Kunda Shamkuwar

Drama

4.4  

Kunda Shamkuwar

Drama

अ से अमन…द से दमन…

अ से अमन…द से दमन…

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स्कूल में पढ़ते हुए टीचर्स यही कहा करती थी, हमने प्राणी मात्रा पर दया करनी चाहिए…घर में माँ भी यही कुछ कहती रहती थी…स्कूल में अ से अमन, न से नमन पढ़ाया जाता था…हम बच्चें उसी लय में द से दमन भी पढ़ते थे…वह दिन भी क्या दिन थे…

स्कूल ख़त्म हुआ…कॉलेज भी ख़त्म हुआ…लाइफ सब कुछ स्मूथ चलने लगी…नौकरी..परिवार..एक अच्छी सोसाइटी में घर…सब कुछ सही चल रहा था।

बचपन से उसे पपीज़ पसंद थे। अभी सोसाइटी के ग्राउंड फ्लोर में एक देसी डॉगी ने पपीज़ दिये। उन छोटे छोटे पपीज़ के साथ डॉगी को कभी वह बिस्किट्स तो कभी दूध देने लगा।उन पपीज़ को देखकर वह खुश होता था।

लेकिन दुनिया ऐसे कहाँ चलती है? सोसाइटी में लोगों को वह डॉगी और वे पपीज़ का वहाँ उनकी सोसाइटी की बिल्डिंग में बहुत ख़राब लगते थे जैसे उनका स्टैण्डर्ड ही लो हो गया हो… किसी ने कहा भी की वी हैव टू थ्रो अवे दिस डॉगी एंड हर पपीज़…

हम सोसाइटी में रहते रहते कुछ ज़्यादा ही सोफ़स्टिकेटेड हो जाते है। एजुकेशन हमे कितना पॉलिश करता है इसका कुछ लोगों से बात करके पता चल जाता है…

वहाँ उस सोसाइटी में कुछ एडुकेटेड लोगों के पास अच्छी ब्रीड के डॉगीज़ थे, जिन्हें घूमाते वक़्त उन्हें बेहद फ़क्र होता था और बाक़ियों को भी उनसे कभी ऐतराज़ नहीं होता था।

वह देसी डॉगी और उसके वे पपीज़ उन लोगों के हिसाब से उनकी उस सोसाइटी के लिए बदनुमा दाग था। वह हैरान था… ये कैसी हिप्पोक्रेसी है? क्या एजुकेशन हमे ड्यूल पर्सनालिटीज़ बनाता है जो प्राणिमात्र को दया दिखाने की शिक्षा देता है तो कभी उनको फेंकने की बात भी सिखाता है?

सही में एजुकेशन हमे पॉलिश करता है…ये एजुकेशन बड़ी कुत्ती चीज़ है यार…वह अपने दोस्त को सोसाइटी की उस देसी डॉगी और उसके पपीज़ की बातें बताते वक़्त कह रहा था… क्या हम सभी कोई नक़ाब पहने है या हम ऐसे ही बेहिस है?


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