एक औरत
एक औरत
घर में आए महमानों के भोजन कर, जाने के बाद अब सौम्या उसकी सास के साथ इत्मीनान से खाना खाने बैठी।पर बचे हुए कम खाने पर एक नजर पड़ते ही दोनों एक साथ कह उठी की आज वैसे भी मुझे ज्यादा भूखनहीं है।
क्योकि आज सारा दिन महमानों की सेवा करते उन दोनों का ही शरीर थक कर चूर हो चुका था।और अब अपने लिए फिर से कुछ बना पाना उनके लिए संभवनहीं था।
फिर अपनी सास की थाली में खाना परोसते हुए, सौम्या अचानक उनसे बोली, क्यो माँ आप ने तो ऐसी परिस्थिति बहुत बार देखी होगी।क्योकि तब तो अपना परिवार और बड़ा था।पर आमदनी आज के मुकाबले कई गुना कम।
तब सौम्या की बात सुन,उसकी सास गम्भीर स्वर में बोली।बेटी परिवार के आंतरिक सामंजस्य सदा से औरतों को ही बिठाने पड़ते है।तब कहीं जाकर किसी परिवार की नींव इतनी मजबूत हो पाती है।
जब मेरी शादी हुई थी तब मेरी माँ ने मुझसे भी यही कहा था।बेटी एक बात हमेशा याद रखना, कि एक औरत का रोना और खाना दोनों ही कभी किसी को दिखना नहीं चाहिए।
