने पड़ते थे।

सुनीता की सासु माँ घर की सारी जिम्मेदारी संभालती थी। परंतु हर बात में उसके जेठ जी सतीश का निर्णय सबसे अहम् माना जाता था। घर के सारे निर्णय उनसे पूछकर ही ली जाती थी। बाकी लोग सिर झुकाकर उसे मान लेते थे ।

यहाँ तक कि सासु मां भी। ऐसा ही रोब था उनका घर और बाहर दोनों ही जगह। सासुमां हमेशा सतीश को खुश रखने की कोशिश में जुटी रहती थी। उनसे थोड़ा डरते भी थी शायद। मनीश इन सब से दूर अपनी ही दुनिया में खोए हुए रहते थे। उन्हें जैसे किसी भी चीज से कोई सरोकार न था। अजीब किस्म के ठंडा स्वभाव के इंसान थे वह।

सुनीता की जेठानी का देहांत उसके शादी के तीन साल पहले ही हो चुका था। और जेठ जी ने दूसरी शादी न की थी। सुनीता ने सोचा था कि शायद इसलिए माँजी उनका विशेष ख्याल रखती हैं। सतीश भी काफी गंभीर स्वभाव के थे। जरूरत से ज्यादा किसी से बोलते न थे। एक अजीब सी खामोशी पसरा रहता था हरदम घर में। लोग यंत्र के समान अपने काम करते रहते थे। सुनीता का ऐसे माहौल में जल्द ही दम घुटने लग गया था।पर अभी बहुत कुछ जानना बाकी था। 

सुनीता को उसके जेठ ने पसंद किया था। दोनो भाई लड़की देखने जब उसके घर आए थे तो मनीश चुपचाप एक कोने में बैठा हुआ था। दान-दहेज, शादी की सारी रस्में आदि विषयों पर सारी बाते सतीश के माध्यम से ही हुई थी ,मांजी एकबार भी नहीं आई उनसे मिलने। सबने सोचा, पिता की अनुपस्थिति में बड़ा भाई बाप का फर्ज निभा रहा है। बारात लेकर सुनीता के घर भी उसके जेठ ही आए थे।

एकबार सुनीता के घर में काम करने वाली बाई ने उससे किचन में अकेला देखकर कहा था कि उसकी जेठानी ने फांसी लगाकर खुदकुशी की थी। उनका एक चार साल का बेटा भी है जो नानी के पास रहता है। बड़ी भाभी के मौत के बाद घर का माहौल बिलकुल बदल गया। अभी सुनीता को यह सब कह ही रही थी कि अचानक सुनीता की सास ने किचन में कदम रखा और बाई सकपकाकर चुप हो गई और जल्द अपना काम निपटाने लगी।

इसके कुछ दिनों के बाद मनीश को किसी अफिशियल दौड़े पर शहर से बाहर जाना पड़ा था। उसी समय सुनीता ने अपने जेठ का असली चेहरा देखा। कितना घिनौना चेहरा था, ओफ्फ ! ! आधी रात को जब घर के सभी सो चुके थे तो सतीश उसके कमरे में आते हैं और जबरदस्ती उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं। अपनी बड़ी-बड़ी हथेली से सुनीता का मुंह वे बंद कर देते हैं ताकि वह चिल्ला न सके।

इस तरह रात भर उनका पाशविक अत्याचार चलने लगा ! जाते समय उन्होंने सुनीता को चुप रहने की हिदायत दी और यह बताया कि उसके पति मनीश उसी के दफ्तर में उनके मातहत काम करता है। अतः उसे भी बताने से कोई फायदा नहीं।

अपमानित सुनीता दर्द से कराहती हुई जब सारी बात अपनी माँ जैसी सासु माँ को कह सुनाई तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा "चुप रहो" । यह भी कोई बताने वाली बात है ! ऐसा बहुत घरों में होता है !" 

"शाबाश ! धन्य है, आप," सुनीता ने मन में सोचा। "एक माँ को जहाॅ अपने बेटे को अन्याय करने से रोकना चाहिए वहाॅ वे उसका पक्ष ले रही है। वाह रे अंधी ममता !"

बाद में सुनीता ने जब अपने पति से यह कहा तो उनका मुंह ग्लानि से भर गया। वे सुनीता से माफी मांगने लगे। सुनीता ने पुलिस में शिकायत करने की बात कही तो मनीश बड़ा डर गया और बोला कि वह अपने बड़े भाई के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकता। और अपनी असहायता दिखाकर मनीश वहां से चले गए।

सुनीता के साथ ऐसा बार-बार होने लगा। यहाँ तक कि उसका घर से बाहर निकलना, लोगों से मिलना जुलना भी बंद करा दिया गया। और इसी प्रकार वह लगातार घिनौना शारीरिक और मानसिक शोषण की शिकार बनती रही।

मुझे और मेरी पत्नी को यह सुनकर जोरदार धक्का लगा। हम लोग इतने सालों से पड़ोस में रहकर भी इस परिवार के बारे में कुछ न जान पाए ! ! मैं मन ही मन अपने आपको धिक्कारने लगा कि सुनीता की इस हालत की जिम्मेदार कुछ हद तक मैं भी हूं क्योंकि उसके यहाँ रिश्ता तय करने में मैंने भी थोड़ी मदद की थी। अब मुझे कुछ करना पड़ेगा। सबसे पहले तो मैंने सुनीता को चुप कराया , उसे दिलासा दिया कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा उसके साथ। फिर उसके पापा को फोन करके सबकुछ बताया और उसे उसके घर छोड़ आया। फिर हम सबने मिलकर उसके जेठ के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई । उम्मीद है ,सुनीता को हम जल्द ही न्याय दिला पाएंगे।

यह एक कहानी है। हकीकत के साथ जिसका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है।


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