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Kunda Shamkuwar

Others Abstract Romance

4.6  

Kunda Shamkuwar

Others Abstract Romance

एक शाम में कितनी सारी शाम…

एक शाम में कितनी सारी शाम…

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91


वह तुम ही थे…जो मेरे सबकॉन्शियस माइंड में थे…आज मुझे सुधीर से बात करनी थी…लेकिन पता नहीं क्यों सुधाकर का नाम ही मेरी ज़ुबान पर बार बार पर आ रहा था ।

यह क्या??यह नाम तो मैं कब का भूल चुकी थी… पता नहीं क्यों आज यह इतने शिद्दत से बार बार मेरी ज़ुबाँ पर आ रहा है? वह भी इतने सालों के बाद?

यह क्या चीज़ है जो मुझे बार बार डाउन द मेमोरी लेन ले के जा रही है?

कॉलेज के इतने सालों के बाद मुझे आज उन दिनों की यादें जैसे ताज़ा हो रही थी।

कितनी सारी बातें थी ?क्या भूलु क्या याद करूँ की तर्ज़ पर मेरा मन आज पता नहीं क्यों कभी अनमना हो रहा था तो कभी ख़ुशी के मारे बौराया जा रहा था।

वे कितनी सारी शामें थी…

वे कितनी सारी बातें थी…

वे कितनी सारी यादें थी…

इन सब में कितने सारे हम दोनो थे…

कुछ मेरी उश्रुंखलता थी…

कुछ उसकी गहरायी वाले बातें थी…

कभी मेरी गहरायी वाली बातें थी…

कभी उसकी लाइट मूड वाली बातें थी…

मैं आज अभी 'उस' सुधाकर को याद करने की कोशिश करने लगती जिसे कभी मुझ

े मजबूरी में भूलना पड़ा था…

यह भूलने और याद करने का खेल अजीब था लेकिन ना जाने क्यों आज मुझे इसमें आनंद आ रहा था…

कभी कभी ऐसा ही तो हो जाता है की ना चाहते हुए भी हम उन यादों से बाहर नहीं आना चाहते… आज भी मेरे साथ यही कुछ हो रहा था।मैं उन यादों में ही खोये रहना चाहती थी।

सुधीर…सुधाकर…सुधाकर…सुधीर…

कॉलेज के ज़माने की वे सारी यादें मेरे मन में बड़ी थी। मेरे दिल के काफ़ी क़रीब थी।

अचानक डोर बेल बजी…शाम हो गई थी…मैं झट से उन सारी शामों की यादों से बाहर आ गयी।सुधीर के अंदर आते ही मैंने उनका बैग लिया और उनके लिए किचन से पानी लेने के लिए जाने लगी…

सुधीर पानी का गिलास लेकर कहने लगे, "जल्दी से चाय बनाओ।आज मैं बहुत थक गया हूँ…एक तो ऑफिस में ज़्यादा काम और फिर रास्ते में ट्रैफिक जैम…"वह उधर हाथ मुँह धोने बाथरूम की तरफ़ गये…इधर मैं किचन में चाय बनाने के लिए आ गयी…

शाम हो गई थी…और पता ही नहीं चला…मुझे भी हर रोज़ पति के साथ शाम वाली चाय की तलब हो रही थी…


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