दो हाथी और बाराती..
दो हाथी और बाराती..


१२वीं सदी से ही भोजपुर बिहार का इलाका उज्जैन से आऐ क्षत्रियों के अधीन रहा था और आज भी वहाँ पास के डुमरॉव महाराज का नाम जगत प्रसिद्ध है। परंपराओं के अनुसार राजा का बड़ा बेटा ही राजगद्दी का उत्तराधिकारी होता है व राज्य के समीपवर्ती भूभागों पे छोटे राजकुमारों को सुशोभित किया जाता था। इस तरह राजवंश बड़े आलीशान राजमहलों से निकल समीपवर्ती सूबों की ओर बढता चला गया; अनगिनत कथानक किवदंतियों के साथ।
एक बार उसी राजवंश की एक कन्या का विवाह राजस्थान स्थित राजपरिवार के एक युवराज से तय की गई। तब उस कन्या के पिता के पास कुल ५० गाँवों की जमींदारी थी। विवाह के अवसर पे बड़े गाजे बाजे के साथ बारात राजस्थान से आयी। उस जमाने में बारात करीब महीने भर की मेहमान नवाजी करती। सभी बारातियों के लिए खाने पिलाने के साथ दैनिक मनोरंजन का भी ख्याल रखा जाता। विवाह के पश्चात दिन बीते जा रहे थे। दैनिक प्रक्रियाओं में कुछ बाराती पास के इलाकों की सैर भी करते तो जमींदार के दरवाज़े पे बंधे घोड़ों व एक जोड़ी हाथियों का प्रयोग अपने शिकार के शौक के लिए भी किया करते। जमींदार द्वारा किऐ गए उस आवभगत से सभी बाराती बड़े ही प्रसन्न थे और लगभग सभों को ये अंदेशा तो अवश्य ही था कि उनके यहाँ से जाते वक्त कम से कम एक हाथी तो जरुर उनके साथ राजस्थान जाऐगा।
बारात विदाई का वो दिन भी आया। सभी बाराती चार पाँच ईंग्लिशिया बसों में जा बैठे। एक एक कर सारी बसें खुलने लगी और फिर जब अंतिम बस खुलने की बारी आयी तो दुल्हे के छोटे भाई से रहा नहीं गया। वो अपनी बस से नीचे उतरा और लड़की के पिता से बोला कि “कौन सा हाथी हमारे साथ भेज रहे हैं.. महावत कहाँ है?” लड़की के जमींदार पिता ने फौरन कहा “हम एक नहीं दो दो हाथी भेज रहे हैं आपके साथ.. वो देखिये अपनी बस के उपर दो दो हाथी बँधवा दिऐ हैं.. जिनके उपर महावत और हमारे सिपाही भी मौजूद हैं.. खुब तेल मालिश किजीऐगा इनकी.. जाईऐ जाकर अब बैठिऐ अपने बस में।”