STORYMIRROR

Laxmi Yadav

Tragedy Others

3  

Laxmi Yadav

Tragedy Others

दृष्टि सातत्य

दृष्टि सातत्य

4 mins
132

आज सुलोचना बहुत खुश थी। बंबई से बेटे का फोन आया था। बेटे अर्जुन और राखी बहू दोनों ने उसे शहर अपने पास बुलाया है। सुलोचना ने अभी तक पोते को देखा भी नहीं था। इसलिए वो बहुत खुश थी। उसके बूढ़े कदमों में मानो नई जान आ गई हो। 

जुटाए- जुहाये पैसे गिन कर देख लिए। पूरे दो हजार थे। इसमें उसे बहू के लिए साड़ी और चांदी की बिछिया लेनी थी। पोते के लिए कपड़े, खिलौने और चाँदी की कटोरी दूध भात खाने के लिए लेना था। पैसे थोड़े कम लगे। उसने अपना बक्सा खोला उसमें उसकी गले में हमेशा पहनने वाली हंसुली थी। पति के गुजरने के बाद उसने उसे रख दिया। आज उसे बेचने के लिए निकाल लिया। सोच रही थी अब रखकर क्या करूँगी? 

दूसरे दिन भोर से ही तैयारी शुरू हो गई सुलोचना की। अर्जुन को सत्तू बहुत पसंद था इसलिए वो दाना भुजाने भाड़ के टोला में गई। दो- तीन दिन में सुलोचना की पूरी तैयारी हो गई। अपनी नई दो साड़ी जो उसने कभी तीज त्यौहार पर भी नहीं पहनी वो बक्से में रख ली। बेसन के लड्डू का डब्बा भी रख लिया। 

आखिर आज वह अपने बेटे के साथ बंबई की धरती पर जीवन में दोबारा कदम रख रही थी। उसने जमीं को हाथ लगाकर माथे से लगाकर मुम्बा देवी को प्रणाम किया। सभी की मंगल कामना की और बहुत ही प्रसन्नता से गाड़ी में बैठी। सपनों के शहर को कौतूहल से निहारते हुए अर्जुन के घर पहुंची। बहू को देखने की प्रबल इच्छा हो रही थी। घंटी बजाने के बाद दरवाजा बहू ने खोला। बहू सुलोचना के कल्पनाओं से परे थी। एक मैक्सी पर दुपट्टा लेकर उसने दरवाजा खोला और हाथ जोड़े बस फिर निर्विकार भाव से अंदर चली गई। ना माथे पर बिंदी, ना चूड़ी, ना साज शृंगार। चेहरे पर अतिथि सत्कार की मुस्कान तक नहीं। फिर भी सुलोचना शहर की बहू सोचकर शांत भाव से अपने पोते के देखभाल में आनंद लेने लगी। अपने बेटे बहू के साथ होने के भाव से ही विभोर हो जाती। भोर में ही उठ जाती, बेचारी दोनों का नाश्ता, टिफिन और पोते की देखभाल में पूरा दिन जाता। उसे कोई शिकायत नहीं थी। पर जब रविवार को बेटे बहु कही घूमने जाते तो सुलोचना को कभी कही नहीं ले जाते थे। 

एक दिन सुलोचना से उठा नहीं गया। बूढ़ा शरीर इतना कष्ट झेल ही नहीं पा रहा था। उस दिन राखी बहू को छुट्टी लेनी पड़ी। शाम को आते ही अर्जुन के सामने राखी ने झुंझलाते हुए बोली कि उससे इतना नहीं होगा। एक दिन की तनख़्वाह कटी सो अलग। 

सुलोचना की आँखें भर आई कि बेटे बहू में से किसी ने उसकी तबीयत नहीं पूछी ना ही दवा दी पर एक दिन काम ना करने से उन दोनों को कितनी तकलीफ हुई ये जता रहे थे। दूसरे दिन कामवाली महरी सुलोचना को डॉक्टर के पास ले गई। वहाँ पर उनकी पड़ोसन भी आई थी। वो बता रही थी कि राखी और अर्जुन को बच्चे को पालनाघर में रखने का खर्चा उठाया नहीं जा रहा था। खाना बनाने वाली भी काम छोड़ कर चली गई क्योंकि राखी का बर्ताव अच्छा नहीं था। इसलिए दोनों खर्चा बचाने के लिए दोनों ने सुलोचना को गाँव से बुलाया है। राखी की माँ ने जिम्मेदारी लेने से साफ मना कर दिया। 

बेचारी सुलोचना, तन से बीमार थी पर अब मन पर भी जख्म हो गया। दो- तीन दिन में वो ठीक हो गई। अपना सारा समान समेट लिया। अर्जुन ने माँ की तैयारी देखी तो हैरानी से पूछा " माँ, कहाँ जा रही हो? "सुलोचना ने उसकी ओर ना देखते हुए ही कहा " मैं अपने गाँव वापस जा रही हूँ। तुम्हारे पिताजी की पेंशन और खेती से मेरा गुजारा अंत तक हो जायेगा। गाँव में आज भी बुजुर्गों को दो रोटी कोई भी दे देता है और सेवा टहल भी कर देते हैं। जिम्मेदारी का बोझ हमने भी अपने समय में उठाया है। अपनी जिम्मेदारी दूसरों के सहारे नहीं उठाई जाती। तुमने बहू को बताया नहीं कि पिताजी की नौकरी नहीं थी तो तुम्हारी पढ़ाई और जिंदगी चलाने के लिए मैंने भी दस साल नौकरी की है। तीनों जिम्मेदारी साथ में निभाई थी क्यों? क्योंकि वो मेरा परिवार, मेरी जिम्मेदारी थी। थोड़ी देर में मेरा भतीजा गाँव से मुझे लेने आ रहा है। हर चीज की एक उम्र होती है बेटा। मेरी उम्र अब किसी की सेवा करने की नहीं रही, अतः मुझे माफ करना। " यह कहकर पोते को भरी आँखों से देखने लगी...... 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy