लाँग डिस्टेंस रिलेशनशिप
लाँग डिस्टेंस रिलेशनशिप


बहुत दिनों के बाद आज एक कहानी पढ़ रही थी। कहानी लाँग डिस्टेंस रिलेशनशिप और स्लीप डीवोर्स पर थी। उस वक़्त की नौकरी में आने वाली प्रॉब्लम्स…डीटीसी की बसों की क़िल्लत…उसमें सवार होने के लिए की जानेवाली मशक़्क़त…ऐसा नहीं था की डीटीसी की बसों के बाद ब्लू लाइन और रेड लाइन बसों ने डीटीसी की प्रॉब्लम को सॉल्व करने की कोशिश तो की थी लेकिन वह भी कुछ ज़्यादा ना कर सकी। वह तो भला हो आर्थिक उदारीकरण का जो लाइसेंस राज से छुटकारा मिला और चीजें बदलने लगी।कॉल सेंटर्स और सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्रीज़ के आने से नयी नौकरियों की आमद हुयी है। आजकल की लड़कियाँ पढ़ लिख कर नौकरी करने लगी है। इस शहर में मेट्रो आ गई है।मेट्रो के आने से इस शहर में ना जाने कितनी चीजें बदल गई है…मेट्रो के आने से लड़कियों को जॉब करना बेहद आसान हुआ।मेट्रो सिक्योर जो है।हाँ, तो जब लड़कियों ने नौकरी करना शुरू किया तो उन्हें फाइनेंशियल इंडीपेंडेंसी भी आ गई।
फिर क्या? व्हाई मी ओनली? व्हाई नॉट यू? जैसे जुमले वह अब बोलने लगी है।
इक्वल वर्क और इक्वल पे वाले कॉर्पोरेट कल्चर में अपने लिए इक्वल स्टेटस की चाह रखने लगी है।लड़कियों को अब यह फाइने
ंशियल इंडीपेंडेंसी भाने लगी है। बच्चों के लालन पालन के लिए नौकरी छोड़ना या फिर पति की ट्रांसफ़रमें नौकरी छोड़ने वाली बात अभी नहीं होती।वह भी अपने नौकरी के लिए दूसरे शहर चली जाती है। घर के लिए मेड की अरेंजमेंट और एहतियात के लिए घर में सीसीटीवी लगवाना नहीं भूलती।
नये ऑफिस में वह नये दोस्त और अपना फ्रेंड सर्किल भी डेवलप करती है।वह कही ठहरती नहीं है।ना ही रुकती भी है। और शाम को ऑफिस के बाद वीडियो कॉल से अपनेपन और केयर से सब का हाल चाल पूछ भी लेती है। टेक्नोलॉजी का भी वह साथ लेती है…
सच में यह नये ज़माने की लड़कियाँ कितने कॉन्फिडेंस से अपनी प्रॉब्लम को सॉल्व करती है। करियर में तो वह फोकस्ड होती है।ज़िंदगी में बैलेंस बनाना भी वह जानती है। करियर को मैनेज करते हुए वह रिलेशंस को भी मैनेज करती है।लाँग डिस्टेंस रिलेशनशिप है भी तो एकदम मस्त…रिलेशन के साथ सोशल सिक्योरिटी और साथ में स्पेस भी…अब कोई इसे लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप को स्लीप डीवोर्स जैसा बोरिंग नाम ही दे।क्या फ़र्क़ पड़ता है?