astha singhal

Romance

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एक दूसरे के लिए

एक दूसरे के लिए

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"ये अदालत मिस्टर एंड मिसेज सिन्हा के तलाक की अपील को मंजूर करती है। और वाणी सिन्हा को उनके बेटे अथर्व की कस्टडी सौंपती है। और साथ ही ये हिदायत भी देती है कि वाणी सिन्हा हफ्ते में एक दिन राहुल सिन्हा को अपने बेटे से मिलने देंगी।" 


जज का यह फ़रमान चौदह साल के अथर्व के दिल को छलनी कर गया। उसे तो मम्मी और पापा दोनों ही चाहिएं। यूं बंटे हुए नहीं। पर अब उसके हाथ में कुछ नहीं था। उसके मम्मी पापा एक साथ रहना ही नहीं चाहते थे। वैसे तो सही भी था। क्योंकि रोज़- रोज़ के झगड़ों से अथर्व भी परेशान था। उसकी पढ़ाई का भी बहुत नुक्सान होता था। पर कोर्ट ने जो उपाय सुझाया, वो उसकी नज़र में बिल्कुल ग़लत था। उसे अपने मम्मी पापा का प्यार एक साथ चाहिए था, बंटा हुआ नहीं। 


अब उसके स्कूल के सालाना फंक्शन में क्या दोनों अलग-अलग आएंगे? उसके जन्मदिन पर क्या दोनों अलग - अलग पार्टी देंगे। स्कूल की टीचर के साथ मीटिंग कौन करेगा? छुट्टियों में क्या वह उन दोनों के‌ साथ इकट्ठा नहीं जाएगा? 


ये सब सवाल उसके कोमल‌ से हृदय में तुफान की तरह उमड़ रहे थे। पर इन सब प्रश्नों के उत्तर उसके पास नहीं थे। 


"मम्मी-पापा, क्या आप लोग मेरी एक बात मानोगे? मेरी एक इच्छा पूरी करोगे?" अथर्व ने पूछा।


"बिल्कुल बेटा। ज़रुर करेंगे।" राहुल और वाणी ने‌ एक ही स्वर में कहा। 


"मुझे एक बार शिमला जाना है। और उस होटल में रुकना है जहां आप दोनों शादी के बाद रुके थे। ना जाने आप दोनों के साथ ऐसा मौका फिर कभी मिले ना मिले। " अथर्व बोला।


वाणी और राहुल पहले तो थोड़ा सा हिचकिचाए पर फिर दोनों मान गए। 


अगले हफ्ते दोनों अपने बेटे अथर्व को साथ लेकर शिमला के लिए रवाना हो गए। वहां पहुंच उन्होंने उसी होटल में बुकिंग कराई जहां वह दोनों अपना हनीमून मनाने आए थे। और इत्तेफाक से, उन्हें वहीं कमरा मिला। 


कमरे में पहुंचते ही दोनों की आंखों में यादों की स्मृतियां तैरने लगीं। राहुल को याद आया कि वह कैसे वाणी को गोद‌ में उठा कर उस कमरे में लाया था। कितने खुश थे दोनों एक दूसरे का साथ पाकर। पर समय के साथ सब खत्म हो‌ गया। 


वाणी भी उस कमरे की एक - एक चीज़ को गहराई से देख रही थी। आज भी उसी रंग के पर्दे, वैसा ही बिस्तर, वही सजावट थी उस कमरे की। आंखों के कोनों से ओस की बूंद‌ के समान आंसू निकल आए यह सोच कर कि उस एक हफ्ते में कितना प्रेम बरसाया था दोनों ने एक दूसरे पर। 


उस दिन थोड़ा आराम कर सबसे पहले अथर्व के कहने पर दोनों उसे जाखू मंदिर ले गये। मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते हुए राहुल बोला, "याद है वाणी, बंदरों ने तुम्हारे गॉगल छीन लिए थे, और मेरे लाख मना करने पर भी तुम अड़ गई थीं कि मैं तुम्हें तुम्हारे गॉगल ला कर दूं।" 


वाणी ने हंसते हुए कहा,"हां, याद है। वो मेरे पसंदीदा गॉगल थे। तुमने गिफ्ट किए थे। बंदरों को कैसे पहनने देती।" 


ये कहते ही वाणी और राहुल एक दूसरे को देख उस दिन की सुनहरी याद में खो से गए। अथर्व उन्हें यूं एक दूसरे में खोया देख मुस्कुरा रहा था। तभी एक बंदर आया और वाणी का पर्स छीन कर भाग गया। 


"मेरा….पर्स…राहुल प्लीज़, लेकर आओ।" वाणी चिल्लाई। 


राहुल और अथर्व ने बहुत जतन किए बंदर से पर्स लेने के पर असफल रहे। 


"वाणी, उसमें कुछ ज़रूरी सामान था क्या?" राहुल ने थक हार कर पूछा। 


"नहीं, केवल कुछ रुपए और रूमाल है।" वाणी बोली।


"उफ्फ….तो मेहनत क्यों करवा रही हो? चलो फिर।" राहुल बोला। 


"अरे! ऐसे कैसे? वो पर्स….मतलब मुझे …. चाहिए।" वाणी ने हिचकिचाते हुए कहा। 


राहुल ने गौर से देखा तो वो कोई और पर्स नहीं बल्कि उनकी शादी की दसवीं सालगिरह पर राहुल ने‌ ही दिया था। 


इतने में अथर्व ने बंदर‌ को एक केला पकड़ाया और पर्स ले‌ लिया। 


"अबे! ये आइडिया मुझे दे देता। बेकार मेहनत करवाई।" राहुल ने अथर्व की पीठ पर मुक्का मारते हुए कहा। 


"पापा, प्यार की निशानी को वापिस पाने के लिए कुछ मेहनत तो करनी पड़ती है।" अथर्व ये कह हंसते हुए आगे बढ़ गया और वाणी और राहुल एक दूसरे को देखते रहे। 


फिर वहां से वह शिमला के प्रसिद्ध क्राइस्ट चर्च गये। वाणी वहां कदम रखते ही भावविभोर हो गई। उसे याद आया कि कैसे राहुल ने मज़ाक में की उसकी बात को पूरा किया था। 


"राहुल, मेरा बड़ा मन था एक क्रिश्चियन शादी करने का।" वाणी ने यूं ही अपने दिल की बात कह दी थी। 


राहुल ने तुरंत पादरी से बात कर आधे घंटे के भीतर शादी का इंतज़ाम कर दिया और उन्होंने फिर से क्रिश्चियन रिवाजों के तहत शादी की। 


आज भी वो स्मृति उसके मन में छपी हुई है। 


वहां आज एक शादी हो रही थी। उस शादी को देख दोनों के मन भारी हो गये। काश! वह अपनी शादी बचा पाते। पर अथर्व को यकीन था कि उसके माता पिता में इतना अधिक प्यार है कि वह अलग रह ही नहीं सकते। उसने क्राइस्ट के आगे हाथ जोड़ प्रार्थना की कि उसे अपने माता पिता वापस मिल जाएं।


अगले दिन वह सब कुर्फी की ऊंची पहाड़ियों पर स्कीइंग और रोप वे का आनंद उठाने निकले। स्कीइंग करते हुए वाणी लड़खड़ा गई। तो राहुल ने आगे बढ़ जल्दी से उसे थाम लिया। वाणी के शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ पड़ी। ठीक वैसे ही जैसे उस समय महसूस हुआ था जब वह राहुल का सानिध्य पाने के लिए जानबूझकर गिरी थी। और जब राहुल उसे उठाने आया तो वह उससे प्यार से लिपट गई थी। 


"उस दिन तुम जानबूझकर मेरी बांहों में आने के लिए गिरी थीं ना?" राहुल ने धीरे से पूछा। 


वाणी ने आंखों ही आंखों में हाँ का इशारा किया और शर्माते हुए अथर्व की तरफ बढ़ गई। 


वहां से वह सब रोप वे की सैर करने गए। यह रोप वे बहुत ऊंचाई पर स्थित था। नीचे भयानक खाई थी। तीनों कुदरत का आनंद लेते हुए रोप वे से गुज़र रहे थे कि अचानक बिजली चली गई। और ट्रोली वहीं रुक गई। 


इतने में बहुत तेज़ हवाएं चलने लगीं। मौसम अचानक बदल गया। तेज़ हवाओं ने धीरे- धीरे तुफान का रूप धारण कर लिया। सभी ट्रोलियां तेज़ हवा से हिलने लगीं। आसपास से चीखने- चिल्लाने की आवाज़ें आने लगीं। अथर्व डर गया। वाणी और राहुल ने उसे अपनी ममतामई बाहों के घेरे में भर लिया। अब वो महफूज़ महसूस कर रहा था। 


तूफान उनकी ट्राली को ज़ोर से हिला रही थी। हवा इतनी तेज़ थी कि अचानक वाणी का हाथ छूट गया और वह ट्रोली के दरवाज़े से टकराकर बाहर गिरने ही वाली थी कि राहुल की मज़बूत बांहों ने उसे थाम लिया। राहुल ने एक हाथ से अथर्व को पकड़ रखा था और एक हाथ से उसने वाणी को खींच कर वापस चेयर पर बैठा दिया। 


वाणी कुछ देर के लिए शून्य हो गई। और फिर रोते हुए बोली, "मुझे लगा जैसे ये द एंड है। आज के‌ बाद मैं आप दोनों को देख ही नहीं पाऊंगी।" 


राहुल कुछ कहता इससे पहले अथर्व बोला,"सही तो है मम्मी। कल वापस जाकर आप पापा को रोज़ कहां देख पाओगी।" 


सहसा वाणी को कोर्ट के फैसले की याद आ गई। इन तीन दिनों में वह भूल ही गयी थी कि वो‌ और राहुल अलग हो चुके हैं। 


तभी उन्होंने देखा कि हैलिकॉप्टर के माध्यम से रैस्क्यू टीम वहां पहुंच चुकी थी। वह धीरे-धीरे सब लोगों को रस्सियां फैंक कर खींच रहे थे। जब रस्सी राहुल की ट्राली की तरफ आई तो उन दोनों ने पहले अथर्व को बैल्ट बांध दी। सुरक्षाकर्मी रस्सी खींच ही रहे थे कि बैल्ट टूट गई। अथर्व एकदम से नीचे गिरने लगा कि तुरंत उसने पेड़ का एक तना पकड़ लिया।


वाणी की चीख निकल गई। वह भागी अपने बेटे को बचाने। पर राहुल ने उसे पीछे से खींचते हुए कहा,

"पागल हो गई हो क्या? अभी खाई में गिर जाती।" 


"राहुल मेरे बेटे को…. हमारे बेटे को बचा लो, प्लीज़।" वाणी अथर्व को लटकते देख चीखते हुए बोली। 


राहुल ट्रोली के अंदर उल्टा लेट गया। अपने पैर कुर्सियों ‌के बीच में फंसाए और खिसकते हुए ट्राली से बाहर झुका। धीरे-धीरे झुकते हुए वह अथर्व तक पहुंचा और अपना हाथ आगे बढाया,"अथर्व….बेटा मेरा हाथ पकड़ लो। मैं तुम्हें वापस खींच लूंगा।" 


"नहीं पापा, मैं नहीं पकडूंगा।" अथर्व ने चीखते हुए जवाब दिया।


ट्राली के अंदर से वाणी चीखते हुए बोली,"अथर्व….पागल हो, पकड़ो पापा का हाथ।" 


"नहीं मम्मी, आज पापा मुझे बचा लेंगे, लेकिन आगे आने वाले वक्त में पापा हर समय मेरे साथ नहीं होंगे मुझे बचाने।" अथर्व बोला।


"अथर्व…. बेवकूफियां मत कर। जल्दी हाथ पकड़। तेरी पकड़ इतनी मज़बूत नहीं है। तू गिर जाएगा।" राहुल चिल्लाया।


"पापा, आप दोनों के बिना मैं जीवन में वैसे भी नीचे ही गिर जाऊंगा। किसी एक का साथ मिलेगा, और एक का नहीं, तो वैसे भी मेरे जीवन के कोई मायने नहीं रहेंगे। तो…अच्छा है कि मैं यहीं गिर जाऊं।" अथर्व रोआंसा होकर बोला। 


"बस कर अथर्व….तू जो चाहेगा, वैसा ही होगा। अब तो पापा का हाथ पकड़ ले।" वाणी रोते हुए बोली। 


"मम्मी, आप और पापा दोनों चाहिएं मुझे। मैं आप दोनों का प्यार बांटना नहीं चाहता। पर आप दोनों के साथ ज़बरदस्ती भी नहीं करना चाहता।" अथर्व बोला।


"अथर्व, यहां आकर हम दोनों ने एक दूसरे के लिए आज भी उस प्यार को महसूस किया है। हमें समझ में आया कि हम दोनों कभी एक दूसरे से अलग हो ही नहीं सकते। ये बात हम तुम्हें आज बताने ही वाले थे। आजा बेटा, पकड़ ले मेरा हाथ।" राहुल बोला।


तभी वाणी का भी हाथ आया, "हमारा हाथ…." वाणी बोली।


अथर्व ने खुशी- खुशी अपना हाथ दोनों के हाथों में दे दिया और उन दोनों ने उसे ऊपर खींच अपने कलेजे से लगा लिया। 


"सॉरी अथर्व, हम दोनों इतने स्वार्थी हो गये थे कि तेरे‌ दर्द को महसूस ही नहीं कर पाए।" वाणी बोली। 


"आज के बाद कभी अलग होने की नहीं सोचेंगे।" राहुल ने वाणी और अथर्व को गले लगाते हुए कहा। 


"हम भूल गए थे कि हमने एक दूसरे को पाने में कितनी मेहनत की थी। कितने कष्ट सहे थे। एक दूसरे का प्यार हमें आसानी से नहीं मिला था। पर अपने अहम में आकर हमने उस प्यार को यूं ही जाने दिया। पर आज तूने हमारी आंखें खोल दी अथर्व।" वाणी ने अथर्व को प्यार करते हुए कहा। 


सच में, वो लोग बहुत खुशनसीब होते हैं जिनकी ज़िन्दगी में प्यार करने वाला हमसफ़र होता है। उस प्यार को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चहिए। क्योंकि प्यार बार-बार दिल के दरवाज़े पर दस्तक नहीं देता। 



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