Vinayak Ranjan

Children Stories

4.7  

Vinayak Ranjan

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एक कैद कवि का उपहार

एक कैद कवि का उपहार

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बहुत पुरानी बात है। बंगाल के नवद्वीप के राजा नवल सेन थे। नवल सेन बड़े ही कुशल प्रशासकों में एक थे और प्रशासकिय कार्यों के साथ साहित्य व संगीत प्रेमी थे। देश के विभिन्न हिस्सों के कलाकारों, कवियों व साहित्य कारों की सिर्फ़ यही एक मंशा हुआ करती कि जीवन में कम से कम एक बार राजा नवल सेन के दरबार में उनके कलाओं के प्रदर्शन का अवसर मिल पाऐ।

 राजा नवल सेन की पुत्री थी इकलौती उज्जवला.. जिनका विवाह उन्होंने बगल विष्णुपुर देश के राजकुमार उत्त्मेंद्र से संपन्न करवायी.. ये जानते हुए भी कि उस देश में विद्रोह कभी भी संभव है.. और बेटी दामाद को गंभीर परिणाम भुगतने पर सकते हैं। विवाह के बाद सौगात के तौर पे साजो सामान के साथ.. अपने दरबार के एक युवा कवि गायक कुशलवीर्य को भी सौगात के तौर पे साथ भेजा गया। समय बीते विष्णुपुर में सबकुछ सही चल रहा था। राजकुमारी उज्जवला खुशी खुशी अपने ससुराल देश में रह रही.. नई जिंदगी को हँसते खेलते देख रही थी। राजा उत्त्मेंद्र भी शासन की बागडोर बड़ी मुस्तैदी से संभाले हुए थे और साथ गए कवि कुशलवीर्य भी दुसरे दरबारियों के आँखों की किरकिरी बने बड़ी ठाठ बाट में राजसी सुख भोग रहे थे.. आखिर वो सौगाती जो थे।

 कुछ महिनों बाद एक दिन विष्णुपुर में एक बड़े महोत्सव का आयोजन किया गया। देश विदेश के राजा महाराजाओं के साथ कवियों गायकों साहित्यकारों को बुलाया गया। फिर रात्रि भोज उपरांत कवियों साहित्यकारों की प्रस्तुति आयोजित की गई। सभी प्रतियोगियों ने अपने अपने विधाओं को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया और फिर अंत में बारी सौगाती कुशलवीर्य की थी। सबकी नजरें उस पे टिकी थी.. आखिर वो राजा उत्त्मेंद्र के खाशमखाश जो थे। फिर कवि कुशलवीर्य अपनी जगह से उठे और आँखे बंद किऐ कविता पाठ करने लगे.. उनके स्वर से कुत्ते की रोने की आवाज तो कभी भौंकने की आवाज आने लगी। ये कुछ लंबा चलता देख.. अन्य देश के राजा अपनी तौहीन समझ सभा से गुस्साते निकलने लगे.. तो राजदरबारी नजरें छुपाते ठहाके भरने लगे। इन आपत्तियों को देख राजा उत्तमेंद्र ने कुशलवीर्य को बंदी बनाने का आदेश दे दिया.. आऐ सभी मेहमानों से माफी माँगी और सभा को विसर्जित किया। राजकुमारी उज्ज्वला भी इस वाक्ऐ से हैरान थी.. राजा के अपमान को भी समझ पाती तो अपने पिता द्वारा साथ भेजे गए कुशलवीर्य की कुशलता की कामना करती। फिर कुछ दिनों बाद रानी उज्ज्वला का राजा को समझाने मनाने के बाद कुशलवीर्य को बंदी से बरी तो किया गया लेकीन राजमहल में रहने की इजाजत से मना कर दिया गया।

 राजा नवल सेन ने भी अपने देश में उसके प्रवेश को रोक दिया। अब कुशलवीर्य बेहताशा हालातों में विष्णुपुर के चौक चौराहों पे नजर आता। अंधेरी रातों में किसी के भीख दान पे अपना गुजारा करता.. कुछ लोग उससे मिलने भी आते.. कुछ उसकी सुनते कुछ अपनी सुनाते.. साथ लेते भी जाते।

 फिर एक दिन रानी उज्ज्वला की भव्य सवारी सुबह सुबह चौक पास से गुजरी। गजगामिनी उज्ज्वला कुशलवीर्य को दीनहीन कातर सा सोया देख ठिठक सी पड़ी। सवारी से उतर कुशलवीर्य के पास जा पहुंची.. वो अपने लंबे मटमैले से बढे बालों दाढियों में गुम सा हो गया था.. फटे कपड़ों में उसने जमीन से नजर जो मिलायी तो उज्ज्वला को देख हँस पड़ा.. फिर एक बेरंग से लिपटे मटमैले कपड़े को रानी उज्ज्वला की ओर बढाया और कहा कि ये अपने पिता को दे देना। रानी मना न कर सकी.. और उस लिपटे कपड़े के साथ राजमहल आने पे जो उस कपड़े में लिखा मिला.. शीर्षक था.. "एक विद्रोह जो टल गया.."।


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