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Dinesh Divakar

Horror Romance

3  

Dinesh Divakar

Horror Romance

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 8

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य 8

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अब तक ..

दृष्टि जैसिका को मारने की कोशिश करती हैं लेकिन प्रेम उसे रोकने के लिए आगे बढ़ा लेकिन दृष्टि उसे मार मार कर अधमरा कर देती है और दिव्या भी उसे रोक नहीं पाई और फिर दृष्टि छलांग लगाते हुए कमरे से बाहर निकल जाती है।


अब आगे...


दृष्टि छलांग लगाते हुए कमरे से बाहर निकलती है तभी उसकी नज़र सामने से आ रहे सहस्त्रबाहु पर पड़ती है वह कुटिल मुस्कान से मुस्कुराते हुए अपना रूप बदल कर प्रेम बन जाती है।

फिर दौड़ते हुए सहस्त्रबाहु के पास ग‌ई और बोली- गुरुजी गुरुजी दृष्टि भाग ग‌ई हम उसे रोक नहीं पाए।

स.बाहु - "ये क्या हो गया अनर्थ, अब तो जैसिका को बचाना और भी मुश्किल हो जाएगा।

रूको मैं अभी अपने छड़ी की मदद से देखता हूं कि वो दुष्ट आत्मा जैसिका को लेकर कहाँ गई है"

सहस्र बाहु अपने छड़ी की मदद से ध्यान लगाते हैं फिर चौक कर- "अरे ये क्या दृष्टि तो यही आस पास है।"

तभी कमरे से आवाज़ आई- "सर वो मैं नहीं हूं"

सहस्र बाहु- "ये तो प्रेम की आवाज़ है वो अगर वहां है तो"

इससे पहले कि वो समझ पाते दृष्टि ने उनसे छड़ी छिन कर तोड़ दिया और कुटिल मुस्कान के साथ मुस्कुराते हुए गायब हो गई।


सहस्र बाहु- "डैमेड वो हमें चमका दे ग‌ई, मैं उसके पीछे जाता हूं तुम कमरे में देखो क्या हुआ है।"

सहस्र बाहु दृष्टि के पीछे जाते हैं और उनके शिष्य कमरे में जाते हैं, कमरे का तो पूरा नक्शा ही बदल गया था और प्रेम टूटे हुए टेबल के उपर गिरा कराह रहा था वो दोनों जल्दी से प्रेम को उठाकर बेड पर लिटाते है और उसकी मरहम-पट्टी करते हैं।


थोड़ी देर में सहस्त्रबाहु निराश होकर आते हैं- "उस दृष्टि ने हमे चकमा देकर मेरी छड़ी तोड़ दी, उसे पता था कि हम छड़ी के माध्यम से उसे ढूंढ लेंगे"

प्रेम- "तो अब क्या करें सर, क्या अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं है जैसिका को बचाने का।"

"है एक रास्ता है"- एक अदृश्य आवाज आई

प्रेम- "कौन हो तुम?"

"अच्छा जिससे रोज़ चैट किया करते थे उसे भूल गए अब हम इतने भी गैर नहीं थे।" फिर हवा में एक आकृति उभर कर आई वह दृष्टि थी।

सहस्र बाहु- "क्या चाहती हो तुम ?"

दृष्टि- "चुप रह बुड्ढे मैं अपने प्रेम से बात कर रही हूं तू बीच में मत बोल वरना मैं तुम्हें भी कच्चा चबा जाऊंगी।"

प्रेम- "मुझे बताओ आखिर क्या चाहती हो तुम।"

दृष्टि- "हां मेरे प्रेम बताती हूं",

फिर दृष्टि की आवाज़ भयानक हो जाती है- "आज से तीन दिन बाद अमावस्या है उस दिन मैं तुम्हारे प्यार की बली दूंगी जिससे मेरी आत्मा को शान्ती मिलेगी और साथ ही साथ मेरी शक्तियाँ भी दोगुनी हो जाएगी। तुमसे बिछड़े तीन साल हो गए इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारे प्यार को बचाने के लिए भी तीन दिन देती हूं, बचा सकते हो तो बचा लो अपने प्यार को नहीं तो ... हा हा हा"


सहस्र बाहु मौक़ा पाकर दृष्टि पर वार करते हैं लेकिन दृष्टि पहले से सतर्क थी इसलिए बच गई।

दृष्टि- "ना ना बुड्ढे तेरी कोशिशें नाकाम है, लेकिन तेरे पास भी तीन दिन का समय है तू भी अपने सर पर लगे पूरे गाँव वालों की मौत का कलंक मिटा सकता है तो मिटा ले इसी लिए तो तू यहां आया था ना हा हा हा, मैं जाती हूं लेकिन याद रखना तीन दिन।"

प्रेम- "सर वो किस गाँव की बात कर रही थी ?"

सहस्र बाहु- "मेरे गाँव की जहां लोगों ने मुझे पर पूरे गाँव पर के मौत का कलंक लगाया।"

प्रेम- "पर क्यों ?"

सहस्र बाहु- "ये मैं तुम्हें अगले भाग में बताउंगा दृव्य दृष्टि- एक रहस्य (कलंक) में लेकिन अभी हमें इस मुसीबत का सामना करना है उसने मुझे ललकारा है मैं उसे नहीं छोडूंगा।"

प्रेम- "कोई उपाय"


सहस्र बाहु फिर उदास हो जाते हैं उपाय, लगता है वो सही है हम उससे नहीं लड़ सकते, उसे हराना नामुमकिन है। मैं जाता हूं अपना ख्याल रखना और हो सके तो जैसिका को भूल जाओ।


क्या दृष्टि को हराने का कोई उपाय नहीं ?

तो क्या प्रेम हार जाएगा सत्य और असत्य के जंग में?

या कोई नयी किरण बनकर उनके मदद के लिए आयेगा ?


क्रमशः


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