एक दिन बाद की दिवाली
एक दिन बाद की दिवाली
आज दीवाली थी, मोहल्ले के सभी घरों में गर्मागरम पकवान और खुश्बूदार मिठाईयाँ बन रहीं थीं। सारे मोहल्ले के बच्चे नये कपडे पहने, हाथ में पटाखों की थैलियाँ खुश दिख रहे थे। शाम को दीप प्रज्जवलित करके सारे बच्चे पटाखे चलाने के लिये चौराहे पर इकट्ठे हो गये। पटाखों के धमाके, फुलझडी, चखरी और अनार की रंगीन रोशनी के बीच बच्चों के ठहाकों की आवाजें भी हवा में गूँज जातीं।
चौराहे पर सड़क के उस पार एक टूटा-फूटा खण्डहरनुमा घर था, जहाँ ना कोई दिया जल रहा था, ना हँसी के ठहाके। बस घर के बाहर उदास बैठे तीन मासूम बच्चे उन पटाखे चलाते बच्चों को ललचाई नज़रों से देख रहे थे। उन तीनों में जो सबसे बडी थी, लगभग नौ साल की झिलमिल ने अपनी माँ से पूछा - "माँ, आज तो दीवाली है हमें भी पटाखे चलाने हैं, मिठाई खानी है और हाँ हमारे प्यारे से घर को हमें भी दियों से सजाना है। माँ तुमने दिये और पटाखे क्यों नहीं खरीदे?"
- बिटिया, हमारे घर प्रभु श्रीराम एक दिन बाद आयेगें। तुम कल दिये जलाना और पटाखे भी फोड़ लेना। मैं तुम्हारी पसंद की मिठाईयाँ भी बना दूँगी। कल तुम तीनों भी उन बच्चों की तरह जी -भरके खुशियाँ मना लेना।" - माँ ने बच्चों को समझाते हुये कहा।
तीनों बच्चे देर रात तक घर के बाहर बैठे दूसरों को मस्ती करते और अपने घर प्रभु श्रीराम के आने की राह देखते बैठे रहे। फिर थककर अंदर आकर अपनी कल की दीवाली की बातें करते करते सो गये। उनके चेहरे पर उम्मीदें, खुशी और सुकून साफ झलक रहा था।
अगले दिन तड़के सुबह उनकी माँ एक बड़ी सी बोतल और थैली लेकर घर से निकल गई। रात के जले पटाखों में जो कुछ फटे नहीं थे या बच्चों की थैलियों में से गिर गये थे, पूरे शहर में घूम-घूमकर वो पटाखे बीन लाई थी। बड़े घरों के बाहर और मंदिर में रखे दिये जो रात में हवा से बुझ गये थे, उन दियों में अभी भी तेल भरा था। उस गरीब औरत ने सभी दियों को एक कपड़े के थैले में रखा और उनकी बाती को निचोड़कर तेल निकालकर अपनी बोतल में भर लिया। साथ ही मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ीं तरह-तरह की मिठाईयाँ, रसगुल्ले, लड्डू और पेडे़ भी अपने थैले में डाल लिये। और शाम के चार बजते बजते जल्दी से अपने घर लौट आयी, जहाँ उसके तीनों नन्हें बच्चे दीवाली और प्रभु श्रीराम दोनों के आने का इंतजार कर रहे थे।
माँ ने घर लौटते ही मिट्टी के चूल्हे पर कढ़ाई चढ़ाई फिर गर्मागर्म पूरियाँ तली, आलू की सूखी सब्जी बनाई और आटे में शक्कर घोलकर मीठा हलवा भी बनाया। घर में ताजे खाने की खुश्बू दौड़ गयी।
7 साल के श्याम ने अपनी आँखें हैरानी से बड़ी करते हुये अपनी बड़ी बहन झिलमिल से कहा - "दीदी, माँ सही बोल रही थी। हमारे घर दीवाली और रामजी एक दिन बाद आते हैं।"
- "हाँ, चलो हम सब आँखें बंद करके रामजी से कुछ पटाखे भी जल्दी से माँग लें। " - झिलमिल ने भी श्याम की हाँ में हाँ मिलाते हुये खुशी से आँखें बंद करके कहा।
और झिलमिल, श्याम और रानी तीनों भाई-बहन आँखें बंद करके रामजी से पटाखे माँगने लगे। जब उन्होनें आँखें खोलीं तो उनके सामने पटाखों की एक छोटी सी थैली रखी थी, जिसमें पटाखे, फुलझडियाँ और चरखी सब थे। पास ही रखी एक थाली में कई प्रकार की मिठाईयाँ भी रखीं थीं। ये देखकर तीनों बच्चों की खुशी का ठिकाना ना रहा। पीछे बैठी माँ बच्चों को खुश देखकर धीमें धीमें मुस्कुरा रही थी। उनकी माँ आँखों में आँसू लेकर हाथ जोड़कर प्रभु श्रीराम को याद करते हुये - "हे प्रभु! अगले साल एक दिन बाद नहीं बल्कि हमारे घर भी दीवाली वाले दिन ही आने की कृपा करना।"
थोड़ी देर बाद उनका घर भी दियों से झिलमिला उठा। और तीनों बच्चे मिठाईयाँ खाकर पटाखे चलाने घर के बाहर आ गये। दरवाजे पर बैठी उनकी माँ उन्हें हँसते खेलते देखकर खुश थी। दीपावली सबके लिये खुशियाँ लाती है सुना था, उस दिन पहली बार देख भी लिया था।