एक डायरी की व्यथा
एक डायरी की व्यथा
रिशील और रितु दोनों पिछले 7 साल से एक दूसरे के साथ प्यार के रिश्ते में बंधे थे।
फिर उन लोगों ने शादी कर ली। दोनों को डायरी लिखने का शौक था।
शादी के कुछ समय तक तो सब अच्छा चलता रहा
उसके बाद दोनों जनों में छोटी छोटी सी बातों में झगड़े होने लगे।
और वे अपने रोज के झगड़े और मन के इमोशनल सब अपनी डायरी में कैद करते थे। काफी दिन रिश्ता ऐसे चला।
जब झगड़े बहुत बढ़ गए तब दोनों ने एक दूसरे के प्रति प्यार को नजरअंदाज कर अलग होने का फैसला कर लिया।
वह भी सब डायरी में नोट किया।
जिस समय दोनों अलग होने वाले थे, उस समय रितु को पता नहीं था कि वह प्रेग्नेंट है। उन्होंने तलाक की अर्जी फाइल कर दी।और रितु अपने मायके चली गई।
वहां जाकर थोड़े दिन बाद ही उसको पता लगा कि वह प्रेग्नेंट है। वह वापस रिशील से बात कर सुलह करना चाहती थी। सिंगल मदरनही बनना चाहती थी।
मगर उसके मायके वालों ने उसको रिशील के विरुद्ध में इतना भड़का दिया कि उसको रिशील की कमियां ही कमियां नजर आने लगी।
सारी बातें वह डायरी में लिखती जाती।
दोनों अपने अपने मन की भड़ास अपनी डायरी के अंदर लिखते। मामला बहुत बिगड़ गया। उसके बेटी आई।रितु ने रिशील को खबर भी नहीं करीकी उसके बेटी आई है।
वह एक बेटी का बाप बन गया है।
और वह अकेली ही सिंगल मदर बनके उसको पालने लगी।
मगर उसका डायरी लिखना वैसे ही चालू रहा।
अब डायरी की व्यथा मैं सिंगल मदर की डायरी, काश में रितु को समझा पाती। काश मैं बोल पाती कि वह कर रही है जो गलत है।
जीवन समझौते का नाम है।इतनी प्यारी गृहस्ती थी। दोनों प्यार से रहते, 7 साल पुराना प्यार क्या पूरे 7 महीने में ही हवा हो गया। एक दूसरे के साथ में समझौते की कोशिश नहीं करी। अहम हावी हो गया।
इसीलिए छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा अविश्वास सब होने लगा। कोई मुझसे पूछे। काश में कुछ कह सकती काश मैं उनको रोक सकती। कुछ समझा सकती।
काश रितु की मां और रिशील की मां उनको कुछ समझा पाते। और उनकी गृहस्थी बच जाती। और वह सिंगल मदर होने से बच जाती।
सिंगल मदर को अपने बच्चे को पालने में कितनी मुश्किल होती है। बाप और मां दोनों का प्यार बच्चे को देना पड़ता है।
उस बच्चे की क्या गलती दोनों झगड़ा करके अलग हुए ,तो बाद में जब समझौते का एक छोटा सा ख्याल भी आया तो अपने पीहर वालों की क्यों सुनी।
इतनी पढ़ी-लिखी जॉब करती लड़की थी। तो अपना दिमाग लगाती ना।
मगर मैं क्या करूं मैं कुछ बोल नहीं सकती। कुछ कह नहीं सकती।
मैं एक निर्जीव सी डायरी हूं। जो लिखने वालों को लिखने वालों के शब्दों से उनकी व्यथा को समेटकर रहती हूं।काश में इसके परिवार को बचा पाती।
तो मेरा भविष्य भी बहुत अच्छा और सुखद होता।
जिंदगी भर इनकी व्यथा ही ना झेलती रहती। इतने दिमाग वाले लोग हैं। यह क्या इनको समझ नहीं आता है।
जब 7 साल प्यार किया, तो एक दूसरे को जैसे हैं वैसा ही स्वीकार कराहोता।
एक दूसरे की कमियों की जगह, खूबियां देखी होती। तो स्थिति आज कुछ और ही होती।
बच्चे को मां बाप दोनों का प्यार मिलता। अब मैं मेरी व्यथा मैं किसको कहूं मैं हूं। एक सिंगल मदर की डायरी सारी व्यथा समेटे बैठी हूं।
