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Lokanath Rath

Action Inspirational

3  

Lokanath Rath

Action Inspirational

एक लक्ष्य .....

एक लक्ष्य .....

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अशोक कुमार आज अपनी ४५ साल की उम्र में अपने आप को पत्रकारिता की दुनिया में प्रतिष्ठित के चुके है। वो एक जाने माने पत्रकार है और देश के कुछ अच्छे पत्रकारों में गिने जाते। आज इस मुकाम तक पहुँचने के लिए उनको बहुत ठोकर खाना पड़ा और मेहनत भी करना पड़ा। आज सुबह अपनी चाय के प्याला को हाट में ले के सोफे पे बैठते बैठते उनकी नज़र अपनी पिता माता की तस्वीर पर पड़ा। थोड़ा वो भावुक हो गए और अपनी बीते हुए अतीत में चले गए, जो की उनकी जिंदगी के एक बहुत बड़ा हिस्सा है। थोड़ी आंख को बंद करके चाय के एक चुस्की लेते हुए सोचने लगे।


अशोक कुमार का जन्म झारखण्ड की रांची शहर में हुआ था। पिता राजेश कुमार एक जाने माने प्रोफेसर थे। उनकी माता किरण देवी एक गृहिणी थी।परिवार में अशोक कुमार ही एकलौते संतान थे। बचपन में उनकी पढ़ाई अच्छी स्कूल में हुयी थी। वो पढ़ाई में इतने अच्छे नहीं थे पर जब वो आठवीं कक्षा

में थे तो उनको कहानियां लिखने की आदत हो गयी। वो ज्यादातर समाज में जो कुछ सच्ची घटनाएं होते ,उसके ऊपर लिखते रहते थे। उनके पिता माता की इच्छा थी की वो पढ़ लिखकर डाक्टर बन जाये या एक बड़े सरकारी अधिकारी बने। उनके पिता राजेश कुमार बार बार उनको ये बात बोलते रहते थे और पढ़ाई में ध्यान देने के लिए बोलते थे। पर अशोक कुमार को ये सब बिलकुल पसंद नहीं था। कई बार स्कूल के प्रिंसिपल उनके बारे में राजेश कुमार जी को सूचित भी करते थे की अशोक कुमार का ध्यान पढ़ाई में नहीं रहता। राजेश कुमार और किरण देवी अशोक कुमार को बहुत समझाते रहते थे, पर उसका कुछ भी असर उनकी ऊपर नहीं होता। अशोक कुमार स्कूल से आने के समय में रास्ते में या चौराहा पे खड़े हो कर लोगों को देखते रहते और सुनते थे। फिर घर आके उसके ऊपर लिखते थे। जैसे तैसे करके अशोक कुमार ने बारहवीं पास कर लिया। तब उनके पिता माता अच्छे पढ़ाई के लिए उनको दिल्ली भेज दिए। वहां वो उनकी मामा जी के पास रह के दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू किये। फिर एक साल के बाद अशोक कुमार हॉस्टल में रहने लगे। उनको याद है उनकी ग्रेजुएशन की शेष वर्ष में वो अपनी पढ़ाई के साथ साथ पत्रकारिता की एक ट्रेनिंग भी लेने लगे। ये उनकी पिता माता को जब पता चला तो राजेश कुमार खुद आ के उनको गुस्से में कुछ बात बोल गए। वहां से उनकी पिता चले गए।


फाइनल परीक्षा के ३ महीने पहले की बात है ,जब वो शाम को उनकी पत्रकारिता की ट्रेनिंग से लौट के आये तो उनको एक बड़ी बुरी खबर मिला। उनके पिता माता का एक्सीडेंट हो गया और दोनों हॉस्पिटल में भरती है। तुरंत अशोक कुमार रांची के लिए रवाना हुए। वहां अगले दिन सुबह पहुँच के सीधे हॉस्पिटल गए। वहां देखे की उनकी पिता बहुत नाजुक स्थिति में है और माँ भी बेहोशी की हालत में है। उसी दिन रात को उनके पिता जी का निधन हो गया। तब भी उनकी माँ बेहोश थी। सब रिश्तेदार लोग आये और अशोक कुमार के सामने सब कुछ अँधेरा जैसा लग रहा था। वो क्या करे या न करे कुछ समझ नहीं आ रहा था। जैसे भी हो अपने पिता जी को पकड़ के बहुत रोने लगे। उनको बहुत दुःख हो रहा था की उनके कुछ कर दिखाने के पहले उनकी पिताजी राजेश कुमार उनको छोड़ चल बसे। फिर अपने पिताजी के पूरे क्रिया कर्म किये। तब तक उनकी माता जी की होश वापस आ चुका था। पर उनको पैरालिसिस हो गया था। उनके दोनों पैर और दाहिने साइड पूरा काम करना बंद कर दिया था। दो महीने के बाद अपनी माता जी को ले के वो घर आये। तब उनकी माँ को भी राजेश कुमार जी का निधन के बारे में पता चल गया था। वो सिर्फ रोती रहती थी। अशोक कुमार के फाइनल इम्तहान भी चालू हो गया था ,पर वो दे नहीं पाए। घर में अपनी मां की सेवा करने में लगे। अब घर चलाने के लिए और माँ की दवाओं के लिए पैसे की भी जरुरत पड़ने लगे। जो कुछ जमा पूंजी था सब ख़तम होने लगे थे।अब अशोक कुमार कमाई के लिए नौकरी ढूंढ़ने लगे। बड़ी मुश्किल में एक जगह में सेल्समेन की नौकरी लगी। काम करने लगे और साथ ही साथ अपनी माँ की देखभाल भी। देखते देखते एक साल गुजर गया और एक दिन काम के लिए निकलने के समय उनकी माँ को दिल का दौरा पड़ा ।वो अस्पताल ले के गए और वहां उनकी भी निधन हो गया। अब अशोक कुमार पूरी तरह से टूट गए। वो बिल्कुल अकेले हो गए थे। उस दिन वो बहुत रोये थे। उनको अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था ये सोच के की वो कुछ बन नहीं पाए ,वो न पढ़ाई में न अपनी सपनों को पूरा करने में असफल रहे। अपनी माता पिता को कोई सुख दे नहीं पाए। अंदर ही अंदर वो बहुत टूटने लगे। अपनी माँ की क्रिया कर्म किये। एक हफ़्ते के लिए घर से बहार नहीं निकले। उनकी नौकरी भी चली गयी थी। अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रहे थे।

फिर एक दिन देखे कोई उनकी घर की दरवाजा पे आवाज दे रहा है। अशोक कुमार दरवाजा खोले तो देखे उनकी स्कूल के हिंदी के टीचर सामने खड़े थे।

स्कूल में वो अकेले एक व्यक्ति थे जो अशोक कुमार को समझते थे और प्रोत्साहित भी करते थे लिखने के लिए। उनको देख के अशोक कुमार नमन किये और घर के अंदर लाये। उन्होंने बैठते बैठते बोले ,''मैं सब कुछ सूना तुम्हारे बारे में। दुःख तो हुआ ,इसीलिए आया हूँ। अब तुम क्या सोच रहे हो। जो होने को था वो हो गया। तुम्हारे पास अब सिर्फ तुम्हारा सपना है। उसको पूरा करने के लिए तुम्हें ध्यान देना चाहिए।'' ये सुनको आँखों में आंसू ले के अशोक ने पूछा ,'' आप ठीक बोल रहे है सर, पर में अभी तक ग्रेजुएशन भी नहीं कर पाया। मैं तो सोचा था की एक पत्रकार बनूँगा ,उसके लिए में ट्रेनिंग भी पूरी कर चूका हूँ।'' ये सुन के टीचर ने बोले अच्छी बात है। ''मेरे एक मित्र के यहाँ एक हिंदी समाचार के संपादक है। मैं उनसे बात करता हूँ। तुम उनके साथ जुड़ जाओगे और शाम की कॉलेज में पढ़ाई करके ग्रेजुएशन भी कर सकते हो। अगर तुम बोलोगे तो में उनसे बात करूँगा।'' ये सुनने के बाद अशोक कुमार के मन में एक आशा की रौशनी दिखने लगा। अब वो मेहनत करके पढ़ाई के साथ साथ अपनी सपनों को भी पूरा करेगा। अशोक ने हाथ जोड़ के टीचर जी का शुक्रिया अदा करते हुए हाँ भर दिया। तब फिर शुरू हुआ अशोक के जिंदगी की एक नयी कहानी। वो हिंदी अख़बार की सिमित प्रारं था। वहां लेकिन अशोक को बहुत सिखने को मिला और काम करने का एक बड़ा माध्यम। पूरे मेहनत के साथ ईमानदारी से काम करते गया अशोक। उसका ग्रेजुएशन भी वो कर लिया। देखते देखते कुछ अच्छे तथ्यों के ऊपर काम करके अशोक को ख़ुशी मिलती था, पर उसका सैलरी बहुत काम थी। सिर्फ दो वक्त का खाना उसमें हो जाता था। ऐसे पांच साल गुजर गया। अशोक कुमार धीरे धीरे पत्रकारिता के दुनिया में अपनी कदम बढ़ाते रहे। एक दिन एक बड़े हिंदी अख़बार के लिए पत्रकार की नौकरी अशोक कुमार को दिल्ली में मिला और वो वहां काम करने चले गए। दिल्ली में रह के काम करना इतना आसान नहीं था। शुरू में बहुत तकलीफ हुयी । अशोक को भी बहुत विवाद में बेकार में जुड़ा गया। वो तो उनकी ईमानदारी था जो उनको बचते रहा। दिल्ली में एक भाड़े के कमरे में रह के वो काम करते गए। पत्रकारिता की १५ साल के बाद उनको एक बहुत बड़ा समाचार संस्था की एडिटर का काम मिला। तब तक उनका नाम की चर्चा भी होने लगा था। और तब से वो आज तक उस संस्था के साथ है। अपने एक खुद की फ्लैट पिछले साल लिए है। अभी भी अशोक कुमार अकेले है और उनकी साथी सिर्फ उनकी मेहनत और ईमानदारी। उनको पिछले साल श्रेष्ठ पत्रकार की अवार्ड भी मिला है ,जिसको वो अपनी पिता माता की तस्वीर के पास रखे है। अब उनका चाय भी ख़तम हो चूका था और अनजाने से उनकी आँखों से आंसू भी टपक पड़े थे। ये आंसू कुछ दुःख के थे, कुछ उनकी हिंदी टीचर जी के मदद के लिए थे , कुछ उनकी सपने को पूरा होते हुए ख़ुशी के भी थे । अब वो अपनी काम में जाने के लिए तैयार होने लगे....अब उनको कुछ और काम करना है....ये समाज में भ्रष्टाचार को तो उन्होंने उजागर किया और लोगों को उससे मुक्त होने के लिए बहुत कोशिश किये ,पर उनको और ज्यादा कोशिश करना होगा उसको पूरा ख़तम करने के लिए। अशोक कुमार को मालूम है की ये इतना आसान नहीं, पर वो उस पर काम करते रहेंगे... सच्चाई का रास्ता कभी नहीं भूलेंगे।



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