रात के उस पार मछली बाजार.. और !
रात के उस पार मछली बाजार.. और !


आखिर उसने इलिस देकर ही छोङा ईस्स पगली थी पगली मुँह निपोङे हँसी जा रही थी। अच्छा हुआ जो किसी ने देखा नहीं ऐसी काया को देख कौन समझे की मछुआरिन है। अब कुत्ता काटे जो जेनरल बॉगी में चढूं वो भी इतनी सुबह-सुबह ना बाबा ना ना जाने कहाँ से चढ जाते हैं मछली लिए इतने थोक भाव में अब तो पुरे बॉगी का गंध बॉडी पे छा गया है। "ऐ लालटु की रे खूब भालो माछ निए जाछिस" "
हैन काकु ट्रेने निए छी" "ओ मालदा तेके आसछिस की"। उफ इस कटिहार में तो मानो नजर लगाने वालों की कमी नहीं वो चुङैल ठीक ही बोलती थी लेते जाओ ना बाबूजी मलाई है मलाई याद करोगे। आखिर रात के अंधेरे मछली का इतना बङा
कारोबार और पता नहीं क्या क्या।
कैसे उस पुलिसीया ठुल्ले को रपेट के रख दी और मैंने मछली का जरा भाव क्या पूछा पीछे ही पङ गयी। "रोगन इत्ते कम दाम में केकरो फटकेलै नै देत साब" कह तो ऐसे रही थी जैसे कोई हिरोईन हो हिरोईन। सच में आज दिखा मुझे रात का मछली बाजार वर्षों पहले दिखा था नसीरुद्दीन शाह का पार रात के अंधेरे एक सूअर बाजार।