प्रीति शर्मा

Classics Inspirational Children

4  

प्रीति शर्मा

Classics Inspirational Children

एक महीना अध्यापक ट्रेनिंग का

एक महीना अध्यापक ट्रेनिंग का

3 mins
185


मेरी ये कहानी न भुलाये जाने वाली यादों से जुड़ी है और मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।

यह उन दिनों की बात है जब मैं बी.एड. कर रही थी, टीकाराम कॉलेज, अलीगढ़ में।

ट्रेनिंग की बात आई तो हमें कॉलेज के साथ ही स्थित इंटर कॉलेज था, उसमें पढ़ाने के लिए भेजा गया था। मुझे सातवीं कक्षा सैक्सन सी पढ़ाने के लिए मिली थी और वह था रूम नंबर तेरह।संख्या देखकर ही मन कुछ अनमना सा हो गया था।पता नहीं इस कक्षा के बच्चे कैसे होंगे?

मुझे अपना पाएंगे या नहीं। मैं अपनी ट्रेनिंग ठीक से कर पाऊंगी या नहीं?

कुछ गड़बड़ तो नहीं हो जाएगी।मेरा पहला एक्सपीरियंस है?

कहीं खराब तो नहीं रहेगा,इन्हीं बुरी आशंकाओं के बीच मैंने कक्षा में प्रवेश किया था।पैंतीस-चालीस के करीब संख्या थी छात्रों की,उसमें लड़के लड़कियां दोनों।पहला दिन थोड़ा सा जान-पहचान में ही निकला।उसके बाद जो ट्रेनिंग के लिए जरूरी होता है कि अध्यापक को बच्चों के नाम याद होने चाहिए और उन्हीं से उसे बच्चों को संबोधित करना चाहिए।इससे छात्रों अध्यापक के बीच की दूरी कम होती है और एक बेहतर संबंध आपस में हो जाता है।तो बच्चों के नाम पूछे व कुछ याद किए ।

विषय हमारा था इंग्लिश और नागरिक शास्त्र।पहले पाठ योजना बनाते थे और उसी को कक्षा में इंप्लीमेंट करना होता था। बच्चों की तरफ पीठ नहीं करनी है। स्टेप बाय स्टेप विषय को जोड़ते हुए निरंतरता में आगे बढ़ना है।पिछले दिन पढ़ाये हुए विषय को अगले दिन एक्सप्लेन करते हुए आगे बढ़ाना है।इंग्लिश में तो यह से स्टेप बड़ी आसानी से हो जाते थे। एक पैराग्राफ पढ़ो, फिर पढवाओ, फिर मीनिंग ,फिर व्याख्या, उनके छोटे-छोटे क्वेश्चन आंसर निकलवाना और फिर आगे बढ़ते जाना।लेकिन नागरिक शास्त्र में ज्यादा स्टेप्स नहीं बन पाते थे तो बच्चे थोड़ा कम पार्टिसिपेट करते थे।

 खैर यह तो हुई पढ़ाने वाली बातें.. मेरा डर कि मैं ठीक से पढ़ा पाऊंगी या नहीं.. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और मेरी आशंकायें निराधार रहीं।

आठ-दस दिन होते होते बच्चे मेरे से घुल मिल गए। बेसिकली बहुत ज्यादा फ्री हो चुके थे, उन्हें लगता था यह मैडम अलग तरीके से पढ़ाते हैं और ज्यादा फ्रेंडली हैं।एक महीने के दौरान ऐसा लगने लगा जैसे मैं बहुत दिनों से वहां पढ़ा रही हूं और वह बच्चे मेरे अपने ही हैं।मेरी ट्रेनिंग समापन का आखिरी दिन था और उस दिन इंस्पेक्शन होना था। बाहर से टीम आती थी जो कक्षा में पीछे बैठकर हमारी पढ़ाई को और क्लास में हमारे तरीके,बिहेवियर को एग्जामिन करते थे। उस दिन मैं बहुत नर्वस थी और इंग्लिश पढ़ाते हुए मैंने एक सेंटेंस में गलती भी की थी।लेकिन फिर भी उसके बाद सब कुछ बहुत अच्छा गया।

अभी तक मुझे याद है कि कक्षा की सभी लड़कियों ने मुझे गुलाब के फूल दिए और विश किया।बहुत सारी अच्छी-अच्छी बातें भी कही।उस समय जो खुशी मुझे हुई थी,उस खुशी का कोई मोल नहीं।

एक अध्यापक को सबसे बड़ी खुशी तभी होती है, जब उसके स्टूडेंट्स उसको पसंद करें,उसके पढ़ाने को पसंद करें और उसके जाने की बात पर दुखी हों।अब भी ऐसा दो बार हुआ है,जब मैं ट्रांसफर होकर दूसरी जगह आई हूं और छात्रों ने विशेष तौर से छात्राओं ने दुःख जाहिर किया यहां तक कि जिस दिन मैं रिलीव हुई थी उस दिन ग्यारहवीं की छात्राओं की हिंदी की वार्षिक परीक्षा थी और उन्होंने आग्रह किया कि मैं ही वह परीक्षा लूं।उसके बाद ही रिलीव होऊं। मैंने वैसा किया और फिर दूसरी जगह ज्वाइन करने के लिए आ गयी।बाद में बारहवीं की छात्राओं ने मिलकर दूसरे अध्यापक के जरिए मुझे गिफ्ट भी भेजा।

बाद में स्कूल स्टाफ ने मुझे विदाई पार्टी भी दी और उस समय मेरे बाद पानेवाले अध्यापक ने बताया कि बच्चे मेरी पढाई याद करते हैं। ये मेरे लिए और भी गर्वानुभूति कराने वाली बात थी। 

 लेकिन फिर भी वह पहली बार वाली फीलिंग जब अध्यापक ट्रेनिंग के समय आई वो फिर कभी नहीं आई, जिसमें एक आत्मसंतुष्टि थी कि हमने अपना कार्य बहुत अच्छे तरीके से किया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics