एक आम सी लड़की
एक आम सी लड़की
बचपन में जब भी मैं माँ से कोई सवाल करती थी। माँ मुझे पिताजी के पास जाने की सलाह देती थी....पिताजी फिर मेरे सारे सवालों के जवाब दिया करते थे। वे सारे जवाब हर बार सही ही लगते थे। मेरे बड़े होने के साथ मेरे सवाल भी बड़े होते गये।
एक दिन माँ ने यूँ ही मेरे शादी का जिक्र छेड़ दिया.... कहते हुए की पिताजी को तुम्हारे शादी की चिंता होने लगी है।मैंने पिताजी की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा।मैंने उन्हें अपनी पढ़ाई का हवाला दिया। लेकिन पिताजी ने हर बार की तरह मुझे कन्विंस किया की लड़का अच्छा है, घर बार भी अच्छा है.... मैं पिताजी के सामने से ख़ामोशी से वापस आ गयी....
थोड़ी देर के बाद कुछ सोचने पर मुझे लगा की मुझे अपने करियर और आइडेंटिटी के लिए पिताजी से थोड़े और वक़्त की माँग जरूर करनी चाहिए।
मैंने मन ही मन कहा,"मुझे मेरे ख़्वाबों को पूरा करने का अधिकार है.....मेरी कुछ महत्वाकांक्षाएँ है जिन्हें मुझे पूरा करना होगा...."
झट से पिताजी के पास जाकर मैंनेकहा, "पिताजी, शादी के लिए यह लड़का जरूर अच्छा होगा लेकिन मैं भी अच्छा बनना चाहती हूँ। मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी करना चाहती हूँ। मेरी शादी उसके बाद तय कर दीजियेगा।" पिताजी की आँखों में मेरे लिए मुझे गर्व की भावना दिखी। उन्होंने कहा, "तुम्हारे मर्ज़ी से ही सब होगा।मेरे होते हुए तुम्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है।
उनके आश्वासन से जैसे मेरे ख़्वाबों को एक ऊँची उड़ान मिली.......
और मेरा यह विश्वास पुख्ता हो गया की मैं कोई आम लड़की नहीं हूँ ........