एक छोटी सी जीत
एक छोटी सी जीत


आजकल कोरोना के माहौल में कितनी सारी बातें हो रही है,नही?
Lock down जैसी चीजें जो किसी को पता नही थी,आज की पीढ़ी इसे जान गयी है।सब lock down में घर बैठे है और समझ नही पा रहे है कि क्या करे और क्या ना करे।
जिस बालकनी के लिए बहुत बार लगता था कि काश इस जगह कोई कमरा बना होता, आज वही बालकनी इस बोरियत वाली जिंदगी में ताजा हवा का झोंका लगने लगी है।सच मे lock down में घर की बालकनी भी जैसे एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो गयी है।
पहले दिन फ्रेंड सर्कल में व्हाट्सएप्प में बहुत जोक्स आये।मैंने भी बहुत से फॉरवर्ड किये थे।लेकिन धीरे धीरे दिल उकता गया।टीवी की न्यूज़ से तो जैसे डर लगने लगा है और सारी खबरों से भागने का दिल हो रहा है।
आज 5-6 दिन के lock down के बाद पड़ोस के बच्चे की रोने की आवाज आयी।अमूमन जब उस बच्चे की रोने की आवाज आती है तो मैं उनके घर जाकर पूछती रहती हुँ की बच्चा क्यों रो रहा है?बच्चे ने अब क्या किया है?और कभी हँसते हुए उसकी माँ से पूछती हुँ की क्यों बच्चे को मार रही हो?
लेकिन आज social distencing की वजह से मैं अपने घर मे ही रुकी रही।फिर भी उस बच्चे की रोने की आवाज मुझे अच्छी लगी।इस लॉक डाउन में लगा कुछ तो नार्मल है जिंदगी में।क्योंकि घर मे रहते रहते लगने लगा था कि जिंदगी जैसे ठहर सी गयी हो।
इसी ठहरे माहौल में बालकनी में खड़ी होकर मैं नीचे देख रही थी।नीचे गार्डन में खिले सूंदर फूलों के बीच अचानक एक गिलहरी दिखी।
हाथ में पकड़े मोबाइल फ़ोन से मैं उसकी फोटो लेने की कोशिश करने लगी।लेकिन वह तो गिलहरी थी।पतले से तार पर चढ़कर वह सर्र से चलने लगी।ना मैं और ना मेरा फ़ोन इतना फ़ास्ट था।जाहिर है उसकी मूवमेंट को मैं कैप्चर नही कर सकी और मैं अपनी झुँझलाहट पर हँसने लगी।अचानक मुझे याद आया कि मैं कितने दिनों के बाद हँसी हुँ।
मुझे लगा की मुस्कुराने की वजहें भी हम जैसे भूल गए है जबकि वह हमारे आसपास ही मौजूद होती है।
असलियत में जिंदगी इतने जल्दी कभी हार नही मानती है और बड़ी से बड़ी जंग लड़कर फिर से मुस्कुराने लगती है।इतिहास भी इसकी गवाही देगा।आप इतिहास में जाने की कोशिश कीजिये,आप भी जान जाएँगे की दोनो महायुद्ध और प्लेग जैसी महामारी के बाद भी जिंदगी ने मुस्कुराना सीखा है......