कन्वर्सेशन…
कन्वर्सेशन…


फोन पर बात करते हुए सिग्नल के कारण बातचीत का रुकना बड़ा अजीब होता है।
बात को मुकम्मल करने के लिए उसने ह्वाट्सऐप कॉल की।
ये वाईफ़ाई भी बढ़िया चीज़ है। किसी भी कोने लटक कर बिना किसी तामझाम से वह अनइंट्रप्टेड कनेक्टिविटी प्रोवाइड करता रहता है।
हाँ, तो ह्वाट्सऐप कॉल लग गई और फिर रुकी हुयी बातों का सिलसिला चल पड़ा। योर वॉइस वाज ब्रेकिंग… येस…येस… एम ऑडिबल नाउ? येस… लाउड एंड क्लियर…
हाँ, तो आप कुछ कह रही थी…येस सर.. मैं एक्चुअली आप से बात करना चाहती थी बट यू नो मुझे लगता है की आप बड़े लोग कुछ ज़्यादा ही बिजी होते है और फिर मुझे लगता है की आप को परेशान क्यों करूँ?
नो, नॉट एट ऑल… आप कभी भी बात कर सकती है। एक्चुअली मुझे लगता है की हम मिलकर बात करे। आपकी दूसरी बुक कब आ रही है? येस, कुछ कहानियाँ और कविताएँ हो तो गई है बट उन्हें किताबों की शक्ल देने के लिए कुछ टाइम चाहिए और आजकल मैं ऑफिस में जरा ज़्यादा बिजी रहने लगी हूँ।
आय नो… टेक योर टाइम… ओके… कभी मिलकर बात करते है…
एकदम फ़ॉर्मल कन्वर्सेशन…
अपनी
नौकरी में वह इस तरह की बातें करती रहती है। लेकिन मन की बात करने के लिए वह फिर अपने फ़ोन के कांटैक्ट लिस्ट को स्क्रॉल करती जाती है। कांटैक्ट लिस्ट में सैकड़ों लोगों के होते हुए भी वह किसी से भी अपने मन की बात नहीं कह सकती ? कितनी अजीब बात है ये, नहीं?
इससे भी अजीब बात है की फेस बुक और इंस्टा के फ्रेंडलिस्ट के साथ भी अमूमन इसी तरह की बात है। सब फेस बुक के 'दोस्त' आपकी हर हरकत को देखते रहते है। कुछ लाइक्स और कुछ कमेंट्स। बाक़ी बस यूहीं 'वॉच' करना या फिर निगाह रखना…
मेरी इस बात से शायद कुछ लोग इत्तफ़ाक़ नहीं रखेंगे। कुछ लोग मुझे निगेटिव पोर्ट्रे करेंगे।लेकिन सच तो यही है…फेस बुक और इंस्टा अपनी मार्केटिंग करते है…और हम सब यूज़र्स उनके लिए बस डेटा कलेक्शन का माध्यम है, बस… यही उनका अलगोरिदम है…बिज़नेस मॉडल है।
अब मन की बातों का क्या होगा? कोई मुझे कहेगा, आप को अभी तक दिल्ली जैसे बड़े शहर की फ़ितरत समझ नहीं आयी? यहाँ के बाशिंदों की बात कुछ और है…वे बस काम की ही बात करते है…और काम से ही बात करते है…
मन की बातों का क्या?
मन की बातें फिर कभी होगी…